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________________ रात्रि भोजन ४०३ रामपुत्र पर दयायुक्त चित्त वाला होता हुआ रात्रिमें, अन्न, जल, लाडू आदि खाद्य, और रबडी आदि लेह्य पदार्थों को नही खाता बह रात्रि भक्तित्याग नामक प्रतिमाका धारी है ।१४२। (का. अनृ /३८२), (सा ध/9/१५)। आचारसार/५/७०७१ बतत्राणाय कर्तव्यं रात्रिभोजनवर्जनम् । सर्वथान्नानिवृत्ति तत्पोक्त षष्ठमणुव्रतम् ।७०७१ - अहिंसा आदि व्रतोकी रक्षाके लिए रात्रिको भोजनका त्याग अथवा उस समय अन्न खानेका त्याग करना छठी रात्रिभुक्ति त्याग प्रतिमा या छठा अणुवत है। वसु. श्रा./२६६ मण-वयण-काय-कय-कारियाणुमोएहि मेहूणं णबधा । दिवसम्मि जो विवज्जइ गुणम्मि सोसावओ छट्ठो। =जो मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना इन नौ प्रकारोसे दिनमे मैथुनका त्याग करता है, वह प्रतिमारूप गुणस्थानमे छठा श्रावक अर्थात छठा प्रतिमाधारी है।२६६। (गुण श्रा/१७१), (सा.ध/७/१२), (द्र सं/टी /४५/१६५/८)। चा सा./१३/२ रात्रावन्नपानखाद्यलेह्येभ्यश्चतुर्थ्य सत्त्वानुकम्पया विरमणं रात्रिभोजनविरमण षष्ठमणुवतम्। चा सा /३८/३ रात्रिभुक्तवत रात्रौ स्त्रीणा भजनं रात्रिभक्त तद्वतयति सेवत इति रात्रिवतातिचारा रात्रिभुक्तवत' दिवाब्रह्मचारीत्यर्थः । -जीवो पर दयाकर रात्रिमें अन्न, पान, खाद्य और लेह्य इन चारों प्रकारके आहारका त्याग करना रात्रिभोजन विरमण नामका छठा अणुवत है। छठी प्रतिमाका रात्रिभक्त वत नाम है। रात्रिमें ही स्त्रियोके सेवन करनेका व्रत लेना अर्थात् दिनमे ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा लेना रात्रिभक्त व्रत प्रतिमा है। रात्रि भोजन त्याग के अतिचार त्याग करना ही रात्रि भक्त व्रत है। २. पाक्षिक श्रावकके रात्रि भोजन त्यागमें कुछ अपवाद सा. ध /२/७६ भृत्वाश्रितानवृत्त्यार्तात् कृपयानाश्रितानपि । भुखजीतान्यम्बुभैषज्य-ताम्बूलै लादि निश्यपि । -गृहस्थ अपने आश्रित मनुष्य और तिर्यंचोको और आजीविकाके न होनेसे दुखी अनाश्रित मनुष्य वा तिर्यंचोंको भी दिनमें भोजन करावे। जल, दवा, पान और इलायची आदिक रात्रिमें भी खा और खिला सकता है ।७६ सा. ध /२/७६ में उद्धृत ताम्बूलमौषधं तोयं, मुक्त्वाहारादिका क्रियाम् । प्रत्याख्यानं प्रदीयेत यावद् प्रातदिनं भवेत। =दिन उगे तक ताम्बूल, औषध और पानीको छोडकर सब प्रकारके आहा रादिके त्यागका बत देना चाहिए । ला, स /२/४२ निषिद्धमन्नमात्रादिस्थूलभोज्यं व्रते दृशः। न निषिद्ध' जलाद्यन्न ताम्बूलाद्यापि वा निशि ॥४२। इस व्रतमें (रात्रिभोजनत्याग व्रतमें) रात्रिमे केवल अन्नादिक स्थूल भोजनोंका त्याग है, इसमें जल तथा आदि शब्दसे औषधिका त्याग नहीं है।४२॥ ३. छठी प्रतिमाका रात्रि भोजन त्याग निरपवाद है ला. सं./२/४३ तत्र ताम्बलतोयादि निषिद्ध' यावदजसा। प्राणान्तेऽपि न भोक्तव्यमौषधादि मनीषिणा ।४३ =उस छठी प्रतिमामे पानी, पान, सुपारी, इलायची, औषध आदि समस्त पदार्थों का सर्वथा त्याग बतलाया है, इसलिए छठी प्रतिमाधारी बुद्धिमान् मनुष्यको औषधि व जल आदि पदार्थ प्राणान्तके समय भी रात्रिमें नही रवाने चाहिए।४३३ ( सा. ध./२/७६)। दे० रात्रिभोजन/३/१ (छठी प्रतिमाधारी रात्रिमें चारों प्रकारके आहारका त्याग करता है।) ४. छठी प्रतिमासे पूर्व रात्रि भोजनका निषेध क्यों ला. स./२/३६-४१ ननु रात्रि भुक्तित्यागो नात्रोद्देश्यस्त्वया क्वचित् । षष्ठसव्यक-विख्यातप्रतिमामामास्ते यत ।३९। सत्यं सर्वात्मना तत्र निशाभोजनवर्जनम् । हेतो किस्वत्र दिग्मात्र सिद्ध स्वानुभवागमात् ।४०। अस्ति कश्चि द्विशेषोऽत्र स्वल्पाभासोर्थतो महान् । सातिचारोऽत्र दिग्मात्रे तत्रातिचारवर्जिता ।४१॥ -प्रश्न आपको यहाँ पर श्रावकोके मूलगुणोके वर्णनमे रात्रिभोजनके त्यागका उपदेश नहीं देना चाहिए, क्योकि रात्रिभोजन त्याग नामकी छठी प्रतिमा पृथक् रूपसे स्वीकार की गयी है।३१। उत्तर-यह बात ठीक है किन्तु उसके साथ इतना और समझ लेना चाहिए कि छठी प्रतिमामें तो रात्रि भोजनका त्याग पूर्णरूपसे है और यहाँ पर मूल गुणोके वर्णनमे अपूर्ण रूपसे है। मूल गुणोंमे रात्रि भोजनका त्याग करना अनुभव तथा आगम दोनोसे सिद्ध है।४०। यहाँ पर इस रात्रिभोजन त्यागमें कुछ विशेषता है, यद्यपि वह थोडी प्रतीत होती है, परन्तु वह है महान् । वह यह है कि यहाँ तो वह व्रत अतिचार सहित है, और छठो प्रतिमामें अतिचार रहित है ।४१। रात्रियोग विधि-दे० कृतिकर्म/४ । खध-स. सा | मू व आ /३०४ ससिद्धिराधसिद्ध साधियमारा. धियं च एय?'। ।३०४॥ पाद्रव्यपरिहारेण शुद्धस्यात्मन' सिद्धि' साधनं वा राध । संसिद्धि, राध (आराधना, प्रसन्नता, पूर्णता), सिद्ध, साधित और आराधित ये एकार्थवाची शब्द है।३०४। पर द्रव्यके परिहारसे शुद्ध आत्माकी सिद्धि अथवा साधन सो राध है। राम-म.प्र /सर्ग/श्लोक न.राजा दशरथ के पुत्र थे (२५/२२) स्वयंबरमें सीतासे विवाह किया (२८/२४५) माता केकयी द्वारा बनवास दिया गया (३१/१६१) बनवास कालमे सीताहरण होनेपर रावणसे युद्ध कर रावणको मारकर सीताको प्राप्त किया (७६/७३) परन्तु लौटनेपर लोकापवादसे सीताका परित्याग किया (१७.१०८) अन्तमे भाई लक्ष्मणकी मृत्युसे पीडित हो दीक्षा ग्रहण कर (११९/२४-२७) मोक्ष प्राप्त की (१२२/६७) इनका अपरनाम 'पद्म' था। ये प्ये बलदेव थे। (विशेष दे० शलाका पुरुष/३) । रामकथा-आचार्य कीर्तिधर (ई० ६०० ) द्वारा विरचित जेन रामायण है। इसके आधारपर रविषेणाचार्य ने प्रसिद्ध पद्मपुराण तथा स्वयंभू कविने पउमचरिउ लिखे है। रामागार-मेघदत की अपेक्षा अमरकंटक पर्वत और नेमिचरितकी अपेक्षा गिरिनार पर्वत (नेमिचरित/प्र.)। रामचंद-१ नन्दिसंघके देशीयगण में गण्ड विमुक्त देवाम्नाय के देवकीति के शिष्य रामचन्द्र विद्य' समय-ई ११५८११८२। (दे इतिहास/७/१) । २. नन्दि सघ देशीय गण में केशवनन्दि के दीक्षा शिष्य और पदमनन्दि के शिक्षा शिष्य रामचन्द्र मुमुक्षु । कृतियें-पुण्यासव कथाकोष, शान्तिनाथ चरित्र । समय ई. श १३ का मध्य । (ती./४/६६)। रामदत्ता-म.पु/१६ श्लोक पोदनपुरके राजा पूर्ण चन्दकी पुत्री थी (२१०) पति सिहसेनकी मृत्युसे व्याकुलित हो दीक्षा ग्रहण कर ली (२०२) अन्तसे मरकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुई (२२५-२२६) यह मेगणधरका पूर्व का नवॉ भव है-दे० मेरु । रामनंदि-माघनन्दिसघकी गूर्वावलि के अनुसार श्री नन्दिसघ का अपरनाम था-दे० श्रीनन्दि । रामपुत्र-भगवान् वीरके तीर्थ में अन्तकृत केवली हुए है-दे० अन्तकृत। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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