SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सद्भावानित्य सद्भावानित्य सद्भूत नय नय -- सनत्कुमार- १. चौथा चक्रवर्ती- दे. शलाकापुरुष / २ । २. कल्प वासी देवोंका एक भेद तथा उनका अनस्थान- दे. स्वर्ग / ३५/२ सन्नासन्न -- क्षेत्रका प्रमाण विशेष अपरनाम संज्ञासंज्ञा - दे. fw/1/t/31 सन्निकर्ष सा१२/४.२.११/२-३/२०५ जो सो या सोहसरायणसगियासो क्षेत्र पराणपण सन्यास व २ अपिम्साल-भावविसी सत्यानसन्निवासो नाम अट्टकम्म विसी परस्यावसयियासो नाम । सणियःसो णाम किं । दव्ब खेत्त-काल-भावेसु जहण्णुक्कस्सभेदभिण्णे एक्कम्हि णिरुद्धे सेसाणि किमुक्कस्साणि किमणुक्कस्साणि जिनान कहाणि वा पदाणि होति सि जा परिखा सो सण्णियासो णाम ।। सन्निकर्ष है वह दो प्रकार है- स्वस्थानवेदनार जो वह वेदना सन्निकर्ष है वह दो प्रकार है- स्वस्थानवेश्नसन्निकर्स और परस्थान वेदना सन्निकर्ष ॥२॥ किसी विवक्षित एक कर्म का जो द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव विषयक सन्निकर्ष होता है. यह स्थान कहा जाता है ओर बाठी कर्मों सन्नि कर्ष परस्थान सन्निकर्ष कहलाता है। प्रश्न- सन्निकर्ष ( सामान्य ) किसे कहते हैं । उत्तर - जवन्य व उत्कृष्ट भेद रूप द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भावों में से किसी एकको विवक्षित करके उसमें शेष पद क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है और क्या अजघन्य है, इस प्रकारको जो परीक्षा को जाती है वह सन्निकर्ष है । २. प्रवचन- सन्नि कर्प के लिये ढे० प्रवचन सन्निकर्ष । सनिक प्रमाण ३१२ घ. ३/२.७.२ / २६३ / ९ एका जीवसमासे वा महयो भाषा जम्हि सणिवदति तेसिं भावाणं सण्णिवादिति सण्णा । एक ही गुणस्थान या जीवसमासमें जो बहुतसे भाव आकर एकत्रित होते हैं, उन भावोंकी सान्निपातिक ऐसी संज्ञा है । सान्निपातिक भाव संकेत औ० औदयिक औप० औपदामिक क्षा०- क्षायिक सयो०- क्षायोपशमिक पा०पारिणामिक १. द्विसंयोगी - भंग निर्देश २. सान्निपातिक भावोंके भेद रा. वा./२/७/२२/९९४ /९५ पर उत दुग तिग चहु पंचैव य संयोगा होंति सन्निवादेसु । दस दस पंच य एक्क य भावा छव्वीस पिंडेण || क - सान्निपातिक भाव दो संयोगी, तीन, चार तथा पाँच संयोगी क्रमसे १०, १०, ५ तथा १ इस प्रकार छवीस बताये हैं (ध. ५/१,७,१/ १२२/२)। रा.मा./२/७/२२/११४/१३ सान्निपातिकभावः विशदिविधः पह निशद्विप एकचत्वारिशद्वयः इत्येवमादिरागमे उक्तः सामिपातिक भाव २६, ३६ और ४१ आदि प्रकार के आगम में बताये गये है [ ४१ अंगोंमें २६ व २६ आदि सर्व भंग गर्भित हैं इसलिए नीचे ४१ मंगका निर्देश किया जाता है। Jain Education International क्र. १ ३ ४ ५ ७ ह १० ११ १२ १९३ १५ १९६ १७ १९८ ११६ सनिपातिक भाव- २३ २५ १ साक्षिपातिक भाव सामान्यका लक्षण रा.वा./२/०/२२/९९४/१० सकिएको भावो नास्तीतिसंयोग- २४ भङ्गापेक्षया अस्ति । ( यथा ) औदयिकी पशमिकसान्निपातिक-- जीवाभावो नाम । सान्निपातिक नामका एक स्वतन्त्र भाव नहीं है। संयोग भंगको अपेक्षा उसका ग्रहण किया ।... जैसे औदयिकऔपशमिक मनुष्य और उपशान्त क्रोध । (ज्ञा (६/४२) जीव भाव पातिक है। २० २१ २२ औद. + औद और+औष औद. +क्षा. औद. + श्यो औद + पारि क्र. औप + औप औप + औद औप +क्षा, औप + क्षयो औप + पारि · क्षा. +श्रा. क्षा.+औद क्षा + औप. क्षा+यो क्षा. +पारि क्षयो. +क्षयो. क्षयो + औ मो. + औप. क्षयो +क्षा. मो. +पारि पारि + पारि पारि. +ओ औद पारि. + औप पारि+क्षा, पारि+क्षयो २. त्रिसंयोगी जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भंग निर्देश १ औद. + औप + क्षा. २ औद + औप + क्षयो औद + औप+पा. • ४ औद+क्षा यो ५ औद + क्षा, + पारि. ६) औद + क्षयो + पारि ७ औप + क्षा + पारि, ८ औप+क्षा + पारि. ६ औप + क्षयो + पारि, १० | क्षा. +क्षयो + पारि. For Private & Personal Use Only - विवरण मनुष्य और कोषी मनुष्य और उपशान्त क्रोध मनुष्य और क्षीणकषाय क्रोधी और मतिज्ञानी मनुष्य और भव्य उपशम सम्यग्दृष्टि और उपशान्त कषाय उपशान्त कषाय और मनुष्य उपशान्त क्रोध और क्षायिक सम्यग्दृष्टि उपशान्त कषाय और अवधिज्ञानी उपशम सम्यग्दृष्टि और जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टि और क्षीणकषाय और नृ क्षायिक सम्यग्दृष्टि और उपशान्त वेद क्षीण पायी और मतिज्ञानी क्षीण मोह और भव्य संयत और अधिमानी संत और मनुष्य संयत और उपशान्त कषाय संपतासंयत और क्षायिक सम्यग्दृष्टि अप्रमत्त संयत और जीव जीव और भव्य जीव और क्रोधी भव्य और उपशान्त कषाय भव्य और क्षीण कषाय संत और भ विवरण उपशान्त मोह और क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य उपशान्त क्रोध और वाग्योगी मनुष्य उपशान्तमोह और जीव मनुष्य क्षीणकषाय और बुतज्ञानी मनुष्य क्षायिक सम्यष्टि और जो मनुष्य मनोयोगी और जीव उपशान्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि और काययोगी उपशान्य मेदार और भव्य उपशान्तमान मतिज्ञानी और जीव क्षीणमोह पंचेन्द्रिय और भव्य www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy