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________________ १२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आहम्मिय-आहि आहम्मिय वि [अधार्मिक] अधर्मी, पापी। आहातहिय वि [याथातथ्य] सत्य, वास्तआहय वि [आहत] आघात प्राप्त, प्रेरित। विक। आहय वि [आहृत] आकृष्ट, खींचा हुआ। | आहार सक [आ + हारय् खाना । छीना हुआ। आहार पुं. खुराक । भक्षण । न. देखो आहाआहर सक [आ + ह] छीनना। चोरी | रग। °पज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] भुक्त करना । खाना। आहार को खल और रस के रूप में बदलने आहर सक [आ + ह] लाना । की शक्ति । °पोसह पुं [पोषध] व्रत-विशेष, आहरण पुंन [आहरण] दृष्टान्त । आह्वान । जिसमें आहार का सर्वथा या आंशिक त्याग स्वीकार । व्यवस्थापन । आनयन । किया जाता है। °सण्णा स्त्री [°संज्ञा] आहरण पुंन [आभरण] अलंकार ।। आहार करने की इच्छा। आहरणा स्त्री [दे] नाक का खरखर शब्द । आहार पुं [आधार] आश्रय, अधिकरण । आहरिसिय वि [आधर्षित] तिरस्कृत । आकाश । अवधारण, याद रखना। आहल्ल (अप) अक [आ + चल] हिलना, | आहारग न [आहारक] शरीर-विशेष, चलना। जिसको चौदह-पूर्वी, केवलज्ञानी के पास जाने आहल्ला स्त्री [आहल्या] विद्याधर-राज की के लिए बनाता है। वि. भोजन करनेवाला । एक कन्या । आहारक-शरीर-वाला। आहारक-शरीरआहव सक [आ + ह] बुलाना । उत्पन्न करने का जिसे सामर्थ्य हो वह । आहव पुं. युद्ध । जुगल न [°युगल] आहारक शरीर और आहवण । न [आह्वान] बुलाना । उसके अंगोपाङ्ग। °णाम न [°नामन्] आहव्वण । ललकारना । आहारक शरीर का हेतु-भूत कर्म । °दुग न आहव्व वि [आभाव्य] शास्त्रोक्त क्षेत्रादि । [°द्विक] देखो जुगल। आहव्वणी स्त्री [आह्वानी] विद्या-विशेष । आहारण वि. [आधारण] धारण करनेवाला । आहा सकं [आ+ ख्या] कहना । आधार-भूत । आहा सक [आ + धा] स्थापन करना। आहारण वि. आकर्षक । आहा स्त्री [आभा] तेज । आहारय देखो आहारग। आहा स्त्री [आधा] आश्रय । साधु के निमित्त | आहाराइणिया स्त्री [याथारानिकता] यथाआहार के लिए मनः-प्रणिधान । °कड वि ज्येष्ठ, ज्येष्ठानुक्रम । [कृत] आधा-कर्म-दोष से युक्त । कम्म न | आहारिम वि [आहाय] खाने योग्य । जल के [°कर्मन्] साधु के लिए आहार पकाना । साथ खाया जा सके ऐसा योग्य चूर्ण-विशेष । साधु के निमित्त पकाया हुआ भोजन, जो आहावणा स्त्री [आभावना] गणना का जैन साधुओं के लिए निषिद्ध है । कम्मिय वि अभाव । उद्देश्य । [कर्मिक] देखो पूर्वोक्त अर्थ । आहाविअ वि [आधावित] दौड़ा हुआ । आहाण न [आधान] स्थापन । स्थान, आहाविर वि [आधावितृ] दौड़नेवाला । आश्रय । आहास देखो आभास = आ + भाषु । आहाण न [आख्यान] उक्ति । किंवदन्ती, आहाह अ. आश्चर्य-द्योतक अव्यय । कहावत । आहि पुंस्त्री [आधि] मन की पीड़ा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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