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________________ लोक ४३३ १. लोकस्वरूपका तुलनात्मक अध्ययन चित्र- ४ सामान्य लोक सत्यलोक लौकान्तिकदे । अमर गण १२००,००,००० यो. १२ करोड योजन ऊपर सत्यलोक है, जहाँ फिरसे न मरनेवाले जीव रहते हैं, इसे ब्रह्मलोक भी कहते है। भूलोक व सूर्यलोकके मध्यमें मुनिजनोंसे सेवित भुवलौक है और सूर्य तथा धुवके बीच में १४ लाख योजन स्वर्लोक कहलाता है। ये तीनों लोक कृतक है । जनलोक, तपलोक व सत्यलोक ये तीन अकृतक हैं। इन दोनो कृतक व अकृतकके मध्य में महर्लोक है। इसलिए यह कृताकृतक है। ( अध्याय ७)। तपलोक (वैराज देव) सनक अदि) ८००,००,००० यो वजनलोक (ब्रह्मा पुत्र) २००,00,००० यो महलोक (भृगु आदि सिद्ध गा १००,00,000 यो ध्रुव 1 चित्र-२ जम्बू द्वीप 3 १००,000 यो. . अंगी पर्वत उतरकुरु wereo० यो. श्वेत पर्वत हिरण्यमय २००,००० मो. । २००,००० यो. नील पर्वत रम्यक् BESTHA २००,००० यो. पीपल दृश र कदन इलावृत 200,000 यो MONOKA निषध पर्वत २७07000 यो HOSTOP यो हैमकूट पर्वत १००,००० सौ. हिमवान पर्वत १००,000 यो कपुरूष भुव लोक मलोक भारत भूलोक) दे-पीछे चित्र -१वर (पाताल) दे-पीछे चिन्न-३ भूलोक के नीचे पाताल लोक भूलोकके नीचे सप्त पाताल है।तथा उनके नीचे शेषशायी भगवान विष्णु विश्राम करते है महाज्वाल चित्र ३ TITIT३लवा / सुतल पाताल पाताल नरक लोक अतल असिपत्रवन वैतरणी HUWEZOTETAARNSTLER EN YORUMLAREERITA TENTARA ARARAAN PARA CRETALIATURANTIU ARNAUTAKUT भलाक भिस्तल वितल नितल शेषशायी शायी विष्ण भगवान अदीचि भा० ३-५५ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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