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________________ कोक ३. जम्बूद्वीप निर्देश .. जम्बूद्वीपमें क्षेत्र पर्वत नदी भादिका प्रमाण १. क्षेत्र, नगर आदिका प्रमाण (ति. प./४/२३६६-२३६७); (ह.पू./२/८-१९): (ज. प./५/१५)। ३. नदियोंका प्रमाण (ति../४/२३८०-२३८५); (ह. पू./५/२७२-२७७); (त्रि. सा./७४७ ७५०) (ज. प./२/११७-१८) प्रत्येक नाम | कुल प्रमाण विवरण नाम গনা विवरण परिवार महाक्षेत्र भरत हैमवत आदि (दे० लोक/३/21 कुरुक्षेत्र देवकुरु व उत्तर कुरु। कर्मभूमि भरत, ऐरावत व २ विदेह । भोगवमि हैमवत, हरि, रम्यक ब हैरण्यवत तथा दोनों कुरुक्षेत्र । आर्यखण्ड प्रति कर्मभूमि एक। म्लेच्छ खण्ड १७० प्रति कर्मभूमि पाँच। राजधानी ३४ ।। प्रति कर्मभूमि एक। विचाधरोंके ३७५० भरत व ऐरावतके विजयाधों में से नगर। प्रत्येकपर ११५ तथा १२ विदेहोंके विजयाओं में से प्रत्येक पर ११० (दे० विद्याधर)। २१४००० २८००२ भरतक्षेत्रमें रोहित-रोहितास्या | २२८००० हमवत क्षेत्र में हरित-हरिकाम्ता |२००० १५२००२ हरि क्षेत्रमें नारी नरकान्ता २९६००० ११२००२ रम्यक क्षेत्र में ISमुवर्णकूला व २२८००० १६००२ हरण्यवत क्षेत्रमें रूप्यकुला रक्ता-रक्तोदा २१४००० २८००२ ऐरावतक्षेत्र में छह क्षेत्रोंकी ३६२०१२ कुल नदियाँ | सीता-सीतोदा २८४000१६८००२ दोनों कुरुओंमें क्षेत्र नदियाँ६४१४००० | ८४६०६४ | ३२ विदेहोंमें विभंगा १२x ...१२ - विदेहको कुल नदियाँ । जम्बू द्वीपको । की अपेक्षा १४५६०१० कुल नदी विभंगा १२ २८००० जम्बूद्वीपको १७६२०१० ति, प. की अपेक्षा 17कुल नदो |१०६४०७८ ह.पू.बज.प. ३३८००० २. पर्वतोंका प्रमाण (ति, प.४/२३६४-२३६७); ( ह. पु.१/८-१०); (त्रि. सा/७३१); (ज. प./१/१५-१८,६८)। ४. द्रह-कुण्ड आदि ५ नाम गणना विवरण नं. नाम गणना विवरण व प्रमाण - - १६ २ - ।।३। कुण्ड वृक्ष गुफाएँ बन १७६२०१० २ ६८ अनेक - मेरु जम्बूद्धीपके बीचोबीच। कुलाचल हिमवान् आदि (दे० लोक/३/३ )। विजया प्रत्येक कर्मभूमिमें एक। वृषभगिरि प्रत्येक कर्मभूमिके उत्तर-मध्य म्लेच्छ खण्डमें एक। नाभिगिरि हैमवत, हरि, रम्यक बहरण्यवत क्षेत्रोंके बीचोबीच। वक्षार पूर्व व अपर विदेहके उत्तर व दक्षिण में चार-चार। गजदन्त मेरुकी चारों विदिशाओं में । दिग्गजेन्द्र विदेह क्षेत्रके भद्रशालवनमें दोनों 'कुरुओंमें सीता व सीतोदा नदीके दोनों तटोपर। | यमक दो कुरुओंमें सीता व सीतोदाके दोनों तटोपर। |१० कांचन गिरि | २०० दोनों कुरुओंमें पाँच-पाँच द्रहोंके दोनों पार्श्वभागों में दस-दस । कुलाचलोंपर ६ तथा दोनों कुरुमें १०(ज. प./१/६७)। नदियों के बराबर (ति.प./४/२३८६)। जम्बू व शाल्मली (ह. पु./1/८) ३४ विजयाधोंकी (ह. पु./१/१०) मेरुके ४ वन भद्रशाल, नन्दन, सौमनस व पाण्डुक । पूर्वापर विदेहके छोरोपर देवारण्यक व भूतारण्यक । सर्व पर्वतोंके शिखरोंपर, उनके मूल में, नदियोंके दोनों पार्श्वभागों में इत्यादि । (ति.प./४/२३६६) कुण्ड, बनसमूह, नदियाँ, देव नगरियाँ, पर्वत, तोरण द्वार, द्रह, दोनों वृक्ष, आर्य खण्डके तथा विद्याधरोंके नगर आदि सबपर चैत्यालय हैं -(दे० चैत्यालय)। ९६८ चश्यालय अनेक जैमेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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