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________________ वर्गणा ५१२ १. भेद व लक्षण *GSusm. व्यवहार्य जाति ५ ही है परन्तु सर्वमूर्तीक व अमूर्तीक भौतिक __ क. पा.५/४-२२/४७३/३४४/८ एवमेगेगसरिसधणियपरमाणू घेत्तूण पदार्थों में प्रदेशो की क्रमिक वृद्धि दर्शाने के लिए उसके २३ भेद करके वण्णच्छेदणए करिय दाहिणपासे कंडुज्जुवपंतिरयणा कायव्वा जाव बताये गये है। उस-उस जातिको वर्गणासे उस-उस जातिके ही अभवसिद्धिएहि अणं तगुणं सिद्धाणमणतभागमेत्तख रिसधणियपरमाणू पदार्थ का निर्माण होता है, अन्य जातिका नहीं। परन्तु परमाणुओंकी समत्ता त्ति । एदेसि सम्वेसि पि वग्गणा ति सण्णा । इस प्रकार हानि या वृद्धि हो जानेसे वह वर्गणा स्वय अपनी जाति बदल दूसरी (दे० वर्ग) समान धनवाले एक-एक परमाणुको लेकर बुद्धि के द्वारा जातिको वर्गणामें परिणत हो सकती है। छेद करके (छेद करनेपर जो उतने-उतने ही अविभाग प्रतिच्छेद प्राप्त होते है, उन सबको) दक्षिण पार्श्वमें माणके समान ऋज पंक्तिमें रचना करते जाओ और ऐसा तब तक करो जब तक अभव्य राशिसे भेद व लक्षण अनन्त गुणे सिद्धराशिके अनन्तवे भागप्रमाण ( वे सबके सब) समान धनवाले परमाणु समाप्त हों। उन सब वर्गोंकी वर्गणा सज्ञा है। | वर्गणा सामान्यका लक्षण । (ध. १२/४,२.७.१६६/६३/८)। प्रथम द्वितीय आदि वर्गणाके लक्षण । स सा./आ./५२ वर्गसमूहलक्षणा वर्गणा ।-वर्गाके समूहको वर्गणा कहते द्रव्य क्षेत्र काल वर्गणाका निर्देश व लक्षण। है ( गो. जी./म.प्र./५६/१५३/१४ ) । । वर्गणाके २३ भेद। आहार आदि पॉच वर्गणाओंके लक्षण । २. प्रथम द्वि भादि वर्गणाके लक्षण ग्राह्य अग्राह्य वर्गणाओंके लक्षण । ध १२/१,२,७.२०४१४५/६ बग्गणंतरादो अविभागपडिच्छेदुत्तरभावी व, अवश्य व सान्तरनिरन्तर वर्गणाओंके लक्षण । पढमफदायजादिवग्गणा होदि । तत्तो पडि णिर तर अविपडिच्छेदुप्रत्येक शरीर व अन्य वर्गणाओके लक्षण । त्तरकमेण बग्गणाओ गंतूण पदमफदयस्स चरिमवग्गणा होदि । महास्कन्ध-दे० स्कन्ध । मक वर्गणान्तरसे एक-एक अविभाग प्रतिच्छेदसे अधिक अनुभागका नाम प्रथम स्पर्धकको आदि वर्गणा है। उससे लेकर निरन्तर एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद की अधिकताके क्रमसे वर्गणाएँ जाकर प्रथम वर्गणा निर्देश स्पर्धककी अन्तिम वर्गणा होती है-(विशेष दे० स्पर्धक ) । १ , वर्गणाओमें प्रदेश व रसादिका निर्देश । ल. सा./भाषा/२२३/२७७/६ ऐसी (जघन्य वर्ग रूप) जेती परमाणू २ प्रदेशाको क्रमिक वृद्धि द्वारा वर्गणाओकी उत्पत्ति । होइ तिनिके समूहका नाम प्रथम वर्वणा है। बहुरि यात द्वितीयादि ३। ऊपर व नीचेकी वर्गणाओंके भेद व सघातसे वर्गणानिधिपे एक-एक चय घटता क्रमकरि परमाणूनिका प्रमाण है । वर्गणाओंकी उत्पत्ति । -(विशेष दे० स्पध क ) । ४ ; पाच वर्गणा हो व्यवहार योग्य है अन्य नहीं । ५ अव्यवहार्य भी अन्य वर्गणाओका कथन क्यो । ३. द्रव्य क्षेत्र काल वगणा निर्देश व लक्षण ६ । शरीरों व उनकी वर्गणाओम अन्तर । घ. व १४/५.६/मूत्र ७१/११ वग्गण णिखेति छवि है ७ वर्गणाओंने जातिभेद सम्बन्धी विचार । णिक्खवे-शामवग्गणावण वग्गणा दबवग्गणा खेत्तवग्गणा काल१ वर्गणाओ ने जातिभेद निर्देश। वग्गणा भाव वग्गणा चेदि ।७१। २ तीनो शरीरो की वर्गणाओमे कश चित् भेदाभेद । ध.१२/५.६,७१/५२/४ नयादरित दव्वग्गणा दुनिहा-कम्मवग्गणा णो३ आठो कर्मोको वर्गणाओमे कथचित् भेदाभेद । कम्मरगणा चेदि । तत्थ कम्मरगणा णाम अठकम्मक्खंधवियप्पा। कार्मण बगंणा एक हो बार आठ कम क्यो नही हो मेसएक्कोणवीस वग्गणाओणाकम्मबग्गणाओ।एगागासोगाहणप्पहुडिजाती। -दे० बन्ध/५/२। पदे मुत्तरादिकमेण जाय देमूणघणन गेत्ति ताब एदाओ खेत्तवग्ग४ प्रत्येक शरीरर्गणा अपनेसे पहले व पीछेवाली णाओ। कम्मदच पडच्च समयाहियावलि यप डि जाव कम्मवर्गणाओसे उत्पन्न नी हाती। दिदि त्ति ण। कम्म"व्य पद्रच एगसमयादि जाप अस खेज्जा लोगा ८ ऊपर व नोचेकी वर्गणाभि परस्पर सक्रमणकी त्ति ताव एदाआ कालवागणाओ। ओदइयादि पचण्ण भावाणं जे सम्भावना व समन्वय । भेदा ते णोआगम भाव वग्गणा । वर्गणा निक्षेपका प्रकरण है। ९ भेदसघात व्यपदेशका स्पष्टीकरण । वर्गणानि वेप चार प्रकारका है-नामवर्गणा, स्थापनावर्गणा, द्रव्ययोग वर्गणा -दे० योग/६। वर्गणा, क्षेत्रपणा, कालबर्गणा और भारवर्गणा [ इनमेंसे अन्य सब वर्गणाओके लक्षण निक्षेपोबत जानने-(दे० निक्षेप)] तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यवर्गणा दा प्रकारकी है-कर्मवर्गणा और नोकर्मवर्गणा। उनमेसे आठ प्रकार के कर्म स्कन्धोके भेद कर्मवर्गणा है, तथा शेष उन्नीस प्रकार को बर्गणाएँ (दे० अगला शीर्षक) नोकवर्गणाएँ है। एक आकाश प्रदेशप्रमाण अवगाहनासे लेकर १. भेद व लक्षण प्रदेशात्तर आदि क्रमसे कुछ कम धनलोक तक ये सब क्षेत्र वर्गणाएँ है। कर्म द्रव्यकी अपेक्षा एक समय अधिक एक आवलीसे लेकर १. वर्गणा सामान्यका लक्षण उत्कृष्ट कर्म स्थिति तक और नोकर्म द्रव्यकी अपेक्षा एक समयसे रा वा./0/11/१०/- तथेव समगुणा पक्तीकृत' वर्गावर्गणा। इन लेकर असरख्यात लाक्प्रमाण काल तक ये सब काल वर्गणाएँ समगुणवाले .ममख्या तक वर्गोके ममूहको (दे० वर्ग) वगणा है। • औदपिकादि पाँच भावोंके जो भेद है वे सब नोआगम भाव वर्गणा है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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