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________________ भागाहार भाव भारद्वाज-१. एक ब्राह्मण पुत्र (म. पु./७४/७६) यह वर्धमान भगवानका दूरवर्ती पूर्वभव है-दे० वर्धमान । २. भरतक्षेत्र उत्तर आर्य खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४। भारामल्ल-१. नागौरका राजा। कोट्यधीशधनकुबेर इसकी उपाधि थी। समय-इ. श. १६ (हि जै सा. इ./३६ कामता)। २. परशुरामके पुत्र थे। पहले फरूखाबाद और पीछे भिण्ड रहे थे। ये वास्तवमें एक कवि नहीं अपितु तुकबन्द थे। इन्होंने सोमकीर्तिके संस्कृत चारुदत्त चरित्रके आधारपर हिन्दी चौपाई दोहा छन्दमें चारुदत्त चरित्र रचा, इसके अतिरिक्त शील कथा, दर्शनकथा, निशिभोजन कथा भी रची। समय-वि. १८१३ । हिं. जै सा. इ./ २१८ कामता), (चारुदत्त चरित्र/प्र./परमेष्ठीदास)। भागव-भरत क्षेत्र पूर्व आर्य खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४ । मागाहार-१. दे० सक्रमण/९/२, २. भागाहार सम्बन्धी प्रक्रिया। -दे० गणित/U/१६। भाग्य-नियति/३। भाग्यपुर-वर्तमान हैदराबाद (दक्कन) (म.पु./प्र ५०/५० पन्नालाल )। भाजक-Divisor (ध.६/प्र. २८)।-(दे० गणित/II/१/६ )। भाजनांग कल्पवृक्ष-दे० वृक्ष/१। भाजित-गणितकी भागाहार विधिमें भाज्य राशिको भागहार द्वारा भाजित किया गया कहते है।-(दे० गणित/II/१/६ )। भाज्यप-गणितकी भागहार विधिमें जिस राशिका भाग किया जाय वह भाज्य है।-दे० गणित/II/१/६। भाटक जीविका-दे० सावद्या। भाद्रवन सिंहनिष्क्रिडित व्रत-निम्न प्रस्तारके अनुसार एक वृद्धि क्रमसे १-१३ तक उपवास करना, फिर एक हानि कमसे १३ से १तक उपवास करना। बीचके सर्व स्थानों में एकाशना या पारणा करना । प्रस्तार-१, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८,६, १०, ११, १२, १३, १३, १२, ११, १०,६८,७,६,५४, ३, २,१-१७५ । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करे / (बत विधान सं./पृ.५८)। भानु-कृष्ण का सत्यभामा रानीसे पुत्र था (ह पु./४४/१) अन्तमे दोक्षा धारणकर मुनि हो गया था ( ह. पु./६१/३१) । भानुकील-नन्दी सबके देशीय गण की गुर्वावलीके अनुसार आप गण्ड विमुक्तदेव के शिष्य थे। समय-वि. १२१५१२३६ (ई ११५८-११८२), (ध.२/प्र.४/H.L. Jain) दे० इतिहास/ ७/५ । भार्गवाचार्यकी वंश परम्परा-भार्गव धनुर्विद्याके प्रसिद्ध आचार्य थे। जिनकी शिष्य परम्परामें कौरवों और पाण्डवोके गुरु द्रोणाचार्य हुए थे। उन भार्गवाचार्यकी शिष्यपरम्परा निम्न प्रकार है। इनका प्रथम शिष्य आत्रेय था। फिर क्रमसे कौथुमि-अमरावर्त-सित-बामदेव-कपिष्टल-जगरस्थामा, सरवर-शरासन-रावणविद्रावण और विद्रावणका पुत्र द्रोणाचार्य था। जो समस्त भार्गव वंशियोके द्वारा वन्दित था। उसका पुत्र अश्वत्थामा था। (ह पु./ ४५/४३-४८)। व-चेतन व अचेतन सभी द्रव्यके अनेको स्वभाव है। वे सब उसके भाव कहलाते है। जीव द्रव्यको अपेक्षा उनके पाँच भाव है औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक । कर्मों के उदयसे होनेवाले रागादि भाव औदयिक । उनके उपशमसे होनेवाले सम्यक्त्व व.चारित्र औपशामिक है । उनके क्षयसे होनेवाले केवलज्ञानादि क्षायिक है। उनके क्षयोपशमसे होनेवाले मतिज्ञानादि क्षायोपशमिक है। और कर्मोंके उदय आदिसे निरपेक्ष चैतन्यत्व आदि भाव पारिणामिक है। एक जीवमें एक समयमें भिन्न-भिन्न गुणों की अपेक्षा भिन्न-भिन्न गुणस्थानोंमें यथायोग्य भाव पाये जाने सम्भव है, जिनके संयोगी भगोंको सन्निपातिक भाव कहते हैं। पुदगल द्रव्यमें औदयिक, क्षायिक व पारिणामिक ये तीन भाव तथा शेष चार द्रव्योमें केवल एक पारिणामिक भाव ही सम्भव है। भानुगुप्त --- मगध देशको राज्य वंशावली (दे० इतिहास ) के अनुसार यह गुप्तवंशका छठा व अन्तिम राजा था। इसको हुण राजा तोरमाण व मिहिरकुल ने ई०५०० ३५०७ मे परास्त करके गुप्तव शका विनाश कर दिया । समय-ई०४६०-५०७ दे० ( इतिहास/३/४)। भानुदिनन्दिसघ बलात्कारगणकी गुर्वावली के अनुसार आप नेमिचन्द्र नं०१ के शिष्य और सिहन्दि न. १ के गुरु थे। समय-विक्रम शक स. ४८७-५०८ (ई० ५६५-५८६) -दे० इतिहास/७/२। भानुमती-धिनको पत्नी (पा. पु./१०/१०८)। भानुमत्र-मालवा । मगध ) देशके राज्यवंशमे अग्निमित्रके स्थानपर श्वेताम्बर आम्नायमें भानुमित्र नाम लिया जाता है अत; अग्निमित्रका ही अपरनाम भानुमित्र है।-दे० अग्निमित्र । भामंडल- पु./सर्ग/श्लोक सीताका भाई था (२६/१२१) पूर्व वैरसे किसी देव ने जन्म लेते ही इसको चुराकर (२६/१२१) आकाशसे नीचे गिरा दिया (२६/१२६)। बीच में ही किसी विद्याधरने पकड़ लिया और इसका पोषण किया (२६/१३२)। युवा होनेपर बहन सोतापर मुग्ध हो गया ( २८/२२२) परन्तु जाति स्मरण होनेपर अत्यन्त पश्चात्ताप किया (३०१३) । अन्तमें वज्रपातके गिरनेसे मर गया (१११/१२) । भेद व लक्षण भाव सामान्यका लक्षण१. निरुक्ति अर्थ २ गुणपर्याय के अर्थ में । * भावका अर्थ वर्तमान पर्यायसे अलक्षित द्रव्य -दे० निक्षेप/७/१। ३ कर्मोदय सापेक्ष जीव परिणामके अर्थ में। ४. चित्तविकारके अर्थ में। ५. शुद्धभावके अर्थ में। ६ नवपदार्थ के अर्थ में। भावोंके भेद-१ भाव सामान्यकी अपेक्षा; २. निक्षेपोकी अपेक्षा, ३ कालकी अपेक्षा; ४ जीवभावकी अपेक्षा। औपशमिक, क्षायिक व औदयिक भाव निर्देश -दे० उपशम, क्षय, उदय। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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