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________________ शलाका पुरुष १०. दश प्रकार भोग परिचय दि. १/४/१३६० दिव्यपुर रंगहि षभायण भोयणाएं समभिव आसणवाहणणट्टा दसंग भोगा इमे ताणं | १३६७। दिव्यपुर ( नगर ), रत्न, निधि, चमू (सैन्य) भाजन, भोजन, शय्या, आसन, वाहन, और नाट्य ये उन चक्रवतियोंके दशांग भोग होते हैं । १३६७॥ ( ह. पु./९९/१३९) (म.पु./३०४१४३)। ११. मस्त चक्रवर्तीकी विभूतियोंके नाम *1.3./20/€. क्रम श्लोक सं. १ २ ३ ६ ८ ह १० ११ १२ १३ १४ १५ १७ १८ ११ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ १४६ ३८ ३६ , १४७ 33 " १४८ १४६ १५० 37 १५१ १५१ १५२ १५३ 39 १५४ १५५ १५६ १५७ १६० १६= १६६ १७० १७२ १७३ १७४ ३७ १७५ १७६ १७० १५ १५६ १६० १६९ १६२ ९६३ १६४ १६५ REG Jain Education International विभूति घरका कोट गौशाला छावनी ऋतुओंके लिए महल सभाम टहलनेकी लकड़ी दिशा प्रेक्षण भवन नृत्यशाला शीतगृह वर्षा ऋतु निवास निवास भवन भण्डार गृह कोठार स्नानगृह रत्नमाला चाँदनी शय्या चमर छत्र कुण्डल खड़ाऊँ कवच रथ धनुष बाण शक्ति माला पुरी are ( अस्त्र विशेष ) तलवार सेट (विशेष) चक्र दण्ड चिन्तामणि रत्न काकिणी (दीपिका) सेनापति पुरोहित गृहपति शिला (पति) नाम क्षितिसार सर्वतोभद्र नन्दार्त वैजयन्त दिग्वसतिका सुविधि गिरिकूटक वर्षमानक धारागृह पुष्करावती कुबेरकान्त वसुधारक जीमूत सिका देवरम्या सिंहवाहिनी अनुपमान सूर्यप्रभ विद्य प्रभ विष मोचिका अमेय अजितंजय 6 वज्रकाण्ड अमोघ वज्रतुण्डा सिघाटक लोह वाहिनी मनोवेग सोनन्टक भूतमुख सुदर्शन चण्डवेग चूड़ामणि चिन्ताजननी अयोध्य बुद्धिसागर कामवृदि भद्रमुख १५ क्रम श्लोक सं. ४० ४१ ४२ ४३ ∞ ∞ ∞ of of ∞ ४४ ४५ ४६ ४७ ?s= १७६ १८० १८२ ४६ १८४ १८५ १८७ १८८ ४८ १८६ १८६ विभूति जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only गज अश्व स्त्री भेरी शंख कड़े भोजन खाद्य पदार्थ स्वाद्यपदार्थ पेय पदार्थ २. हा चक्रवर्ती निर्देश नाम विजयगिरि धमर्ण पवनंजय सुभद्रा आनन्दिनी (१२ योजन शब्द (म. प्र./२०१ १८२ ) गम्भीरावर्त वीरानन्द महाकल्याण अमृतगर्भ अमृतकल्प अमृत १२. दिग्विजयका स्वरूप ति. प./४/१३०३-१३६६ का भावार्थ - आयुधशाला में चक्रको उत्पत्ति हो जानेपर चक्रवर्ती जिनेन्द्र पूजन पूर्वक दिग्विजयके लिए प्रयाग करता है । १३०३-१३०४१ पहले पूर्व दिशाकी ओर जाकर गंगा किनारे-किनारे उपसमुद्र पर्यन्त जाता है | १३०५। रथपर चढ़कर १२ योजन पर्यन्त समुद्र तटपर प्रवेश करके वहाँसे अमोघ नामा बाण फॅक्सा है, जिसे देखकर मागथ देव चकनकी अधीनता स्वीकार कर लेता है | १३०६-१३१४ | यहाँसे जम्बूद्वीपकी वेदीके साथ-साथ उसके वैजयन्त नामा दक्षिण द्वारपर पहुँचकर पूर्वकी भाँति ही वहाँ रहनेवाले वरतनुदेवको वश करता है ।१३१५-१३१६ । यहाँसे वह पश्चिम दिशा की ओर जाता है और सिन्धु नदीके द्वारमें स्थित प्रभासदेवको पूर्ववत् ही वश करता है । १३१७- १३१८ | तत्पश्चात् नदी के तटसे उत्तर मुख होकर विजयार्ध पर्वत तक आता है और पर्वतके रक्षक वैताढ्य नामा देवको वश करता है | १३१६-१३२३ तब सेनापति दण्ड रत्नसे उस पर्वतकी खण्डप्रपात नामक पश्चिम गुफाको खोलता है | १३२५- १३३०। गुफामेंसे गर्म हवा निकलनेके कारण वह पश्चिम म्लेच्छ राजाओंको वश करने के लिए चला जाता है। छह महीने में उन्हें वश करके जब वह अपने कटकमें लौट आता है तब तक उस गुफाकी वायु भी शुद्ध हो नुकती है। १३३११३३६ । अब सर्व सैन्यको साथ लेकर वह गुफा में प्रवेश करता है, और काकिणी रहतसे गुफा के अन्धकारको दूर करता है । और स्थपति रत्न गुफामें स्थित उन्मग्नजला नदीपर पुल बाँधता है। जिसके द्वारा सर्व सैन्य गुफासे पार हो जाती है । ९३३०-९२४९० यहाँपर सेनाको ठहराकर पहले सेनापति पश्चिम खण्डके म्लेच्छ राजाओंको जीतता है ।११४३-१२४८ तत्पश्चाद हिमवान पसपर स्थित हिमवानदेवसे युद्ध करता है। देवके द्वारा अतिघोर वृष्टि की जानेपर छत्ररत्न व चर्म रत्नसे सैन्यकी रक्षा करता हुआ उस देवको भी जीत लेता है । १३४- १३५०। अब वृषभगिरि पर्वतके निकट आता है । और दण्डरत्न द्वारा अन्य चक्रवर्तीका नाम मिटाकर वहाँ अपना नाम लिखता है । १३५१-१३५५ | यहाँसे पुनः पूर्व में गंगा नदी के तटपर आता है, जहाँ पूर्वद सेनापति दण्ड रत्न द्वारा समिक्षा गुफाके द्वारको खोल कर छह महीने में पूर्वखण्डके म्लेच्छ राजाओंको जीतता है। ।१३५६-१३५८ १६६-१८ विजयार्थी उतर के ६० विद्याधरोंको जीतने के पाद पूर्व गुफा द्वार को पार करता है । ९३२६-१२६५। www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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