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________________ १४६ उच्चर सक [ उत् + चर् ] उत्तीर्ण होना । बोलना । पहुँच सकना । बाहर निकलना । अक संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पार जाना, समर्थ होना, उच्चलण न [ उच्चलन] उन्मर्दन, उत्पीड़न । उच्चलिय वि [ उच्चलित ] चलित, गत । उच्चल वि[दे] अध्यासित आरूढ़ | विदारित । उच्चल्ल सक [उत् + चल् ] चलना, जाना | समीप में आना । उच्चा अ [उच्चैस् ] ऊँचा । उत्तम, श्रेष्ठ | 'गोत, 'गोय न [ 'गोत्र ] उत्तम गोत्र, श्रेष्ठ-वंश । कर्म-विशेष, जिसके प्रभाव से जीव उत्तम माने-जाते कुल में उत्पन्न होता है । 'वयन [ व्रत ] महाव्रत । वि. महाव्रतधारी । उच्चाअवि [] श्रान्त । पुं. आलिङ्गन । उच्चाइय वि [दे. उत्त्याजित] उत्थापित, उठाया हुआ । उच्चाग पुं हिमाचल पर्वत । °य वि [ज] उच्चड अक [ उत् + चुड् ] अपसरण करना । हिमाचल में उत्पन्न । उच्च क [ चट् ] आरूढ़ होना । उच्चरण [दे] उच्छिष्ट । उच्चाड वि [दे] विपुल, विशाल । उच्चाड सक [दे] रोकना । करना । उच्चु लउलिअन [ दे] कुतूहल से शीघ्र शीघ्र जाना । अक अफसोस उच्चाडण न [उच्चाटन ] एक स्थान से दूसरे स्थान में उठा ले आना, स्व-स्थान से भ्रष्ट करना । मन्त्र - विशेष, जिसके प्रभाव से वस्तु अपने स्थान से उड़ायी जा सकती है । उच्चाडणी स्त्री [उच्चाटनी ] विद्या विशेष जिसके द्वारा वस्तु अपने स्थान से उड़ायी जा सकती है । Jain Education International उच्चर-उच्चेव उच्चाल सक [उत् + चालय् ] ऊँचा फेंकना । दूर करना । उच्चाइय वि [उच्चालयितृ] दूर करनेवाला, त्यागने वाला । उच्चाव सक [ उच्चय् ] ऊँचा करना, उच्चारण न कथन । उच्चारिअ वि [दे] गृहीत, उपात्त । उठाना । उच्चावयवि [ उच्चावच ] ऊँचा और नीचा । उत्तम और अधम । अनुकूल और प्रतिकूल । असमञ्जस, अव्यवस्थित । नानाविध । विशेष उत्तम | उच्चिट्ठ अक [ उत् + स्था ] खड़ा होना । उच्चिडिम वि [ दे] मर्यादा -रहित, निर्लज्ज । उच्चिन सक [ उत् + चि] फूल वगैरह को तोड़ कर एकत्रित करना, इकट्ठा करना । उच्चिय देखो उचिय । उच्चिवलय न [ दे] कलुषित जल । उच्चुंच वि [दे] दृप्त, अभिमानी । उच्च व [] अवस्थित । उच्चार सक [उत् + चारय् ] बोलना । मलो- उच्चे देखो उच्चिण । त्सर्ग करना । उच्चार वि [दे] स्वच्छ | उच्चुल्ल वि [दे] उद्विग्न | अधिरूढ । भीत । उच्चड पुं. निशान का नीचे लटकता हुआ श्रृंगारित वस्त्रांश | उच्च व [] बहुविध । उच्चूल पुं [अवचूल] निशान का नीचे लटकता हुआ शृङ्गारित वस्त्रांश | औंधा-सिर - पैर ऊपर और सिर नीचे कर - खड़ा किया हुआ । उच्चेय वि [उच्चेतस् ] चिन्तातुर मनवाला । उच्चेल्लर न [दे] ऊसर भूमि । जघनस्थानीय केश । उच्चैव वि [] प्रकट, व्यक्त । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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