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________________ सुगंध दशमी व्रत सुप्रभ सुगंधित सुगंधदशमी व्रत-१० वर्षतक भाद्रपद शु. १० को उपवास तथा नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप। (व्रतविधान संग्रह/पृ.८७); (किशनसिंह क्रियाकोष)। सुगधा-अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र । अपरनाम वगु/-दे. लोक तो-विजया की उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे. विद्याधर सुगत-स. श./टी./२/२२३/२ शोभनं गतं ज्ञानं यस्यासौ सुगतः, सुष्ठु वा अपुनरावर्त्य गतिं गतं, सम्पूर्ण वा अनन्तचतुष्टयं गतः प्राप्तः सुगतः । = जिसका ज्ञान शोभाको प्राप्त हुआ है वह सुगत है । अथवा जो उत्तम मोक्ष गतिको प्राप्त हुआ है, अथवा जिसमें सम्पूर्ण अनन्त चतुष्टय प्राप्त हुए हैं, वह सुगत है । (द्र. सं./टी./१४/४७)। सुगात्र-वरांगका पुत्र (वरांग चरित्र/२८/५)। सुग्रीव-(प. पु./सर्ग/श्लोक...किष्किन्ध पुरके राजा सूर्यरजका पुत्र था तथा बालीका छोटा भाई था। (१/१०) आयुके अन्त में दीक्षित हो गया। (११६/३६) सुचक्षु-१. उत्तर मानुषोत्तर पर्वतका रक्षक व्यन्तर देव-दे. व्यन्तर/४/७। २. बाह्य पुष्कराधका रक्षक व्यन्तर देव-दे. व्यन्तर/४/७। सुचरित मिश्र-मीमांस दर्शनके टीकाकार।-दे.मीमांसा दर्शन। सुतारा-सुग्रीवकी पत्नी थी। साहसगति नामक विद्याधर उसको चाहता था। (प. पू./१०/५-११) सुदर्शन-१.विजया की उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे. विद्याधरः २. सुमेरु पर्वतका अपर नाम- दे. सुमेरुः ३. मानुषोत्तर पर्वतस्थ स्फटिक कूट का स्वामी भवनवासी सुपर्ण कुमार देव-दे. लोक/५/२०% ४. रुचक पर्वतस्थ एक कूट-दे.लोक ६/१३:५. नव वेयक स्वर्गका प्रथम पटल व इन्द्रक--दे स्वर्ग/३६, भगवान वीरके तीर्थ में अन्तकृत केवली हुए-दे. अंतकृत; ७. पूर्वभव नं.२ में वीतशोका पुरीका राजा था। पूर्व भवमें सहसार स्वर्गमें देव हुआ। वर्तमान भवमैं पंचम बलभद्र हुए हैं। (म. पु./६१/६६-६१) विशेष-दे. शलाका पुरुष/३ ८. चम्पा नगरीके राजा वृषभदासका पुत्र था। महारानी अभयमती इनके ऊपर मोहित हो गयीं. परन्तु ये ब्रह्मचर्य में पढ़ रहे । रानीने क्रुद्ध होकर इनको सूलीकी सजा दिलायी, परन्तु इनके शीलके प्रभावसे एक व्यन्तरने सूलीको सिंहासन बना दिया। तब इन्होंने विरक्त हो दीक्षा ग्रहण कर ली। इतने पर भी छलसे रानीने इनको पडगाह कर तीन दिन तक कुचेष्टा की। परन्तु आप ब्रह्मचर्य में अडिग रहे। फिर पीछे बनमै घोर तप किया। उस समय रानीने वैरसे क्यन्तरी बनकर घोर उपसर्ग किया। ये उपसर्गको जीत कर मोक्ष धाम पधारे। (सुदर्शन चरित्र ) सदर्शन चरित्र-१, आ, नयनन्दि (ई. ११३-१०४३) कृत अपभ्रंश काव्य (ती./३/२२५) । २. सकल कीर्ति (ई.१४०६-१४४) कृत १०० श्लोक प्रमाण संस्कृत ग्रन्थ (ती./३/३३३)। ३.विधानन्दि भट्टारक (मि. १५३८) कृत संस्कृत ग्रन्थ । (सी./३/४०५) । सुदर्शन व्रत-दे. दर्शन विशुद्धि । सुवास-यह वैवस्वतयमकी ५२वीं पीढ़ी में इक्ष्वाकु वंशी राजा था। वेदों में इसकी बड़ी प्रशंसा की जाती है जबकि जैनागममें इसकी निन्दा की गयी है। समय-ई.पू. २२०० (रामा कृष्ण द्वारा संशोधित इक्ष्वाकु वंशावली) सुधर्म-भूतावतारकी पट्टावली के अनुसार आप भगवान् वीरके पश्चाव दूसरे केबली हुए। अपर नाम लोहार्य था । समय-बी. नि. १२-१४ (ई.पू. ५१५.५०३)-दे. इतिहास/४/४५ सुधर्म सेन-पुन्नाट संघको गुर्वावलीके अनुसार आप धरसेन (श्रुतावतारसे भिन्न ) के शिष्य तथा सिंहसेनके गुरु थे। -दे. इतिहास/9/८ । सुधमा-सौधर्म इन्द्रकी सभा । विशेष-दे. सौधर्म । सुनंदिषण-१.पुन्नाट संघकी गुर्वावलीके अनुसार आप सिंहसेन के शिष्य तथा ईश्वरसेनके गुरु थे। दे. इतिहास/9/८, २. पुन्नाट संघकी गुर्वावली के अनुसार आप ईश्वरसेनके शिष्य तथा अभयसेन के गुरु थे। - दे. इतिहास/१८ । सुनक्षत्र-महावीरके तीर्थ में अनुत्तरोपपादक--दे. अनुत्तरोपपादक । सुनपथ-प्रवाससे लौटनेपर अर्जुन इसमें रहने लगा (पा, पु./१६/६) क्योंकि यह कुरुक्षेत्रके निकट है अत: वर्तमान सोनीपत ही सुनपथ है। सुपना-१. अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र-दे. लोक ५/२१२. श्रद्धावाद वक्षारका एक कूट व उसका स्वामी देव-दे. लोक/१/४। सुपण-ध. १३/५४५,१४०/३६१/८ सुपर्णा नाम शुभपक्षाकारविकरणक्रिया। - शुभ पक्षों के आकार रूप विक्रय करने में अनुराग रखनेवाले सुपर्ण कहलाते हैं। सुपणं कुमार--१, भवनबासी देवोंका एक भेद-दे. भवन/१/४, २. सुपर्ण कुमार देवोंका लोकमें अवस्थान--दे. भवन/४ । सुपार्श्वनाथ-१. पूर्वभव नं.२ में धातकी खण्डके क्षेमपुर नगरमें नन्दीषण राजा था। पूर्व भवमें मध्य प्रेवेयकमें अहमिन्द्र । वर्तमान भवमें सप्तम तीर्थकर हुए हैं (म. पु./५३/२-१५) विशेष-दे. तीर्थंकर/५। २. भाविकालीन तीसरे तीर्थकर। अपर नाम सप्रभु। -दे, तीर्थंकर/।। सपाश्र्वनाथ स्तोत्र-आ. विद्यानन्दि (ई.७७५-८४०) द्वारा रंचित संस्कृत छन्द बद्ध स्तोत्र है । इसमें तीस श्लोक हैं। सुप्त-दे, निद्रा। सप्रकीर्ण-रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी-दे, लोक/२/१३। सुप्रणिधि-रुचक पर्वत निवासिनी दियकुमारी देवी-दे. लोक:/९३ सप्रतिष्ठ-१. रुचक पर्वतस्थ एक कूट-दे.लोक१३५२.हस्तिनापुर के राजा श्रीचन्द्र का पुत्र था। दीक्षा लेकर ग्यारह अंगोंका अध्ययन किया। तथा सोलह कारण भावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया। समाधिमरण कर अनुत्तर विमानमें अहमिन्द्र पद पाया। (म. पु./७०/५१-५६) यह नेमिनाथ भगवानका पूर्वका दूसरा भव है। --दे. नेमिनाथ। ३. यह पंचम रुद्र थे-दे, शलाका पुरुष/७1 सप्रबंध-रुचक पर्वतस्थ एक कूट--दे. लोक/५/१३ ॥ सुप्रबुद्ध-१. मानुषोत्तर पर्वतस्थ प्रवाल कूट व उसका स्वामी भवनवासी सुपर्ण कुमार देव-दै. लोक।१०:२. नवग्रे वेयकका तृतीय पटल व इन्द्रक-दे. स्वर्ग/२/३ । सुप्रबुद्धा-रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी--दे, लोक/१३ । सुप्रभ-१. कुण्डल पर्वतस्थ एक कूट--दे. लोक/५/१२:२. दक्षिण धृतबर द्वीपका रक्षक देव---दे. व्यं तर/४/७। ३. उत्तर अरुणीवर द्वीपका रक्षक देव-दे. व्यंतर/४/७। ४. पूर्व भव नं.२ में पूर्व विदेह के नन्दन नगरमें महाबल नामक राजा था। पूर्व भम सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भवमें चौथे बलदेव थे । (म.पू/६०/५८-- ६३) । विशेष परिचय--दे. शलाका पुरुष/३ । जनेन्द्र सिवान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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