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________________ शलाका पुरुष २४ ९. सोलह कुलकर निर्देश १०. नाम११.दण्ड विधान । १२. तात्कालिक परिस्थिति १३. उपदेश प्रमाण देखो पीछे 'lit/8/'h PL म.पू./३/श्लो. १.ति.प./४/४५२-४७४ २, त्रि. सा./४६८ ३.ह.पु./७/१४१-१७६ ४. म. पु./पूर्ववत १. ति.प./पूर्ववत् २. त्रि. सा./988-८०२ ३. प.पु./३/७५-८८ ४. ह.पू./७/१२५-१७० ५. म. पु./पूर्ववत १.ति. प./पूर्ववत् २. त्रि. सा./988-८०२ ३. प. पु./३/७५-८८ ४.ह.पु./७/१२५-१७० ५.म.पु./पूर्ववत | ति.प./४५२ १/४२३-४२८६३-७५ प्रतिश्रुति २४३२-४३८ | ७६-८४ सन्मति ३ | ४४१-४४३ १०-१०१ क्षेमंकर | चन्द्र सूर्यके दर्शनसे प्रजा भयभीत थी| तेजांग जातिके कल्पवृक्षोंकी कमीके कारण अब दीखने लगे हैं। यह पहले भी थे पर दीखते न थे। इस प्रकार उनका परिचय देकर भय दूर करना। तेजांग जातिके कल्प वृक्षोंका लोप। अन्धकार व ताराओंका परिचय अन्धकार व तारागणका दर्शन । देकर भय दूर करना। व्याघ्रादि जन्तुओं में क्रूरताके दर्शन। क्रूर जन्तुओंसे बचकर रहना तथा गाय आदि जन्तुओंको पालनेकी शिक्षा। व्याघ्रादि द्वारा मनुष्योंका भक्षण । अपनी रक्षार्थ दण्ड आदिका प्रयोग करनेकी शिक्षा। कल्प वृक्षोंकी कमीके कारण उनके कल्प वृक्षोंकी सीमाओंका विभाजन ।। स्वामित्व पर परस्पर में झगड़ा। ४४४६-४४७१०२-१०६ । क्षेमन्धर ५ ४५१-४५३ | १०७-१११ । सीमंकर ति.प./४७४ हा, मा, ४५५-४५६ | ११२-११५ | सीमंधर | ४५६ ११६-११६ विमलवाहन ८४६२-४६३ / १२०-१२४ | चक्षुष्मात् हा- हाय; मा= मतकर; धिक्-चिक्कार वृक्षों की अत्यन्त हानिके कारण वृक्षों को चिह्नित करके उनके कलहमें वृद्धि। स्वामित्वका विभाजन । गमनागमनमें बाधाका अनुभव। अश्वारोहण व गजारोहणकी शिक्षा तथा वाहनोका प्रयोग। अबसे पहले अपनी सन्तानका सन्तानका परिचय दे कर भय दूर | मुख देखनेसे पहले ही माता-पिता | करना। मर जाते थे। पर अब सन्तानका मुख देखनेके पश्चात् मरने लगे। बालकोंका नाम रखने तक जीने लगे। बालकोंका नामकरण करनेको शिक्षा बालकोंका बोलना व खेलना देखने | बालकोंको बोलना ब खेलना तक जीने लगे। सिखानेकी शिक्षा। ६४६७-४६८ | १२५-१२८ | १० ४७२-४७३ | १२६-१३३ यशस्वी अभिचन्द्र त्रि. सा. हा, मा. ११ ४७८-४८१ १३४-१३८ । चन्द्राभ धिक | १२४८४-४८६ १३६-१४५ | मरुह व १४६-१५१ । प्रसेनजित १५२-१६३ नाभिराय १४ ४६६-५०० पुत्र-कलत्रके साथ लम्बे काल तक | सूर्य की किरणोंसे शीत निवारणकी जीवित रहने लगे। शीत वायु चलने | शिक्षा। लगी। मेघ, वर्षा, बिजली, नदी व पर्वत | नौका व छातोंकी प्रयोग विधि आदिके दर्शन। तथा पर्वतपर सीढ़ियाँ बनानेकी शिक्षा। बालकोंके साथ जरायुकी उत्पत्ति। | जरायु दूर करनेके उपायकी शिक्षा। १. नाभिनाल अत्यन्त लम्बा होने | १, नाभिनाल काटनेके उपायकी लगा। शिक्षा। २. कल्पद्रुमोंका अत्यन्त अभाव। | २. औषधियों व धान्य आदिको औषधि, धान्य व फलों आदि की | पहचान व विवेक कराया तथा उत्पत्ति। उनका व दूध आदिका प्रयोग करनेकी शिक्षा दी। स्व जात धान्यादिमें हानि । कृषि आदि षट् विद्याओंकी शिक्षा। मनुष्यों में अविवेककी उत्पत्ति। वर्ण व्यवस्थाकी स्थापना। ऋषभदेव भरत जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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