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________________ Jain Education International स्पर्श मार्गणा .स.२ पृ. स्थान स्वस्थान-स्वस्थान | बिहारक्त स्वस्थान बेदना कषाय समुद्वात वक्रियिक-समधात मारणान्तिक समुद्धात उपपाद तैजस आहारक व केवली समुद्धात भा०४-६१ ४. देव गति ३८२ सामान्य लोक लोक ३८५ भवनवासी लोक त्रि/असं., ति.सं... लोक लोक लोक मरअसं. |च./असं., ति./सं.. स्वनिमित्तक २६ लोक स्वनिमि.-5 लोक स्वनिमि.- मअसं. परनिमित्तक-sh. परनिमि.-50. परनिमि.-5 दोनों अपेक्षा , दोनों अपेक्षा , दोनों अपेक्षा च./असं., मxअसं. क्रमेण . क्रमण : क्रमेण : लोक लोक . । त्रि./असं., ति./सं., मरअसं. DIRE |-व्यन्तर ज्योतिषी ३८८ सौधर्म ईशान 5. लोक लोक लोक a जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश. ३८६/ सनत्कुमार-सहस्रार पाँच युगलोंमें प्रत्येक an For Private & Personal Use Only | क्रमेण : 5 ४८१ wala n लोक ३६१ आनत-अच्युत । (२ युगलोंमें प्रत्येक | सर्व.(असं. लोक लोक लोक . ३६२ नवग्रैवेयक-अपराजित च./असं.. मरअसं. च./असं , मरअसं. च./असं., मरअसं, च./असं., मरअसं. च./असं., म असं. च./असं., मरअसं, . | सर्वार्थसिद्धि . २२४ सामान्य १ त्रि./असं.. ति./स.. मरअसं. लोक लोक . ३. स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ . न लोक लोक .. www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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