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________________ - Jain Education International देव्यकी अपेक्षा क्षेत्रकी अपेक्षा कालकी अपेक्षा मार्गणा -संख्या गुणस्थान प.ख. प्रमाण प्रमाण ष,खं. प. वं. प्रमाण असं. का प्रमाण प.वं. प्रमाण शतसहस पृ. पल्य/असं. ७११६ (पन्य/अन्तर्मू. ) से अपहृत -अन्तर्मु.-या/असं. यथारख्यात संयतासंयत असंयत संयत सामान्य सामायिक-छेदोपस्थापक उप० व क्षपक परिहार विशुद्धि मति अज्ञानी बत् - ओघवत ६-१४ ३१ टी./४४६ ६६६७ टी./४४६ ६६७ [ध. ३/१,२,१५०/गा.७४/४५०) । → ओघवत् - [ध, ३/१,२,१११/७६/४५०] ओघवत् - For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १०७ . सूक्ष्म साम्पराय. उप.नक्षप यथारख्यात संयतासंयत असंयत ९. दर्शन मार्गणा चक्षुदर्शनी अचक्षुदर्शनी अवधिदर्शनी केवल दर्शनी चक्षुदर्शनी (गो, जी-/मू-वटी./४८७-४८८/८६१) असं. असं.उत. अब. से अपहृत ७३२१ 1 । | ज. प्र.*(सूच्यंगुल )२ | → असंयतवत् → अवधिज्ञानीवद → केवलज्ञानौवत् ज.प्र. (सूच्यंगुल )२ ___ओघवत् - ___ ओघवत् - → अवधिज्ञानीवत् + → केवलज्ञानीबत - ३१५१ असं,उत, अब, मे अपहृत | २-१२ ३१५ अचक्षु दर्शनी अवधि दर्शनी केवल दर्शनी १०.लेश्या मार्गणा कृष्ण नील कापोत १३-१४ ३१६६ (गो, जी./म्.बटी./ ५३७-५४२/६३२) ३. संख्या विषयक प्ररूपणाएँ असंयतवत् www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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