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________________ भाव ४. सभी भाव कथंचित् पारिणामिक है। दे० सासादन / २ / ६ सभी भावोंके पारिणामिकपनेका प्रसंग आता है तो आने दो, कोई दोष नहीं है। ध. ४/२.८.१/२४२/१ अल्प पाबहु पारिणामिण भावे -अप परिणामिक भान होता है। क.पा १/९.११-१४/२८४/२२६/६ ओह भाव साओ एवं गमादिचउण्ड णयाण । तिन्ह सद्दणयाणं पारिणामिण भावेण कसाओ, कारण विणा कज्जुप्पत्तीदो। कषाय औदयिक भावसे होती है। यह नैगमादि चार नयोकी अपेक्षा समझना चाहिए। शब्दादि तीनों नयोकी अपेक्षा तो काय पारिनामिक भावसे होती हैं, क्योकि इन नयोको दृष्टिमें कार के भिना कार्योंको उत्पति होती है। = ५. छहीं द्रव्योंमें पंचभावका यथायोग्य सव ६. ५/१०,१/१८६/० जीवेसु पचभावाणवलं भाव से पच भावा अस्थि, पोरगलदब्वेसु ओदडयपारिणामियाण दोण्ह चेत्र भाषाणमुवसंभा, धम्माधम्मकालागासदव्वे एक्स्स पारिणामिय भावस्सेवलंभा । जीवोमें पाँचो भाव पाये जाते है किन्तु शेष द्रव्योमे तो पाँच भाव नही है, क्योंकि, पुद्गल द्रव्यो में औदयिक और पारिणामिक, इन दोनों ही भावोकी उपलब्धि होती है, और धर्मास्तिकाय, अथर्मास्तिकाय, आकाश और काल द्रव्यों ने केवल एक पारिणामिक भाव ही पाया जाता है । ( ज्ञा./६/४१) । ६. पाँचों मावों की उत्पति निमित्त 1 ध. ५/१,७,१ / १८१/१ केण भावो । कम्माणमुदएण खणखओवसमेण कम्माणमुवसमेण सभावदो वा । तत्थ जीवदव्वस्त भावा उत्तपचकारणहितो होंति । पोग्गलदव्यभाषा पूर्ण कम्मोदरण मिस्सासादो वा उत सेसा च दग्नागं भाषा सहाबंद उत्पति = प्रश्न - भाव किससे होता है, अर्थात् भावका साधन क्या है । उसर - भावकर्मके उदयसे, क्षयसे, क्षयोपशम से कर्मोके उपहमसे, अथवा स्वभावसे होता है। उनमें से जीव द्रव्यके भाव उक्त पाँचो ही कारणोसे होते है, किन्तु इगल द्रव्यके भाव कम उसे अथवा स्वभाव से उत्पन्न होते है । शेष चार द्रव्योके भाव स्वभावसे ही उत्पन्न होते है। ७. पाँच मावोंका कार्य व फल स. सा./मू. व टी./१७१ जह्मा दु जहणादो णाणगुणादो पुणोचि परिणमदि । अण्णत णाणगुणो तेण दुसो बधगो भणिदो | १७१ ॥ स तु यथाख्यातचारित्रावस्थामा अस्तावभाविगाबादरेव स्यात् । = क्योकि ज्ञानगुण जघन्य ज्ञानगुणके कारण फिरसे भी अन्यरूपसे परिणमन करता है, इसलिए वह कर्मोका बन्धक कहा Jain Education International २. पंचभाव निर्देश गया है । १७१ | वह ( ज्ञान गुणका जघन्य भावसे परिणमन ) यथाख्यात चरित्र अवस्थाके नीचे अवश्यम्भावी रागका सद्भाव होनेमे बन्धका कारण ही है । घ ७/२,१.७/गा. ३/१ ओदश्या मंधरा उबसम स्वय मिस्सया य मोक्खयरा भाबो दू पारिणामित्रो करणोभवबजियो होहि || जव यिक भाव बन्ध करनेवाले है, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव मोक्षके कारण है, तथा पारिणामिक भाव बन्ध और मोक्ष दोनोंके कारण से रहित हैं ।। २१९ ८. सारणी में प्रयुक्त संकेत सूची आहारक औदयिक औदारिक औपशमिक क्षयोपशमिक आ० औद० अदा● औप० संयो० क्षा० नपुं० पंचे० प्रमाण स. पू. २/९६४ ३/१६६ ४/१६८ । २. पंच मायके स्वामित्वको ओष प्ररूपणा · ५/१६६ 4/२०१ ०/२०१ ८/२०४ ११ सायिक नपुंसक वेद पद्रिय (प. ५/१७/सू २-६/१६४-२०५). (रा. वा / १/१/१२-२४/५८८११०), (गो. जी / ५०/११-१४) । मार्गणा ६/२०५ मिथ्यादृष्टि सासादन मिश्र असंयत सम्य० सयतासयत प्रमत्त सयत अप्रमत्त सयत अपूर्वं करण-सूक्ष्म साम्पराय उपशामक ८-१० ( क्षपक) उपशान्त कषाय क्षीण कषाय योगी व अयोग जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only मूल भाव प० पारि० पु० मनु० मि० afis सम्य० सामा० "T क्षा० क्षाо पर्याम पारिणामिक पुरुष वेद औद० पारि सयो० श्रद्धानांशकी प्रगटताकी अपेक्षा मनुष्य मिश्र वैक्रियक सम्यक सामान्य औरक्षा | दर्शनमोहकी मुख्य सयो० औद० असंयम ( चारित्र मोह) की मुख्यता क्षयो० | चारित्र मोह (संयमासंयम) की मुख्यता " 1 अपेक्षा मिथ्यात्वकी मुख्यता दर्शन मोहको मुख्यता 91 (संयम ) औप० एक देश उपशम चारित्र व भावि उपचार " क्षा० एक देश क्षय व भावि उपचार औप० उपराम चारिक मुख्ता क्षायिक चारित्रकी मुख्यता सर्वधातियों का क्षय www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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