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________________ भवन २०८ २. भवनवासी इन्द्रोंका वैभव १. भवनवासी देवोके भेद त.सू./२/१० भवनवासिनोऽसुरनागविद्य त्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधि द्वीपदिक्कुमारा ।१० -भवनवासी देव दस प्रकार है-असुरकुमार, नागकुमार, विद्यु कुमार, सुपर्ण कुमार, अग्निकुमार, बातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार । (ति.प/ ३/६),(त्रि.सा/२०६)। स्तनितकुमारोमै घोष और महाघोष, विद्युत्कुमारोमें हरिषेण और हरिकान्त, दिक्कुमारोमें अमितगति और अमितवाहन, अग्निकुमारोमें अग्निशिखी और अग्निवाहन, वायुकुमारोमें वेलम्ब और प्रभंजन नामक इस प्रकार दो-दो इन्द्र क्रमसे उन असुरादि निकायोमें होते है ।१४-१६। (इनमें प्रथम नम्बरके इन्द्र दक्षिण इन्द्र है और द्वितीय नम्बरके इन्द्र उत्तर इन्द्र है। (ति. प/६/१७-१६) । ५. मवनवासी देवोंके नामके साथ 'कुमार' शब्दका ३. भवनवासियोंके वर्ण, आहार, श्वास भादि तात्पर्य देवका नाम वर्ण मुकुट चैत्य वृक्ष आहारका श्वासो- | ति.प./३ | चिह्न ति.प./लअन्तरालच्छवासका १११-१२० ति प./ ३/१३८ । मू आ./ अन्तराल ११४६ | ति.प./३/ त्रि.सा./ ति.प/३/| ११४-११७ २१३ १११-११६ त्रि सा २४ त्रि सा./२४८ प्रविचार (ति प./२/१३०) असुरकुमार कृष्ण चूडा अश्वत्थ मणि १५०० | १५ दिन (मू आ) १००० वर्ष १२३ दिन स. सि./४/१०/२४३/३ सर्वेषा देवानामवस्थितवय स्वभावत्वेऽपि वेषाभूषायुधयानवाहनक्रीडनादि कुमारव देषामाभासत इति भवनवासिषु कुमारव्यपदेशो रूढ । यद्यपि इन सब देवोका बय और स्वभाव अवस्थित है तो भी इनका वेष, भ्रषा, शास्त्र, यान, वाहन और क्रीडा आदि कुमारोके समान होती है, इसलिए सब भवनवासियोमें कुमार शब्द रूढ है। (रा, बा/४/१०/७/२१६/२०); (ति. प/३/१२५-१२६) । ६. अन्य सम्बन्धित विषय १. असुर आदि भेद विशेष । -दे बह वह नाम । २. भवनवासी देवोंके गुणस्थान, जीव समास, मार्गणा स्थानके स्वामित्व सम्बन्धी २० प्ररूपणाएँ । -दे० सत्। ३. भवनवासी देवोंके सत् ( अस्तित्व ) संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणारे। -दे० वह वह नाम । ४. भवनवासियों में कर्म प्रकृतियोंका बन्ध, उदय व सत्त्व । -दे०वह वह नाम । ५. भवनवासियों में सुख-दुःख तथा सम्यक्त्व व गुणस्थानों आदि सम्बन्ध । -दे० देव/I/३ ६. भवनवासियोमें सम्भव कषाय, वेद, लेश्या, पर्याप्ति आदि । -दे० वह वह नाम। ७. भवनवासी देव मरकर कहा उत्पन्न हों और कौनसा गुणस्थान या पद प्राप्त करें। -दे. जन्म/६ । ८. भवनत्रिक देवोंकी अवगाहना। -दे० अवगाहना/२। दिन | १२ मुहूर्त काय प्रविचार ७२ दिन | नागकुमार काल श्याम सर्प सप्तपर्ण सुपर्ण कुमार श्याम गरुड शाल्मली द्वीपकुमार हाथी जामुन उदधि कुमार | काल श्याम मगर | वेतस । स्तनित कुमार स्वस्तिक कदम विद्य त कुमार बिजलीवत वज्र । | प्रियगु दिक्कुमार | श्यामल सिंह शिरीष अग्निकुमार | अग्निज्वाल कलश पलाश वातब वायुकुमार । नीलकमल | तुरग राजद्रुम इनके सामानिक, प्रायस्त्रिश 11 पारिषद व प्रतीन्द्र |१००० वर्ष की आयुवाले देव १ पल्य की,, ,, , स्व इन्द्रवत् स्व इन्द्रवद २ दिन श्वासो * मवनवासियोंके शरीर सुख-दुःख भादि -दे० देव/II/२| २. भवनवासी इन्द्रोंका वैभव १. भवनवासी देवोंके इन्द्रोंकी संख्या ति. ५/३/१३ दससु कुलेसु पुह पुह दो दो इंदा हवं ति णियमेण । ते एकस्सि मिलिदा वीस विराज ति भूदी हिं ।१३। - दश भवनवासियोंके कुलोमें नियमसे पृथक-पृथक् दो-दो इन्द्र होते है। वे सब मिलकर २० इन्द्र होते है, जो अपनी-अपनी विभूतिसे शोभायमान है। २. भवनवासी इन्द्रोंके नाम निर्देश ति प./३/१४-१६ पढमो हु चमरणामो इंदो वइरोमणो त्ति विदिओ य। भदाणंदो धरणाण दो वेणू य वेणुदारी य १४। पुण्णव सिद्रजलपहजलकता तह य घोसमहघोसा । हरिसेणो हरिकंतो अमिदगदी अमिदवाहणग्गिसिही ॥१५॥ अग्गिवाहणणामो वेल बपभंजणाभिधाणा य। एदे असुरप्पहुदिसु कुलेसु दोद्दो कमेण देविदा ।१६। असुरकुमारोमें प्रथम चमर नामक और दूसरा वैरोचन इन्द्र, नागकुमारों में भूतानन्द और धरणानन्द, सुपर्णकुमारों में वेणु और वेणुधारी, द्वीपकुमारोमें पूर्ण और वशिष्ठ, उदधिकुमारोमें जलप्रभ और जल कान्त, १. भवनवासियों की शक्ति व विक्रिया ति, प./३/१६२-१६ का भाषार्थ-दश हजार वर्षकी आयुबाला देव १०० मनुष्योंको मारने व पोसनेमें तथा डेढ़सौ धनुष प्रमाण लम्बे चौड़े क्षेत्रको बाहुओंसे वेष्टित करने व उखाइनेमें समर्थ है। एक पख्यकी आयुवाला देव छह खण्डकी पृथिवीको उखाडने तथा वहाँ रहनेवाले मनुष्य व तिर्यञ्चोको मारने वा पोसने में समर्थ है। एक सागरकी आयुवाला देब जम्बूद्वीपको समुद्र में फेक्ने और उसमें स्थित मनुष्य व तियचोंको पोसणेमें समर्थ है। दश हजार वर्ष की आयुवाला देव उत्कृष्ट रूपसे सौ, जघन्यरूपसे सात, मध्यरूपसे सौसे कम सातसे अधिक रूपों की विक्रिया करता है। शेष सब देव अपने-अपने अनधिज्ञानके क्षेत्रोके प्रमाण विक्रियाको पूरित करते है। सख्यात व असख्यात वर्ष की आयुबाला देव क्रमसे मख्यात व असंख्यात योजन जाता व उतने ही योजन आता है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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