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________________ ( ८ ) विख्यात इन्जीनियर लूई साहब ने कस्तूरभाई को कुदरती सूझ वाले इन्जीनियर कहा था । उन्होंने अपनी स्वयं की निगरानी में राणकपुर, देलवाड़ा, शत्रुंजय और तारंगातीर्थ के मन्दिरों के शिल्प स्थापत्य का जो जीर्णोद्धार करवाया है उसे देखते हुए लूई का कथन सही मालूम पड़ता है । सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अनेक जीर्ण तीर्थस्थलों का कलात्मक दृष्टि से जीर्णोद्धार करवाया। उन्होंने उपेक्षित राणकपुर तीर्थ का पुनरुद्धार करके उसे रमणीय बना दिया । उन्होंने बहुत ही परिश्रम उठाकर पुरानी शिल्प कला को पुनर्जीवित किया । देलवाड़ा के मन्दिर के निर्माण में जिस जाति के संगमरमर का उपयोग हुआ है उसी जाति का संगमरमर दाँता के पर्वत से प्राप्त करने में बहुत ही अवरोध आये थे। कारीगरों ने जीर्णोद्धार का व्यय पचास रुपये घनफुट बताया था किन्तु उसका खर्च बढ़ते बढ़ते पचास की जगह दो सौ रुपये प्रतिघनफुट आया फिर भी प्रतिकृति इतनी सुन्दर बनी कि कस्तूरभाई की कलाप्रेमी आत्मा प्रसन्न हो गयी और अधिक व्यय की उन्होंने तनिक भी चिन्ता नहीं की । शत्रुंजयतीर्थं में उन्होंने पुराने प्रवेश द्वार के स्थान पर नया द्वार बनवाया और मुख्य मन्दिर की भव्यता में अवरोध करने वाले छोटे-छोटे मन्दिर और उनकी मूर्तियों को बीच में से हटवा दिया । जिस प्रकार धर्मदृष्टि उद्घाटित होते ही जीवन दर्शन के होता है उसी प्रकार जीर्णोद्धार के बाद इन धर्मस्थानों के हो गए । एक अमेरिकन यात्री ने एक बार कस्तूरभाई से पूछा ! यदि कल ही आपकी मृत्यु हो जाय तो " ! कस्तूरभाई ने सस्मित कहा मुझे आनन्द होगा । किन्तु बाद में क्या ? बाद में क्या होगा इसकी मुझे चिन्ता नहीं है । आपका क्या होगा उसका विचार नहीं आता है क्या ! क्षितिजों का विस्तार क्षितिज भी विस्तृत मैं पुनर्जन्म में आस्था रखता हूँ । उसका तात्पर्य ? जैन तत्त्वज्ञान के अनुसार ईश्वर जैसा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है । प्रत्येक प्राणी और मैं स्वयं भी ईश्वर की स्थिति को पहुँच सकता हूँ अर्थात् मुझे मेरे चरित्र को उतना ऊँचा ले जाना चाहिये और यह विश्वास उत्पन्न करना चाहिए कि मैं क्रमश: उस पद के लिए योग्य बन रहा हूँ । इस विचारधारा में मुझे आस्था और गौरव है । उस स्थिति तक कैसे पहुँचा जा सकता है ? उसके उपाय भी हमारे दर्शन में बताये हैं :- सत्य बोलना चाहिए, धन के प्रति ममत्व नहीं रखना चाहिए, हिंसा नहीं करनी चाहिए, आदि । इतने उच्च आदर्श शायद ही दूसरी जगह पर देखने को मिले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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