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________________ संक्रान्ति २. स्तिबुक संक्रमणका लक्षण सा/जो प्र./२०३/२२०/६ संज्वलनक्रोधस्य समयो नोष्टालि मात्रनिषेकद्रव्यमपि संज्वलनमानस्योदयावत्यां समस्थितिनिषेकेषु प्रतिसमय मे कनिषैमागमिष्यति संकलनक्रोधोनिषेकाः मानोदयावलि निषेवेषु संक्रम्य अनन्तर समये हृदयमिच्छन्तीति तात्पर्यम् । अयमेव थिउक्कसंक्रम इति भव्यते। - संज्वलन क्रोधका एक समय कम उच्छिष्टावलिमात्र निषेक द्रव्य भी, अपनी समान स्थिति लिये जे संज्वलन मानकी उदयावली के निषेक उनमें समय-समय एक-एक निषेकके अनुक्रमसे संक्रमण होकर अनन्तर समय में उदय होता है। तात्पर्य यह है कि उच्छिष्टावलि प्रमाण संज्वलन क्रोधका द्रव्य मानको उदयावलि निषेक़ों में संक्रमण करके अनन्तर समय में उदयमें आते हैं। यह ही थिउक्क (स्तिबुक) संक्रमण है। ३/२०१८ / २१९/८ विशेषार्थ गति जाति आदि पिंड कृतियों से जिस किसी विवक्षित एक प्रकृतिके उदय आनेपर अनुदय प्राप्त शेष प्रकृतियोंका जो उसी प्रकृतिमें संक्रमण होकर उदय आता है, उसे कि कहते है जैसे-एकेन्द्र जीवोंके उदय प्राप्त एकेन्द्रिय जाति नामकर्म में अनुपमा दीन्द्रिय जाति आदिका संक्रमण होकर उदयमें आना । - संक्रांति- १. स. सि./६/४४/४५५/१० संक्रान्तिः परिवर्तनम् । द्रव्यं निहाय पर्यायमुपैति पर्याया द्रव्यमित्यर्थं संक्रान्तिः एक श्रुतवचनमुपादाय वचनान्तरमालम्बते तदपि विहायाम्यदिति व्यञ्जनसंक्रान्तिः । काययोगं त्यक्त्वा योगान्तरं गृह्णाति योगान्तरं च काययोगमिति योगसंक्रान्ति । संक्रान्तिका अर्थ परिवर्तन है द्रव्यको छोड़कर पर्यायको प्राप्त होता है और पर्याय छोड़कर count प्राप्त होता है । यह अर्थ संक्रान्ति है। एक त वचनका आलम्बन लेकर दूसरे वचनका आलम्बन लेता है और उसे भी त्यागकर अन्य बचनका आलम्बन लेता है यह व्यंजन संक्रान्ति है । काययोगको छोड़कर दूसरे योगको स्वीकार करता है और दूसरे योगको छोड़कर काययोगको स्वीकार करता है । यह योग संक्रान्ति है । (रा. बा./१/४४/२/६३४/१०), (भा, पा/टी./७८/२२७), २. ध्यानमें योग संक्रांति सम्बन्धी शंका समाधान दे. शुक्लध्यान / ४ । संविल हस्तकर्मकर्म संक्लेश - दे, विशुद्धि | सम्यग्दर्शन / ११ । संक्षेप सम्यग्दर्शन --- दे, संख्या-लोक जीवस-किस गुणस्थान मार्गमा स्थान आदि कितने कितने हैं इस बातका निरूपण इस अधिकार में किया गया है। तहाँ अल्प संख्याओंका प्रतिपादन तो सरल है पर असंख्यात व अनन्तका प्रतिपादन क्षेत्रके प्रदेशों व कालके समयोंके आश्रयपर किया जाता है। १ संख्या सामान्य निर्देश १ संख्या व संख्या प्रमाण सामान्यका लक्षण | अज्ञसंचारके निमित्त शब्दोंका परिचय गणित/11/ संख्या प्रमाणके भेद । Jain Education International - २ * संख्यात असंख्यात व अनन्तमें अन्तर । - दे. अनन्त / २ ३ संख्या व विधानमें अन्तर । ४ कोड़ाकोड़ी रूप संख्याओंका समन्वय । * संख्यात, असंख्यात व अनन्त - दे. वह वह नाम । ९१ २ | १ २ ३ ४ उपशम व क्षपक श्रेणीका संख्या सम्बन्धी नियम । ५ सिद्धोंका संख्या सम्बन्धी नियम । ६संयतासंयत जीव असंख्यात कैसे हो सकते हैं । ७ सम्यग्दृष्टि दो तीन ही है ऐसे कहने का तात्पयें। लोभ कषाय क्षपकोंसे सूक्ष्म साम्परायकी संख्या अधिक क्यों वर्गणाओंका संख्या सम्बन्धी दृष्टि भेद । जीवोके प्रमाण सम्बन्धी दृष्टिमेद सभी मार्गणा व गुणस्थानोंमें आयके अनुसार व्यय होनेका नियम ९. १० * संख्या प्ररूपणा विषयक कुछ नियम कालकी अपेक्षा गणना करनेका तात्पर्य । क्षेत्रकी अपेक्षा गणना करनेका तात्पर्यं । संयम मार्गणामें संख्या सम्बन्धी नियम । ३ १ २ संख्या विषयक प्ररूपणाएँ सारणी में प्रयुक्त संकेत सूची । जीवोंकी संख्याविषयक ओ रुपा १. जीव सामान्यकी अपेक्षा । २. तीर्थंकरों आदि पुरुष विशेषोंकी अपेक्षा । जीवोंकी संख्या विषयक सामान्य विशेष प्ररूपणा । जीवोंकी स्वस्थान भागाभाग रूप आदेश प्ररूपणा । ५। चारों गतियोंकी अपेक्षा स्व पर स्थान भागाभाग । ६ । एक समय में विवक्षित स्थानमें प्रवेश व निर्गमन 1 करनेवाले जीवोंका प्रमाणं । इन्द्रोंकी संख्या द्वीप समुद्रोंकी संख्या ज्योतिष मण्डलकी संख्या तीर्थकरों के - दे. मार्गणा । संख्या आदिको संख्या द्रव्योंकी संख्या द्रव्योंके प्रदेशोंकी संख्या जीत्रों आदिकी संख्या परस्पर - दे. इन्द्र | -=/9/1 - दे. ज्योतिष / २ | देसी -२ - दे, वह वह द्रव्य | अल्पव - दे अन्य विषयों सम्बन्धी संख्या व भागाभाग सूची । कर्म बन्धक की अपेक्षा संख्या व भागाभाग सूची । ८ ९ मोहनीय कर्म, सत्त्रकी अपेक्षा संख्या व भागाभाग 1 सूची । १. संख्या सामान्य निर्देश १. संख्या व संख्या प्रमाण सामान्यका लक्षण स.सि./१// २६ / ६ सख्या भेवगणना संख्या से भेदोंकी गणना ली राती है। (रा. वा./१/८/३/४१२६) । 1 ब. १/८०/१०२/१५ विहे परिमार्थ । १०२ (टोबा) संत नियोगह जमतं तस्मादि दवाणियोयो । = सत् प्ररूपणाने जो पदार्थोंका अस्तित्व कहा गया जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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