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________________ शरीराहारविषघातसे पूरण और अथवा आदिके पुद्गल ६७ पुद्गल पुदगल-जो एक दूसरेके साथ मिलकर बिछुडता रहे, ऐसा पूरण मूर्तस्वभाव, १५ अमूर्त स्वभाव, १६ एकप्रदेशम्वभाव,१७. अनेकप्रदेशगलन स्वभाबी मूर्तीक जड पदार्थ 'पुद्गल' ऐसी अन्यर्थ संज्ञाको स्वभाव, १८. विभावस्वभाव, १६. शुद्धस्वभाव, २०. अशुद्धस्वभाव, और २१, उपचरितस्वभाव। (तथा २२. अनुपचरित स्वभाव, २३. प्राप्त होता है। तहाँ भी मूलभूत पुद्गल पदार्थ तो अविभागी परमाणु एकान्तस्वभाव, और २४. अनेकान्त स्वभाव (न.च../७० की टी) ही है। उनके परस्पर बन्धसे ही जगत् के वित्र विचित्र पदार्थोका ये द्रव्यो के विशेष स्वभाव है। उपरोक्त कुल २४ स्वभावोमेसे अमूर्त, निर्माण होता है, जो स्कन्ध कहलाते है। स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण मे चैतन्य व अभव्य स्वभावसे रहित पुद्गलके २१ सामान्य विशेष पुद्गलके प्रसिद्ध गुण है। स्वभाव है (न. च वृ./७०)। १.पुद्गल सामान्यका लक्षण १. निरुक्तथर्थ ५. पुद्गल द्रब्यके विशेष गुण त. सू./१२३ रूपर्शरसगन्धवर्णवन्त' पुद्गला' ।२३। -पुद्गल स्पर्श, रस, रा,बा1/१/२४,२६/४३४/१२ पूरण गलनान्वर्थ मंज्ञरवान पुद्गला' ।२४।। गन्ध और वर्णवाले होते है। (न.च. वृ./१३); (ध, १५/३३/६); भेदसघाताम्या च पूर्यन्ते गलन्ते चेति परणगलनारिमको क्रियामन्तर्भाव्य पुदगलशब्दोऽन्वर्थ- ... पुद्गलानाद्वा (२६॥ अथवा पुमासो (प्र. सा./त. प्र./१३२)। न, च. वृ./१४ बण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ठ णायब्बा ।१४। पाँच जीवा, ते. शरीराहारविषयकरणोपकरणादिभावेन गिल्यन्त इति वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध, और आठ स्पर्श ये पुद्गलके विशेष गुण है। पृद्गला' । =भेद और संघातसे पूरण और गलनको प्राप्त हो वे आ. प./२ पुद्गलस्य स्पर्शरसगन्धवर्णा मूर्त्तत्वमचेतनत्वमिति षट् । पुद्गल है यह पुद्गल द्रव्यकी अन्वर्थ संज्ञा है ।२४। अथवा पुरुष यानी - पुदगल द्रव्यके स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, मूर्तत्व और अचेतनत्व, ये जीव जिनको शरीर, आहार विषय और इन्द्रिय-उपकरण आदिके छह विशेष गुण है। रूपमें निगलें अर्थात ग्रहण करें वे पुद्गल है ।२६। प्र. सा./त प्र./१२६, १३६ भाववन्तौ क्रियावन्तौ च पुदगलजीवी परिनि, सा/ता, वृह गलनपूरणस्वभावसनाथः पुद्गल' जो गलन णामाद्भेदसंघाताभ्यां चोत्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानत्वात् ।१२।। पूरण स्वभाव सहित है, वह पुद्गल है। (द्र, सं./टी./१५/१०/१२); गद्धगलस्य बन्धहेतुभूतस्निग्धरुक्षगुणधर्मत्वाच्च ।१३६। -पुद्गल तथा (द्र. सं./टी./२६/७४/९)। जीव भाववाले तथा क्रियावाले है। क्योंकि परिणाम द्वारा तथा २. गुणोंकी अपेक्षा संघात और भेदके द्वारा वे उत्पन्न होते है टिकतें है और नष्ट होते है ।१२। (पं. का./ता, वृ/२७/५७/६); (पं.ध/उ./२५) । बन्धके त. स./५/२३ रपर्शरसगन्धवर्ण वन्त' पुद्गला. १२३१ -स्पर्श, रस, गन्ध हेतुभूत स्निग्ध व रुक्षगुण पुद्गलका धर्म है ।१३६। और वर्ण वाले पुद्गल होते हैं । ६. पुद्गलके प्रदेश १.पुद्गलके भेद नि. सा./मू ३५ संखेज्जासंखेज्जाणं तप्रदेशा हवं ति मुत्तस्स ॥३५॥ = १. अणु व स्कन्ध पुद्गलोंके संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश है। १० (त. सू./ त. सू./५/२५ अणव' स्कन्धाश्च ।२१ -पुद्गलके दो भेद है-अण १/१०); (प. प्र.मू./२/२४); (द्र.सं./मू./२५ ) । और स्कन्ध। प्र. सा./त. प्र/१३५ द्रव्येण प्रदेशमात्रत्वादप्रदेशत्वेऽपि द्विप्रदेशादिसंख्ये यासंख्येयानन्तप्रदेशपर्यायेणानवधारितप्रदेशत्वात्पुद्गलस्य । - पुद्गल २. स्वभाव व विभाव द्रव्य यद्यपि द्रव्य अपेक्षासे प्रदेशमात्र होनेसे अप्रदेशी है । तथापि दो नि. सा./ता. वृ./२० पुद्गल द्रव्यं तावद विकल्पद्वयसनाथम् । स्वभाव- प्रदेशोंसे लेकर सख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशोंवाली पर्यायोपुद्गलो विभावपुद्गलश्चेति । -पुद्धगल द्रव्यके दो भेद हैं-स्वभाव- की अपेक्षासे अनिश्चित प्रदेशवाला होनेसे प्रदेशवान है (गो.जी./ पुद्गल और विभाव पुदगल । मू/५८५/१०२५)। ३. देश प्रदेशादि चार भेद-दे० स्कन्ध/१। ७. शब्दादि पुद्गल द्रव्यको पर्याय हैं ३. स्वभाव विभाव पुदगलके लक्षण त सू/१/२४ शब्दबन्धसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायाऽऽतपोद्योतनि. सा/ता. वृ/ तत्र स्वभावपुद्गल' परमाणु' विभावपुद्गल स्कन्धः । वन्तश्च ।२४। तथा वे पुद्गल शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, उनमे, परमाणु वह स्वभावपुद्गल है और स्कन्ध वह विभाव सस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप, और उद्योतवाले होते है। पुद्गल है। ।२४। अर्थात् ये पुद्गल द्रव्यकी पर्याय है। (द्र.सं./म./१६)। रा, वा./५/२४/२४/४६०/२४ स्पर्शादयः परमापूनां स्कन्धानां च भवन्ति ४. पुद्गलके २१ सामान्य विशेष स्वमाव शम्दादयस्तु स्कन्धानामेव व्यक्तिरूपेण भवन्ति ।...सौक्ष्म्यं तु अन्त्यआ.प./४स्वभावा कथ्यन्ते। अस्ति स्वभाव नास्तिस्वभावः नित्यस्वभावः मणुष्वेव आपेक्षिकं स्कन्धेषु । -स्पर्शादि परमाणुओके भी होते हैं अनित्यस्वभाव' एकस्वभाव' अनेकस्वभाव' भेदस्वभाव. अभेदस्वभावः स्कन्धोंके भी पर शब्दादि व्यक्त रूपसे स्कन्धोंके ही होते है।.. भव्यस्वभाव अभब्यस्वभावः परमस्वभावः द्रव्याणामेकादशसामान्य सौक्ष्म्य पर्याय तो अणुमें ही होती है, स्कन्धोंमें तो सौक्ष्म्यपना स्वभावाः । चेतनस्वभावः, अचेतनस्वभावः मूर्तस्वभाव. अमूर्तस्वभाव' आपेक्षिक है। (और भी दे०-स्कन्ध/१)। एकप्रदेशस्वभावः अनेकप्रदेशस्वभाव. विभावस्वभाव. शुद्धस्वभावः अशुद्धस्वभाव, उपचरितस्वभाव एते द्रव्याणां दश विशेषस्वभावाः। ८. शरीरादि पुद्गलके उपकार हैं जीवपुद्गलयोरेकविशतिः। स्वभावोंको कहते है। १. अस्तिस्वभाव, त.सू/१६-२० शरीरवाड्मन प्राणापाना. पुद्गलानाम् ॥१६॥ सुख२. नास्तिस्वभाव, ३ नित्यस्वभाव, ४. अनित्यस्वभाव, ५. एकस्व- दुखजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥२०॥ भाव, ६. अनेकस्वभाव, ७.भेदस्वभाव, ८.अभेदस्वभाव, ६. भव्य- स. सि./१/२०/२८/२ एतानि सुखादीनि जीवस्य पुगलकृत उपकार, स्वभाव, १० अभव्यस्वभाव, और ११. परमस्वभाव, ये द्रव्यों के मूर्तिमद्ध'तुसंनिधाने सति तदुत्पत्ते.। = शरीर, वचन मन और ११ सामान्य स्वभाव है। १२. चेतस्वभाव, १३. अचेतनस्वभाव, १४. प्राणापान यह पुद्गलोका उपकार है ।१६। सुख, दुख, जीवन और जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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