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________________ मल्लधारी देव २८९ महातनु मल्लधारी देव--१. नन्दि संघके देशीयगण की नय कीतिशाखामें श्रीधरदेव के शिष्य तथा चन्द्रकीतिके गुरु थे।समय-वि१०७५-११०५ (ई०१०१८-१०४८)-दे० इतिहास/७/५ । २ मल्लिषेणकी उपाधि थी। (विशेष दे० मल्लिषेण/२)। ३.नियमसारकी टीकाके रचयिता पद्मप्रभकी उपाधि थी।--दे० पद्मप्रभ । ४. आ० बालचन्द्रकी उपाधि थी।-दे० बालचन्द्र । मल्लवादी-2.द्वादशार नयचक्र । प्रथम) के का एक आचार्य। समय-वि स.४१४ (ई० ३५७), (जै./२/३३०)। २. एक ताकिक श्वेताम्बराचार्य थे। आ. विद्यानन्दिके समक्ष जो नयचक्र विद्यमान था वह सम्भवत इन्हींकी रचना थी। इनके नयचक्रपर उप० यशोभद्रजीने टीका लिखी है। कृतियाँ-नयचक्र, सन्मति टीका। समय--वि, श. ८-६ (ई० श.८ का अन्त); (न. च./प्र. २/प्रेमीजी)। मल्लिनाथ-(म. पु./६६/श्लोक) पूर्व भव नं २ में कच्छकावती देशके वीतशोक नगरके राजा वैश्रवण थे।(२)। पूर्व भव नं. १ मे अपराजित विमानमे अहमिन्द्र थे।(१४-१६) (युगपत सर्वभव---दे० ६६/६६)। वर्तमान भबमें १६ वे तीर्थंकर हुए-दे० तीर्थकर।। मल्लिनाथचारित्र-आ. सकलकीति (ई०१४०६-१४४२) कृत ८७४ श्लोकप्रमाण सस्कृत रचना । (ती /३/३३१) । मल्लिभूपाल-विजयकीति (ई. श. १६) को सम्मानित करने वाले कनारा जिले के सालुब नरेश । (जै./१/४७३)। मल्लिभूषण-नन्दि संघके बलात्कार गणकी सूरत शास्वा मे विद्यानन्दि न २ के शिष्य तथा श्रुतसागरके सहधमो और लक्ष्मीचन्द्र व ब. नेमिदत्तके गुरु थे। समय--वि. १५३८-१५५६ (ई, १४८१ - १४)-दे० इतिहास/४ । (ती/३/३७३)। भा. सं/१७६-१७१ मसयरि-पूरणरिसिणो उप्पण्णो पासणाहतित्थ म्मि । सिरिवीरसमवसरणे अगाहियझुणिणा नियत्तेण ।१७६। बहिणिग्गएण उत्तं मज्झ एयारसागधारिस्स। णिग्गइ झुणी ण, अरुहो णिग्गय बिस्साससीसस्स ।१७७। ण मुणइ जिणकहियसुर्य सपइ दिक्वाय गहिय गोयमओ। विप्पो वेयम्भासी तम्हा मोषवं ण णाणाओ ।१७९| अण्णाणाओ मोरवं एव लोयाण पयडमाणो हु । देवो अ णत्थि कोई सुण्णं झाएह इच्छाए ।१७१। = पार्श्वनाथके तीर्थ मे मस्करि-पूरण ऋषि उत्पन्न हुआ । वीर भगवान्के समवशरणमें योग्यपात्रके अभावमें जब दिव्य ध्वनि न खिरी, तब उसने बाहर निकलकर कहा कि मै ग्यारह अंगका ज्ञाता हूँ, तो भी दिव्यध्वनि नहीं हुई। पर जो जिनकथित श्रुतको ही नहीं मानता है और जिसने अभी हाल ही में दीक्षा ग्रहण की है ऐसा वेदाभ्यासी गोतम (इन्द्रभूति) इसके लिए योग्य समझा गया। अत जान पडता है कि ज्ञानसे मोक्ष नही होता है। वह लोगोंपर यह प्रगट करने लगा कि अज्ञानसे ही मोक्ष होता है। देव या ईश्वर कोई है ही नहीं । अत स्वेच्छापूर्वक शून्यका ध्यान करना चाहिए । मस्करी पूरन- दे० पूरन कश्यप। मस्तक-भरतक्षेत्रमें पूर्व आर्यखण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४ । मस्तिष्क-औदारिक शरीरमें मस्तिष्कका प्रमाण-दे० औदारिक/१/७१ मह-याग, यज्ञ, क्रतु, पूजा, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह ये पर्यायवाची नाम है।-दे० पूजा/१/१ । महत्तर-त्रि सा./६८३/टीका-महत्तर कहिए कुल विषै बडा। महत्ता -Magnitude ( ज प/प्र १०७ ) । महाकच्छ-पूर्व विदेहका एक क्षेत्र-दे० लोक/७ । महाकच्छा -पूर्व विदेहस्थ पद्मकूट बक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव-दे० लोक/५/२। महाकक्ष-विजयाध की दक्षिणश्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । महाकल्प-द्वादशाग श्रुतज्ञानका ११वॉ अंगवाह्य-दे० श्रुतज्ञान/IIII महाकाल-१. पिशाच जातीय एक व्यन्तर-दे० पिशाच । २, एक ग्रह-दे० ग्रह । ३. दक्षिण कालोद समुद्रका रक्षक देव-दे० व्यन्तर ।४। ४ चक्रवर्तीकी नव निधियो में से एक-दे० शलाका पुरुष/२। १. षष्ट नारद-दे० शलाका पुरुष/६ । महाकाली-१. भगवान श्रेयासकी शासक यक्षिणी-देतीर्थंकर/५१ एक विद्या- दे० विद्या। महाकूट-विजया की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । महाकौशल-मध्यप्रदेश। अपर नाम सुकौशल (म. पु./प्र./४८। पं. पन्नालाल )। महाखर-असुरकुमार जातीय एक भवनवासी देव-दे० असुर । महागंध-उत्तर नन्दीश्वरद्वीपका रक्षक देव-दे० भवन/४। महागौरी--एक विद्या-दे० विद्या । महाग्रह-दे० ग्रह। महाचंद्र-शान्तिनाथचरित्रके रचयिता एक दि. साधु । समय वि १५८७ । महाज्वाल-विजया की उत्तरप्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । महातनु-महोरम जातीय एक व्यन्तर-दे० महोरग। मल्लिषेण-१. महापुराण, नागकुमार महाकाव्य तथा सज्जन चित्तवल्लभके कर्ता, उभय भाषा विशारद एक कवि(भट्टारक)। समय -वि ११०४ (ई. १०४७) 1 (म. पु./प्र.२०/प पन्ना लाल : (स.म / प्र. १५/प्रेमीजी) । २. एक प्रसिद्ध मन्त्र तन्त्रवादी भट्टारक । गुरु परम्परा-अजितसेन, कनकसेन, जिनसेन, मल्लिषेण । नरेन्द्रसेन के लघु गुरु भ्राता। नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने इन्हे भवन गुरु कहा है। कृतियें-भैरव पद्मावती कल्प, सरस्वती मन्त्र कल्प, ज्वालिनी कल्प, कामचाण्डाली कल्प, बज्र पजर विधान, प्रवचनसार टीका, पचास्तिकाय टीका, ब्रह्म विद्या । समय-डा, नेमिचन्द्र नं १२२ को एक व्यक्ति मानते है। अत उनके अनुसार शक ६६६ ई.१०४७)। (ती./३/१७१) । परन्तु प. पन्ना लाल तथा प्रेमीजी के अनुसार शक १०५० (ई ११२८)। (दे. उपर्युक्त सन्दर्भ)। ३. स्याद्वाद मजरी तथा महापुराण के रचयिता एक निष्पक्ष श्वेताम्बर आचार्य जो स्त्री मुक्ति आदि विवादास्पद चर्चाओं में पड़ना पसन्द नहीं करते । समयशक १२१४ (ई. १२९२) । (स म /प्र. १६/जगदीश चन्द)। मल्लिषेण प्रशस्ति-श्रवणबेलगोलाका शिलालेख न.५४ मल्लि- षेण प्रशस्ति के नामसे प्रसिद्ध है। समय-श. सं १०५० (ई. ११२८) (यु अनु./प्र. ४१/प. जुगल किशोर मुख्तार)। मशक परिषह-दे० दंश परिषह । मसिकर्म-दे० सावद्य/३॥ मस्करी गोशाल-बौद्धोके महा परिनिर्वाण सूत्र, महावग्ग और 'दिव्यावदान आदि ग्रन्थोके अनुसार ये महात्मा बुद्ध के समकालीन ६ तीर्थक्रोमेसे एक थे। (द. सा./प्र. ३२/प्रेमीजी)। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा०३-३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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