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________________ अपुत्त ] ( ३१०) [ अपुवकरण अपुत्त. त्रि. (अपुत्र) पुत्र विनानी; २१ यन्त्र ) पुरोहित-शांति:२नार यांनी पारनी. पुत्र रहित. Sonless ; having ते. पुरोहित-शान्तिकर्म करने वाला जहाँ नहीं no son. पाया०२,७, १, १५५; नाया०१४; है वह. Devoid of a family. अपुम. पुं० ( अपुंस् ) पुरुषातन गर्नु नपुं- priest. भग• ३, १; स. पुरुषत्व रहित; नपुंसक. An impo- अपुव्व. त्रि० (पूर्व) नपान, विसक्ष, tent. क. प. ४, ४५; ओघ• नि० २२३; अन्य साधारण नाह. असाधारण; नवीन. अपुरकार. पुं० (अपुरस्कार ) पु२२४५२- | Novel; extraordinary. क० प० ४, લેકમાં ગુણ તરીકે મનાવાથી મળતા | २०; क. गं० २, ६; ४, ४८; विशे० १२०३; समरने। अभाव; 24पता; सना(२. लोगों । प्रव० ३१४ पंचा० ३, २६; (२) पूर्व न अनु. द्वारा गुणी जनों को जो सत्कार मिलता है, ભલ; અપૂર્વકરણ; ત્રણ કરણમાંનું એક. उसका अभाव; अनादर; अवज्ञा. Lack of जो पहिले कभी अनुभव में न आया हो वह respect; disrespect. “गरहणयाए अपूर्वकरण; तीन करणों में से एक करण. not अपुरकारं जणयइ " उत्त० २६, ७; experienced before; one of the -गश्र. त्रि० (-गस) अस४२ने प्रास three Karanas. अणुजो० १३०;नाया. थयेस; अना६२ पाभेल. असत्कार प्राप्त; अनादर १७;-चिंतामणि. पुं० (-चिन्तामाण) पाया हुआ. dishonoured; an सपूर्व-मदितीय चिंतामणि रत्न. अपूर्व impotent. उत्त० २६, ७; चिन्तामाणरत्न. unrivailed or unअपुरिस. पुं० (अपुरुष-न पुरुषोऽपुरुषः) paralleled philosopher's stone. नपुंसः पुरुषत्वना अनाव. पुरुषत्व रहित; पंचा० ४, ३८:-नाण. न. (-ज्ञान) नपुंसक. An impotent.ठा०६;-वाय. सपूर्वज्ञान; नवु नयु शान. अपूर्व ज्ञान; नयापुं० (-वाद) नपुंसाई धना ५२ नया ज्ञान. knowledge which one નપુંસકપણાનો આરોપ મુકવો તે; કોઈની ! did vot possess before ; now नपुंस तरी यात सायची ते. नपुंसकवाद; | knowledge. प्रव० ३२०; किसीके ऊपर नपुंसकत्व का आरोप करना | अपुव्वकरण. त्रि. (अपूर्वकरण-अपूर्वमभिनवं किसीके नपुंसक होने की बात प्रकट प्रथमं करणं स्थितिघातरसघातगुण करना. accusing a man for being श्रेणिगुणसङ्क्रमस्थितिबन्धानां पञ्चाना impotent"अपुरिसवायं वयमाणे दासवायं मर्थानां निर्वर्तनं यस्यासावपूर्वकरणः ) वयमाणे "वेय. ६,२; સ્થિતિધાત, રસધાત, ગુણએણિ, ગુણસંક્રમ अपरिसक्कारपरक्कम.त्रि०(अपुरुषाकारपराक्र અને અન્યસ્થિતિબંધ એ પાંચની અપૂર્વम-परुषाकारः पौरुषाभिमानः पराक्रमोनिष्पादि પહેલી જ વાર નિષ્પત્તિ કરનાર છવ; આઠમે तप्रयोजनं सामर्थ्य तौ न विद्यते यस्य तत्तथा) ગુણઠાણે નિરુક્ત પાંચસ્થિતિ પ્રાપ્ત કરનાર પુરૂાકાર -માણસાઈ–મનુષ્યને છાજતા પરા- ७१. स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेणी, गुण म विनानी. मनुष्यत्व के योग्य पराक्रम संक्रम और अन्यस्थितिबंध इन पाचों की से रहित. Devoid of manly exploits. प्रथम ही बार निष्पत्ति करने वाला जीव; नाया० १३, १६; भग० ७, १; विवा. १, ३; आठवें गुणस्थान में उक्त पांचों स्थिति प्राम अपुरोहिय. त्रि० (अपुरोहित-नास्ति पुरोहितो ! करने वाला जीव. (A soul) attaining Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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