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________________ भिक्षा २२८ १. भिक्षा निर्देश व विधि। यज्ञशाला आदिमें प्रवेश नहीं करते, नीच कुलीन, अति दरिद्री व अति धनाढयका आहार ग्रहण नहीं करते है। १.भिक्षा निर्देश व विधि १. साधु मिक्षा वृत्तिसे आहार करते हैं मू आ./८१६, ६३७ पयणं व पायणं वाण करे ति अ णेव ते करावेंति । पयणार भणियत्ता संतुठाभिक्रवमेत्तेण ।१६। जोगेसु मूल जोगं भिक्खाचरियं च वणियं सुत्ते । अण्णे य पुणो जोगा विण्णाणविहीण एहि कया ।६३७१ - आप पकाना दूसरेसे पकवाना न तो करते है न कराते है वे मुनि पकानेके आरम्भसे निवृत्त हुए एक भिक्षा मात्रसे सन्तोषको प्राप्त होते है ।८१६। आगममें सब मूल उत्तरगुणोके मध्य में भिक्षा चर्या ही प्रधान व्रत कहा है, और अन्य जो गुण है वे चारित्र हीन साधुओ कर किये जानने ।६३७ (प्र सा/म./२२६ ), (प. पू./ ४/१७)। २. यथा काल, वृत्ति परिसंख्यान सहित मिक्षार्थ चर्या करते हैं रा. वा./8/६/१६/१६७/१६ भिक्षाशुद्धि' आचारसूत्रोक्तकालदेशप्रकृतिप्रतिपत्तिकुशला चन्द्रगतिरिव हीनाधिकगृहा, विशिष्टापस्थाना...। - आचार सूत्रोक्त कालदेश प्रकृतिकी प्रतिपत्ति में कुशल है। चन्द्रगतिके समान हीन या अधिक धरोंकी जिसमें मर्यादा हो, विशिष्ट विधानवाली हो ऐसी भिक्षा शुद्धि है। भ. आ./वि /१५०/३४५/१० भिक्षाकालं, बुभुक्षाकालं च ज्ञात्वा गृहीतावग्रह', ग्रामनगरादिकं प्रविशेदीर्यासमितिसंपन्न.। -भिक्षाका समय, और क्षुधाका समय जानकर कुछ वृत्तिपरिसंख्यानादि नियम ग्रहण कर ग्राम या नगरमें ईर्यासमितिसे प्रवेश करे । भिक्षा निर्देश व विधि साधु भिक्षा वृत्तिसे आहार लेते है। यथा काल, वृत्ति परिसंख्यान सहित भिक्षार्थ चर्या करते है। ३ भिक्षा योग्य काल। मौन सहित व याचना रहित चर्या करते है। द्वारापेक्षण पूर्वक श्रावकके घरमें प्रवेश करते है। -दे० आहार/II/१/४ भिक्षावृत्ति सम्बन्धी नवधा भक्ति। -दे० भक्ति/२। दातारकी अवस्था सम्बन्धी विशेष विचार । -दे० आहार/II/५। | कदाचित् याचनाकी आशा। ६ | अपने स्थानपर भोजन लानेका निषेध । गोचरी आदि पाँच भिक्षा वृत्तियोंका निर्देश । बर्तनोंकी शुद्धि आदिका विचार। चौकेमें चींटी आदि चलती हो तो साधु हाथ धोकर अन्यत्र चले जाते है। -दे० अन्तराय/२। दातारके घरमें प्रवेश करने सम्बन्धी नियम व विवेक अभिमत प्रदेशमें आगमन करे अनभिमतमें नहीं। वचन व काय चेष्टा रहित केवल शरीर मात्र दिखाये। छिद्रमेंसे झॉक कर देखनेका निषेध । गृहस्थके द्वारपर खडे होनेकी विधि। चारों ओर देखकर सावधानीसे वहॉ प्रवेश करे। सचित्त व गन्दे प्रदेशका निषेध ।। सूतक पातक सहित घरमें प्रवेश नहीं करते। -दे० सूतक। व्यस्त व शोक युक्त गृहका निषेध। पशुओं व अन्य साधु युक्त गृहका निषेध । बहुजन ससक्त प्रदेशका निषेध । उद्यान गृह आदिका निषेध । | योग्यायोग्य कुल व घर १ विधर्मी आदिके घरपर आहार न करे। २ नीच कुलीनके घरपर आहार न करे । ३ | शुद्रसे छुनेपर स्नान करनेका विधान । | अति दरिद्रीके घर आहार करनेका निषेध । ५ कदाचित् नीच घरमें भी आहार ले लेते है । ६ | राजा आदिके घरपर आहारका निषेध । कदाचित् राजपिंडका भी ग्रहण। मध्यम दर्जे के लोगोंके घर आहार लेना चाहिए। ३. मिक्षा योग्य काल भ. आ./वि./१२०६/१२०३/२२ भिक्षाकाल', बुभुक्षाकालोऽवग्रहकालश्चेति कालत्रयं ज्ञातव्यं । ग्रामनगरादिषु इयता कालेन आहारनिष्पत्तिर्भवति, अमीषु मासेषु, अस्य वा कुलस्य वाटस्य वार्य भोजनकाल इच्छायाः प्रमाणादिना भिक्षाकालोऽवगन्तव्यः । मम तीवा मन्दा वेति स्वशरीरव्यवस्था च परीक्षणीया। अयमवग्रह, पूर्व गृहीत । एवंभूत आहारो मया न भोक्तव्य' इति अद्यायमवग्रहो ममेति मीमांसा कार्या । -भिक्षा काल, बुभुक्षा काल और अवग्रह काल ऐसे तीन काल हैं। गाँव, शहर वगैरह स्थानोमे इतना काल व्यतीत होनेपर आहार तैयार होता है। अमुक महीनेमें अमुक कुलका, अमुक गलीका अमुक भोजन काल है यह भिक्षा या भोजन कालका वर्णन है ।१। आज मेरेको तीव्र भूख लगी है या मन्द लगी है । मेरे शरीरकी तबियत कैसी है, इसका विचार करना यह बुभुक्षा काल का स्वरूप है। अमुक नियम मैने कल ग्रहण किया था। इस तरहका आहार मैने भक्षण न करनेका नियम लिया था। आज मेरा उस नियमका दिन है। इस प्रकारका विचार करना अवग्रह काल है। आचारसार//EE जिस समय बच्चे अपना पेट भरकर खेल रहे हों १८ जिस समय श्रावक बलि कर्म कर रहे हों अर्थात देवताको भातादि नैवेद्य चढा रहे हो, वह भिक्षा काल है। सा. ध./६/२४ में उधृत-प्रसृष्टे विण्मूत्रे हृदि सुविमले दोषे स्वपथगे विशुद्ध चोद्वारे क्षुदुपगमने वातेऽनुसरति । तथाऽग्नाबुद्रिक्ते विशदकरणे देहे च सुलघौ, प्रयुज्जीताहारं विधिनियमितं काल. स हि मत.। मल मूत्रका त्याग हो जानेके पश्चात, हृदयके प्रसन्न होनेपर, वात पित्त और कफ जनित दोषोंके अपने-अपने मार्गगामी होनेपर मलवाहक द्वारोंके खुलनेपर, भूखके लगनेपर, वात या धायुके ठीक-ठीक अनुसरण होनेपर, जठराग्निके प्रदीप्त होनेपर, इन्द्रियों के प्रसन्न होनेपर, देहके हलका होनेपर, विधि पूर्वक तैयार किया हुआ, नियमित आहारका ग्रहण करे। यही भोजनका काल माना गया है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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