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________________ पुष्पांजली व्रत पूजा o m अनुसार अकलंक भट्ट के सधर्मा और छत्रचूडामणिके कर्ता वादीभ सिहके गुरु थे । समय-ई०७२०-७८० -दे० इतिहास/७/१। पुष्पांजली-भृतकालीन चौदहवें तीर्थंकर-दे० तीर्थंकर/५ । पष्पांजली व्रत-इस व्रतकी विधि तीन प्रकारसे वर्णन की गयी है--उत्तम, मध्यम व जघन्य । पाँच वर्ष तक प्रतिवर्ष भाद्रपद, माघ व चैत्र शुक्लपक्षकी--उत्तम-५-६ तक लगातार पाँच उपवास । मध्यम-५,७,६ को उपवास तथा ६,८ को एकाशन । जघन्य१६ को उपवास तथा ६-८ तक एकाशन 'ओह्री पंचमेरुस्थ अस्सी जिनालयेभ्यो नमः' इस मन्त्रका त्रिकाल जाप्य । (व्रत विधान सं.. पृ.४१), (क्रियाकोष )। पुष्य-एक नक्षत्र-दे० नक्षत्र । पुष्यमित्र-१. मगध देशाकी राज्य वंशावलीके अनुसार यह शक जातिका सरदार था। जिसने मौर्य काल में ही मगधके किसी भागपर अपना अधिकार जमा लिया था। तदनुसार इनका समय वी.नि. २५५-२८५ (ई.पू २७१-२४६) है । विशेष (दे० इतिहास/३/४) २. म. पु./७४/७१ यह वर्धमान भगवान्का दूरवर्ती पूर्व भव है-दे० वर्धमान । * * * पूजा-राग प्रचुर होनेके कारण गृहस्थों के लिए जिन पूजा प्रधान धर्म है, यद्यपि इसमें पंच परमेष्ठीको प्रतिमाओंका आश्रय होता है, पर तहाँ अपने भाव ही प्रधान है, जिनके कारण पूजकको असंरण्यात गुणी कर्मकी निर्जरा होती रहती है। नित्य नैमित्तिकके भेदसे वह अनेक प्रकारकी है और जल चन्दनादि अष्ट द्रव्योंसे की जातो है। अभिषेक व गान नृत्य आदिके साथ की गयी पूजा प्रचुर फलप्रदायी होती है। सचित्त, व अचित्त द्रव्यसे पूजा, पचामृत व साधारण जलसे अभिषेक, चावलौकी स्थापना करने वन करने आदि सम्बन्धी अनेकों मतभेद इस विषयमें दृष्टिगत हैं, जिनका समन्वय करना ही योग्य है। ran"* । ३ पूजा निर्देश व मूर्ति पूजा एक जिन या जिनालयकी बन्दनासे सबकी वन्दना हो जाती है। एकको वन्दनासे सबकी वन्दना कैसे हो जाती है। देव व शास्त्रकी पूजामें समानता । साधु व प्रतिमा भी पूज्य है। साधुकी पूजासे पाप कैसे नाश होता है। सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी पूज्य नहीं -दे० विनय/।। देव तो भावोंमें हैं मूर्तिमें नहीं। फिर मूर्तिको क्यों पूजते है। पूजा योग्य प्रतिमा -दे० चैत्य चैत्यालय/१। एक प्रतिमामें सर्वका संकल्प । पार्श्वनाथको प्रतिमापर फण लगानेका विधि निषेध । बाहुबलिकी प्रतिमा सम्बन्धी शंका समाधान । क्षेत्रपाल आदिको पूजाका निषेध -दे० मूढता। पूजा योग्य द्रव्य विचार अष्ट द्रव्यसे पूजा करनेका विधान । अष्ट द्रव्य पूजा व अभिषेकका प्रयोजन व फल । पंचामृत अभिषेक निर्देश व विधि । सचित्त द्रव्यों आदिसे पूजाका निर्देश। चैत्यालयमें पुष्प वाटिका लगानेका विधान -दे० चैत्य चैत्यालय/२। सचित्त व अचित्त द्रव्य पूजाका समन्वय । निर्माल्य द्रव्यके ग्रहणका निषेध । पूजा विधि पूजाके पाँच अंग होते हैं। पूजा दिनमें तीन बार करनी चाहिए। एक दिनमें अधिक बार भी वन्दना करे तो निषेध नहीं -दे०वन्दना। रात्रिको पूजा करनेका निषेध । चावलोंमें स्थापना करनेका निषेध । स्थापनाके विधि निषेधका समन्वय । पूजाके साथ अभिषेक व नृत्य गानादिका विधान । ७ द्रव्य व भाव दोनों पूजा करनी योग्य है। पूजा विधानमें विशेष प्रकारका क्रियाकाण्ड । | पूजा विधानमें प्रयोग किये जानेवाले कुछ मन्त्र -दे० मन्त्र। | पूजामें भगवान्को कर्ता हर्ता बनाना -दे० भक्ति/१। पंच कल्याणक -दे० कल्याणक। | देव वन्दना आदि विधि -दे० वन्दना। स्तव विधि -दे० भक्ति/३। पूजामें कायोत्सर्ग आदिकी विधि -दे० बन्दना । पूजासे पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए। पूजाके प्रकरणमें स्नान विधि -दे० स्नान । " * "Sar9 | भेद व लक्षण पूजाके पर्यायवाची नाम। पूजा के भेद-१. इज्यादि भेद: २. नाम स्थापनादि । | इज्यादि पाँच मेदोंके लक्षण । नाम, स्थापनादि पूजाओंके लक्षण । निश्चय पूजाके लक्षण। | पूजा सामान्य निर्देश व उसका महत्त्व पूजा करना श्रावकका नित्य कर्तव्य है। | सावध होते हुए भी पूजा करनी चाहिए -दे० धर्म/५/२। सम्यग्दृष्टि पूजा क्यों करे -दे० विनय/३ । | प्रोषधोपवासके दिन पूजा करे या न करे -दे० प्रोषध/४। पूजाकी कथंचित् इष्टता अनिष्टता -दे० धर्म/४-६ । नंदीश्वर व पंचमेरु पूजा निर्देश। पूजामें अन्तरंग भावोंकी प्रधानता । जिन पूजाका फल निर्जरा व मोक्ष । जिन पूजा सम्यग्दर्शनका कारण है -दे० सम्यग्दर्शन/III/11 * * * * * * * | जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा०३-१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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