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________________ (१८) 'त्थे' ' हैं। कई शब्दों के ऐसे भी रूप दिये गये हैं कि जिनका अन्य शब्दों की पे किपी विभक्ति में भिन्नरूप होता है, जैसे:-'राजन् ' शब्द का षष्ठी विभक्ति में रराणो' ऐसा रूप होता है। (१५.) कोई भी शब्द बिना सूत्रों में देखे और बिना अनुसन्धान किये नहीं दिया गया। अवतरण ( कोटेशन ) केवल जहां देना उपयुक्त व आवश्यकीय समझा वहीं दिया गया है तो भी प्रायः फी सदी पचास के अवतरण दिये गये हैं। सूत्रों के जो प्रमाण अङ्क (रेफरन्स) दिये हैं वे बिलकुल ही सही हैं; कारण उनको एक बार ही नहीं किन्तु अनेक बार जांचकर दिया है । समस्त शब्द वर्तमान में जितने ग्रन्थ उपलब्ध हैं और जिनकी सूचि दे चुके हैं, उन्हीं में से चुने गये हैं। खुलासे के लिये देखो " कोपान्तर्गत सूत्रोनी यादी''। (१६) संस्कृत-पर्याय अनेक कोषानुमोदित और व्याकरणरीति से भी शुद्ध हैं। जहां एक संस्कृत पर्याय से काम नहीं चला वहां उसका दूसरा पर्याय भी दिया है, वैसे ही कहीं कहीं ग्रकृति-प्रत्यय भी दिखलाया है; व्युत्पत्ति समास भी किये हैं। प्रत्येक शब्द का धातु वगैरह लिखने से या प्रकृति -प्रत्यय समासादि करने से अथवा दूसरा पर्याय आदि देने में ग्रन्थ का विस्तार एक दम बढ़ जाता, वासे आवश्यकता से अधिक इस विषय की ओर ध्यान नहीं दिया । अन्य भाषाओं में दो दो तीन तीन पर्याय देकर प्रकारान्तर से अर्थ करके समझाया गया है। (१७) संस्कृत साहित्य के अनुसार एक शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं, किन्तु इस कोप में केवल वे ही अर्थ दिये गये हैं जो कि सूत्र - प्रतिपादित हैं। प्रकारान्तर से इस कोष को "आगमकोष" भी कह सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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