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________________ व्यंतर ३. व्यंतरोकी देवियोका निर्देश उतने मात्र क्षेत्रको विक्रिया बलसे पूर्ण करते है ।१६। सरख्यात वर्षप्रमाण आयुसे युक्त व्यन्तर देव एक समय मे सरख्यात योजन और असख्यात वर्धप्रमाण आयुसे युक्त अस रख्यात योजन जाता है ।६) ५. व्यतरदेव मनुप्योंके शरीरों में प्रवेश करके उन्हें विकृत कर सकते हैं भ, आ/मू /११७७/१७४१ जदि वा एस ण की रेज्ज विधी तो तत्थ देवदा कोई। आदाय तं कलेवरमुठिज्ज रमिज्ज बोधेज्ज ।१९७७। यदि यह विधि न की जावेगी अर्थात् क्षपक्के मृत शरीर के अंग बाँधे या छेदे नही जायेगे तो मृत शरीरमे क्रीडा करनेका स्वभाववाला कोई देवता (भूत अथवा पिशाच ) उसमे प्रवेश करेगा । उस प्रेतको लेकर वह उठेगा, भागेगा, क्रीडा करेगा ।१९७७) स्या,मं/११/१३५/१० यदपि च गयाश्राद्वादियाचनमुपलभ्यते, तदपि तादृश विप्रलम्भकबिभगज्ञानिव्यन्तरादिकृतमेव निश्चेयम् । = बहुतसे पितर पुत्रोके शरीरमें प्रविष्ट होकर जो गया आदि तीर्थ स्थानोमे श्राद्ध करनेके लिए कहते है, वे भी कोई ठगनेवाले विभ गज्ञानके धारक व्यन्तर आदि नीच जातिके देव ही हुआ करते है। २. व्यंतरेन्द्रोका परिवार ति, ५/६/६८ पडिइदा सामणिय तणुरक्खा हो ति तिणि परिसाओ। सत्ताणीय-पइणा अभियोगं ताण पत्तेय ।६८। - उन उपरोक्त इन्द्रोमेसे प्रत्येकके प्रतीन्द्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनो पारिषद, सात अनीक. प्रकीर्णक और आभियोग्य इस प्रकार ये ८ परिवार देव होते है (और भी दे० ज्योतिष/१/५) । दे० व्यतर/३/१ (प्रत्येक इन्द्रके चार-चार देवियाँ और दो-दो महत्तरिकाएँ होती है।) प्रत्येक इन्द्र के अन्य परिवार देवो का प्रमाण - (ति. प/६/६६ ७६ ): (त्रि सा /२७६-२८२) । | परिवार देवका नाम गणना नं० परिवार देवका नाम गणना १ ४००० १६००० ६. व्यंतरोंके शरीरोंके वर्ण व चैत्य वृक्ष ति ५/६/गा, नं. (त्रि. सा./२५२-२५३) १ प्रतीन्द्र सामानिक आत्मरक्ष अभ्यतर पारि० ५ मध्य पारि० ६ बाह्य पारि० अनीक प्रत्येक अनीक्की प्रथम कक्षा २८००० द्वि० आदि कक्षा दूनी दूनी हाथी (कुल) ३५५६००० सातो अनीक २४८६२००० प्रकोणक असख्य आभियोग्य व | , (त्रि.सा. किल्विष ११ १०,००० १२,००० १२ वर्ण । नाम गा २५ वर्ण वृक्ष ! नाम । गा.५५-५६, गा २८ । गा २५ ५७-५८ गा. वृक्ष गा २८ किन्नर प्रिय गु किम्पुरुष महोरम | श्याम सुवर्ण | यक्ष राक्षस अशोक चम्पक नागद्रुम तुम्बुर श्याम | न्यग्रोध | श्याम कण्टक वृक्ष श्याम तुलसी कज्जन्न कदव ३. व्यंतरोंकी देवियोका निर्देश गन्धर्व पिशाच २.१६ इन्द्रोंकी देवियों के नाम व संख्या (ति ५/६/३५-५४), (त्रि. सा./२५८ २७८ ) । गणिका बल्लभिका नं० इन्द्रका नाम -- न०१ न०२ . न०१ नं०२ २. व्यंतर इन्द्र निर्देश १. व्यन्तरोंके इन्द्रोंके नाम व संख्या ति. प /६/गा ताणं किपुरुसा क्णिरा दुवे इदा ॥३५॥ इय क्पुिरिसाजिंदा सप्पुरुसो ताण सह महापुरिसो।३१ महोरगया। महाकाओ अतिकाओ इंदा ३६गधव्वा । गोदरदी गीदरसा इंदा।४१ ताण वे माणिपुग्णभहिंदा ।४३३ रवरखमइदा भीमो महाभीमो॥४५॥ भूदिदा सरूवो पडिरूवो ।४। पिसाचइदा य कालमहाकाला ।४। सोलसमोम्हिदाण किणरपहुदोग होति ।५०। पढमुच्चारिदणासा दक्षिण इंदा हब ति एदेसु । चरिद उच्चारिदणामा उत्तरइदा पभावजुदा ॥१६॥ (त्रि सा./२७३-२७४) । किपुरुष किन्नर ८ देवका | देवका नाम । दक्षिणेद्र उत्तर द्र मधुरा सुस्वरा सत्पुरुष पुरुषाकाता महापुरुष पुरुषदर्शिनो ५ महाकाय भोगवती अतिकाय | भुजगप्रिया गीतरति सुघोषा गीतरस सुस्वरा | मणिभद्र भद्रा १० पूर्णभद्र | पद्ममालिनी भोम सर्व सेना महाभीम रुद्रवती भूतकान्ता प्रतिरूप भूतरक्ता १५ काल कला १६ महाकाल सुरसा मधुरालापा अबत सा केतुमती मृदुभाषिणी रतिसेना | रतिप्रिया सोम्याराहिणी नवमी भोगा ही | पुष्पवती भुजगा भोगाभोगवती विमला आनन्दिता पुष्पगधी अनिन्दिता सरस्वती स्वरसेना सुभद्रा नन्दिनी । प्रियदर्शना मालिनी कुन्दा बहुपुत्रा सर्वश्री तारा उत्तमा रुद्रा वसुमित्रा भूता रत्नाड्या चनप्रभा महावाह रूपवती बहरूपा अम्बा सुमुखी सुसीमा कमला कमल प्रभा सदनिका उत्पला सदर्शना दक्षिणे द्र । उत्तरेद्र नाम पद्मा किन्नर १२ क्पुिरुष महोरग किपुरुष किन्नर यक्ष मणिभद्र सत्पुरुष महापुरुष | राक्षस भीम महाकाय | अतिकाय भूत स्वरूप गातरति गोतरस पिशाच काल पूर्ण भद्र महाभीम प्रतिरूप महाकाल 8 गधव रसा इस प्रकार किन्नर आदि सालह व्यन्तर इन्द्र है।५॥ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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