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________________ ३-४६ इति सप्त प्रकारत पोतिशयद्विधरसवाषम्यो नमः ॥७॥ गमहानसाकमुत पधीरगुणतपस्यो नमः । २४ Jain Education International चारणसन्तुचारणपुष्पचारणबोजचारणाङ्कुरचारणाकाश चारण नवप्रकार क्रियादिरसर्वषिभ्यो । ॐ ह्रीं मनोवपुर्वाग्वल इतित्रिप्रकारबलद्वघरसर्वषिभ्यो न ॐ मुनिसुव्रताय नमः ॐ पुष्पदन्ताय नम ॐ नामनाथाय नम. ॐ शीतलाय न ३७ - शान्ति यंत्र मि ॐ नम ॐ श्रेयसेनम ॐ वासुपूज्याय नम ॐ मल्लिनाथाय न साहूसरण पव्वज्जामि साहू लोगुत्तमा सिद्धमगलं णमो आइरोयाण ॐ पावनाथाय नम ॐ चन्द्र प्रभाय नम केवलिपण्णत्तो धम्मो सरण पव्वज्जामि स्वाहा । गुत्तमा साहू मंग णमो Afte Hjukseb नमः । ३ । केवलिपण्ण अरहंत मंग (अह याण ॐ ॐ हो अक्षीणमहालपाक्षीणमहानसेतिद्विप्र ॐ ह्रीं दतितपत तमातपउग्रतपघोर तपघोरपराक्रमुत ॐ पद्मप्रभवे नम ॐ अनाथाय नम जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश ॐ ही केवलमन पर्ययावधिकोष्ठे कवीजस भिन्नसंश्र ॐ विमलाय नम ॐ ऋषभाय नमः णमो सिद्धाण चत्तारि मग अरहत लागतमा ३६१ गमो नमो अरहताक्षण एस साहूण | ज १० वर्द्धमानाय नमः । धम्मो मंगल / वा बतारि सरण पव्वज्जामि er poh क. ही "चत्तारि लोगुत्तमा लोकन प्रज्ञाश्रवण प्रत्येकबुद्धिदेश पूवित्व सर्वपूवित्यप्रवादित्वा निमित्तेत्याशबुद्धि ऋद्विधर सर्वाषिभ्यो नमः | १८ | For Private Personal Use Only ॐ अजिताय नमः अरहंत सरण ॐ अनन्ताय नम ॐ धर्मनाथाय नमः सर्वोषधिआशोर्विषदृष्टिविषस खिल्ल विड्जलमलेत्यष्टौषधिऋद्विधरसषभ्यो नमः | ८ | म. अभिनन्दनाय नमः ॐ सुमतये नम ॐ कुन्युनाथाय नमः ॐ ह्रा अणिमाम यस भिन्नसंश्रोत्र पदानुसारित मालघिमागरिम "ॐ संभवाय नमः क्रौं ॐ शान्तिन निनिप्राप्त्यप्रतीघातत्येकादश विक्रयाद्विधरसर्वाषिभ्यो नमः | ११ | ॐ ह्रीं आशदृष्टिक्षीरघृतमधुअमृतेति षट्प्रकाररस ऋद्धिधर सर्वाषिभ्यो नमः ॥९॥ स्वादन हपित्ववशित्वैश्वर्य प्राकाम्यान्तर्धान नि घ्राणदूर विलोकनप्र ३७. शान्ि www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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