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________________ ८३ अवरोप्पर-अववरक संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अवरोप्पर । वि [परस्पर] आपस में । । अवलेह पुं. चटनी। अवरोवर । अवलेहणिया स्त्री [अवलेखनिका] बांस का अवरोह पु[अवरोध] अन्तःपुर । अन्तःपुर में छिलका । धूलि आदि झाड़ने का एक उपरहनेवाली स्त्री। नगर को सैन्य से घेरना । करण । संक्षेप। प्रतिबन्ध । जुवइ स्त्री [°युवति] अवलेहि , स्त्री [अवलेखि, का] बांस अन्तःपुर की स्त्री। अवलेहिया का छिलका । लेह्य विशेष । अवरोह पुं. उगनेवाला ( तृण आदि )। चावल के आटा के साथ पकाया हुआ दूध । अवरोह पु [दे] कटि । अवलोअ सक [अव + लोक] देखना, अवअवलंब सक [अव + लम्ब्] आश्रय लेना। लोकन करना । लटकना । अवलोग ) पु अवलोक] अवलोकन, अवलंब , पु [अवलम्ब, °क] सहारा, | अवलोय । दर्शन । अवलंबग । आश्रय । वि. लटकनेवाला । अवलोयण न [अवलोकन] विलोकन । स्थानसहारा लेनेवाला। विशेष । शिखर-विशेष । अवलंबणया स्त्री [अवलम्बनता] अवग्रह- | अवलोयणी स्त्री [अवलोकनी] देवी-विशेष । ज्ञान । अवलोव पु [अपलोप] छिपाना, लोप अवलक्खण न [अपलक्षण] खराब लक्षण, ! करना। बुरी आदत । अवलोवणी स्त्री [अपलोपनी] विद्याअवलग्ग वि [अवलग्न] आरूढ़ । संलग्न । विशेष । अवलत्त वि [अपलपित] छिपाया हुआ। अवलोह वि [अपलोह] लोहरहित । अवलद्ध वि [अपलब्ध] अनादर से प्राप्त । अवल्लय न [दे. अवल्लक] नौका खेवने का अवलद्धि स्त्री [अवलब्धि] अप्राप्ति ।। उपकरण-विशेष । अवलय न [दे] मकान । अवल्लाव ) पु [दे. अपलाप] असत्यअवलव सक [अप+लप्] असत्य बोलना। | अवल्लावय , कथन, अपलाप । सत्य को छिपाना। अवव न. संख्या-विशेष, अववाङ्ग' को चौरासी अवलाव पु [अपलाप] अपह्नव । लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह । अवलिअ न [दे] झूठ। अववंग न [अववाङ्ग] संख्या-विशेष, 'अडड' अवलिंब पु [अवलिम्ब] जीव या पुद्गलों से को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या व्याप्त स्थान-विशेष । लब्ध हो वह । अवलिच्छअ वि [दे] अप्राप्त, अनासादित । अववक्कल वि [अपवल्कल] त्वचारहित । अवलित्त वि [अवलिप्त] व्याप्त । लिप्त । अववक्का स्त्री [अवपाक्या] छोटा तवा । गवित । अववग्ग [अपवर्ग] मोक्ष । अवलुअ देखो अवल्लय। अववट्टण न [अपवर्तन] अपसरण । कर्मपरअवलुआ स्त्री [दे] गुस्सा । माणुओं की दीर्घ स्थिति को छोटी करना। अवलुत्त वि [अवलुप्त] लोप-प्राप्त । अववत्त वि [अपवृत्त] वापस लौटा हुआ । अवलेअ , पु [अवलेप] अहंकार । लेप, अपसृत । अवलेव । लेपन । अनादर । | अववरक पु [अपवरक] कोठरी, छोटा घर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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