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________________ सत्त्व २८४ ३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं मार्गणा असत्व कुल सत्त्व योग्य असत्वा सत्व कुल गुण स्थान स्थान यथारख्यात क्षा. (x उपशम.) १४८ ११वां) नरक, तियंच, देवायु, दर्शन मोहकी। ३, अनन्तानुबन्धि ओघवत् व्युच्छिन्न ४७ नरकायु १४८ १४८ १२-१४ १ (५वा) १-४ १४६ १४८ " (क्षा, ४ क्षपक.) संयतासंयत असंयत दर्शन मार्गणा-(गो. क./जी.प्र./३५४/५०६/५) चनु, अचच दर्शन अवधि दर्शन केवल , १० लेश्या मार्गणा-(गो. क./जी. प्र./३५४/५०६/७) कृष्ण, नील कापोत पीत, पद्म xx १४८ १४८ १४८ ८१ ओघवत व्युच्छिन्न १४८ १३-१४ तीर्थकर २ xx १४८ १४८ १४८ १४७ १४८ १४८ १४७ तीर्थ कर (तीर्थ.सत्त्ववाला नरक जानेके सन्मुख होय तभी सम्यक्त्वको छोड़े। परन्तु तब लेश्या भी कापोत हो जाये। क्योंकि शुभ लेश्यामें सम्यक्त्वकी विराधना नहीं होती। शुक्ल १४८ ८-१३ भव्यत्व मार्गणा-( गो. क./जी. प्र./३५४-३५५/५०१-५१०/१६ ) xx भव्य १४८ १४८ अभव्य । तीर्थ., सम्य,, मिश्रमोह, आ.द्वि., आ. बन्धन सघात द्वय सम्यक्त्व मार्गणा-(गो.क./जी.प्र./३५६/५१२/२) क्षायिक सम्य. १३६ मरक, तिथंचायु, दर्शन, मोह ३, | १४८ अनन्तानुबन्धी ४ १४८ १४८ १४८ १४९ अनन्तानुबन्धी ४, नरक, तिर्यंचायु -६ तीर्थकर तीर्थ.. आ.द्वि १४२ Mm _w xx uranx x ४-११ ४-११ १(३रा) १(२रा) १४७ १४५ १४८ १४८ बेदक सम्य. उपशम . द्वितीयोपशम (ल. सा./२२०) ४। सम्यग्मिथ्यात्व ५ सासादन ६ मिथ्यादृष्टि १३ संशी मार्गणा-(गो. क./जो.प्र./३५५/५१३१७) १ संज्ञी २ असंज्ञी १४ आहारक मार्गणा-(गो.क./जी.प्र./३५५/५१२/8) १ आहारक २ अनाहारक १४८ १४९ १-१२ तीर्थकर १४८ १४७ १४८ xx १४८ १४८ (१,२,४ । १.२,४) | । ~~ कार्माण काय योगवत् -- -- ओघवत् -- | | जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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