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________________ भक्ष्याभक्ष्य २०२ २. अभक्ष्य पदार्थ विचार अन ध/५/४० पूमादिदोषे त्यवत्वापि तदन्न विधिवच्चरेत् । प्रायश्चित्तं नखे किचित्त केशादौ त्वन्नमुत्सृजेत् ।४१ = चोदह मतो ( दे आहार/II/४) भेसे आदिके पीव रक्त मास,हड्डो और चर्म इन पाँच दापोको महादोष माना है। अतएव इनमे मसक्त आहारको केवल छोड ही न दे किन्तु उसको छोडकर आगमोक्तविधिसे प्रायश्चित्त भी ग्रहण करे । नखका दोष मध्यम दर्जका है। अतएव नख युक्त आहारको छोड देना चाहिए, किन्तु कुछ प्रायश्चित्त लेना चाहिए। केश आदिका दोष जघन्य दर्जे का है। अतएव उनसे युक्त आहार केवल छोड देना चाहिए। ७. पदार्थों की मर्यादाएँ नोट-(ऋतु परिवर्तन अष्टालिकासे अष्टाह्निका पर्यन्त जानना चाहिए)। (बत विधान स./३१), ( क्रिया कोष)। मर्यादाएँ पदार्थ का नाम शीत । ग्रीष्म २. मद्य, भांप, मधु व नवनीत अमश्य है भ आ./वि./१२०६/१२०४/१६ मासं मधु नवनीत च बजयेत 'तत्स्पृ टानि सिद्धान्यपि च न दद्यान्न खादेत, न स्पृशेच्च । -मास, मधु व मक्खनका त्याग करना चाहिए। इन पदार्थोका स्पर्श जिसको हुआ है, वह अन्न भी न खाना चाहिए और न छूना चाहिए। पु सि.उ/७१ मधु मद्य नबनोत पिशित च महाविकृतयस्ता । बलम्यन्ते न वतिना तद्वर्णा जन्तवस्तत्र ७१।-शहद, मदिरा, मक्रवन और मास तथा महा विकारोको धारण किये पदार्थ व्रती पुरुषको भक्षण करने योग्य नही है क्योकि उन वस्तुओमें उसी वर्ण व जातिके जीव ह ते है ।७१। । वर्षा बूरा । १मास १५ दिन । ७ दिन दूध ( दुहनेके पश्चात) २ घडी | २ घडी | २ घडो दूध ( उबालनेके पश्चात् ) ८ पहर |८ पहर ८ पहर नोट- यदि स्वाद बिगड जाये तो त्याज्य है। दहा (गर्म दूधका) ८पहर ८ पहर ८ पहर अ ग.श्रा/६/८४), (सा, १६ पहर |१६ पहर १६ पहर ध./३/११), (चा.पा.टो./। २१/४३/१७)। छछ - बिलोते समय पानी डाले ४पहर ४पहर | ४ पहर पीछे पानी डाले तो २ घडी २ घडी | २ घडी (जब तक स्वाद न बिगड़े) तेल घी ७ दिन । ५ दिन ३ दिन ३. चलित रस पदार्थ अमक्ष्य है भ. आ./वि / १२०६/१२०४/२० विपन्नरूपरसगन्धानि, कुथितानि पुष्पि तानि, पुराणानि जन्तसंस्पृष्टानि च न दद्यान्न खादेत न स्पृशेञ्च । - जिनका रूप, रस व गन्ध तथा स्पर्श चलित हुआ है, जो कुथित हुआ है अर्थात फूई लगा हुआ है, जिसको जन्तुओने स्पर्श किया है ऐसा अन्न न देना चाहिए, न खाना चाहिए और न स्पर्श करना चाहिए। अ. ग. श्रा./६/८५ आहारो नि शेषो निजस्वभावादन्यभावमुपयात । योऽनन्तकायिकोऽसौ परिहर्त्तव्यो दयालीलै ।। -जो समस्त आहार अपने स्वभावते अन्यभावको प्राप्त भया, चलितरस भया, बहुरि जो अनन्तकाय सहित है सो वह दया सहित पुरुषोके द्वारा त्याज्य है। चा. पा/टी./२१/४३/१६ सुललितपुष्पितस्वादचलितमन्न त्यजेत् । ___-अकुरित हुआ अर्थात जडा हुआ, फुई लगा हुआ या स्वाद चलित अन्न अभक्ष्य है। ला. स./२/५६ रूपगन्धरसस्पर्शाच्चलित नैव भक्षयेत् । अवश्यं त्रसजीवाना निकोतानां समाश्रयात् ।।६। - जो पदार्थ रूप गन्ध रस और स्पर्शसे चलायमान हो गये है, जिनका रूपादि बिगड़ गया है, ऐसे पदार्थों को भी कभी नहीं खाना चाहिए। क्योकि ऐसे पदार्थोमे अनेक त्रस जीबोकी, और निगोद राशिकी उत्पत्ति अवश्य हो जाती है। १. बासी व अमर्यादित भोजन अमक्ष्य है अ ग. श्रा./६/८४ • दिवस द्वितयोषिते च दधिर्मथिते • त्याज्या। दो 'दिनका बासी दही और छाछ त्यागना योग्य है। (सा, ध/३/ ११), (ला. सं./२/५७) । चा. पा/टी./२१/४३/१३ लवणतैलघृतधृतफलसधान मुहूर्तद्वयोपरिनवनीतमासादिसेविभाण्डभाजनवर्जनं ।.. षोडशहरादुपरि तक दधि च त्यजेत् । -नमक, तेल व धीमें रखा फल और आचारको दो मुहूर्त से ऊपर छोड़ देना चाहिए । तथा मकवन व मास जिस बर्तनमे पका हो वह बर्तन भी छोड देना चाहिए। सोलह पहरसे ऊपरके दहीका भी त्याग कर देवे। ला. सं./२/३३ केवलेनाग्निना पक्व मिश्रितेन घृतेन वा । उषितान्नं न भुञ्जीत पिशिताशनदोषवित ।३३। -जो पदार्थ रोटी भात आदि केवल अग्निपर पकाये हुए है, अथवा पूडी कचौडो आदि गर्म धीमें पकाये हुए है अथवा परामठे आदि घी व अग्नि दोनोके सयोगसे पकाये हुए है। ऐसे प्रकारका उषित अन्न मास भक्षणके दोषोके जानने वालोको नहीं खाना चाहिए । (प्रश्नोत्तर श्रावकाचार )। ५. अँचार व मुरब्बे आदि अभक्ष्य है बसु श्रा./५८ · संघाण णिच्चं तससंसिद्धाई ताइ परिवज्जियव्याई ५८ ॲचार आदि नित्य त्रस जीवोसे ससिक्त रहते है, अत: इनका त्याग कर देना चाहिए। (सा ध/३/११)। २ घडी २ घडी ६ घण्टे २ पहर २ घडी ६ घण्टे २ पहर ६ घण्टे २ पहर ११ आटा सर्व प्रकार मसाले पीसे हुए नमक पिसा हुआ मसाला मिला दे तो खिचडी. कढी, रायता, (तरकारी अधिक जल वाले पदार्थ रोटी, पूरी, हलवा, बड़ा आदि । मौन वाले पकवान बिना पानीके पकवान मीठे पदार्थ मिला दही गुड मिला दही व छाछ ४ पहर , ४ पहर ८पहर ८पहर पहर ७ दिन ५ दिन २ घडी २ घडी सर्वथा अभक्ष्य ३ दिन २ घडी | २. अभक्ष्य पदार्थ विचार १.बाईस अमक्ष्यों के नाम निर्देश बत विधान सं./पृ. १६ ओला धोखडा निशि भोजन, बहुबीजक, बैगन, सधान/ बड, पीपल, ऊमर, कठूमर, पाकर-फल, जा होय अजान । कन्दमूल, माटी, विष, आमिष, मधु, माखन अरु मदिरापान। फल अति तुच्छ, तुषार, चलितरस जिनमत ये बाईस अवान ॥ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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