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________________ भक्ष्याभक्ष्य २०१ १. भक्ष्याभक्ष्य सम्बन्धी सामान्य विचार भक्ष्यामक्ष्य सम्बन्धी सामान्य विचार बहु पदार्थ मिश्रित द्रव्य एक समझा जाता है। | रुग्णावस्थामे अभक्ष्य भक्षणका निषेध । द्रव्य क्षेत्रादि तथा स्वास्थ्य स्थितिका विचार । अभय वस्तुओंको आहारले पृथक् करके वह आहार ग्रहणकी आज्ञा। नीच कुलीनोंके हाथका तथा अयोग्य क्षेत्रमें रखे अन्न पानका निषेध । छआछूत व नीच ऊँच कुलीन विचार ।-दे० भिक्षा । सूतक पातक विचार। -दे० सूतक। अभक्ष्य पदार्थोके खाये जानेपर तयोग्य प्रायश्चित्त । पदार्थों की मर्यादाएँ। पदार्थोंको प्रासुक करनेकी विधि। -दे० सचित्त । जल शुद्धि । -दे० जल। अभक्ष्य पदार्थ विचार बाईस अभक्ष्योंके नाम निर्देश मद्य, मांस, मधु व नवनीत अभक्ष्य है। चर्म निक्षिप्त वस्तुके त्यागमें हेतु। -दे० मास । भोजनसे हड्डी चमडे आदिका स्पर्श होनेपर अन्तराय हो जाता है। -दे० अन्तराय। * मद्य, मांस-मधु व नवनीतके अतिचार व निषेध । -दे०वह वह नाम । ३ चलित पदार्थ अभक्ष्य है। दुष्पक्व आहार। -दे० भोगोपभोग/१। बासी व अमर्यादित भोजन अभक्ष्य है। रात्रि भोजन विचार। -दे० रात्रि भोजन । अॅच र व मुरब्बे आदि अभक्ष्य है। बीधा व संदिग्ध अन्न अभक्ष्य है। अन्न शोधन विधि। --दे० आहार/I/२। सचित्ताचित्त विचार। -दे० सचित्त। गोरस विचार दहीके लिए शुद्ध जामन । गोरसमे दुग्धादिके त्यागका क्रम। दूध अभक्ष्य नहीं है। दूध मासुक करनेकी विधि। -दे०जल । | कच्चे दूध-दहीके साथ विदल दोष । पक्के दूध-दहीके साथ विदल दोष । द्विदलके भेद । वनस्पति विचार पंच उदुम्बर फलोंका निषेध व उसका कारण । | सूखे हुए भी उदुम्बर फल वर्जनीय है । -दे० भक्ष्याभक्ष्य/४/१ | अनजाने फलोंका निषेध । | कंदमूलका निषेध व कारण । ४ | पुष्प व पत्र जातिका निषेध । १. भक्ष्याभक्ष्य सम्बन्धी सामान्य विचार १. बहु पदार्थ मिश्रित द्रव्य एक समझा जाता है क्रियाकोष/१२५७ लाडू पेडा पाक इत्यादि औषध रस और चूरण आदि । अहुत बरतु करि जो नियजेह, एक द्रव्य जानो बुध तेह । २. रुग्णावस्थामें अभक्ष्य भक्षणका निषेध ला. सं./२/८० मूलबीजा यथा प्रोक्ता फलकाद्याकादयः । न भक्ष्या देवयोगाद्वा रोगिणाप्यौषधच्छलात ८०।-उपरोक्त मूलबीज और अग्रवीज आदि अनन्तकायिक जो अदरख आदि बनस्पति उन्हे किसी भी अवस्थामें भी नहीं खाना चाहिए। रोगियों को भी औषधिके बहाने उनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। ३ द्रव्य क्षेत्रादि व स्वास्थ्य स्थितिका विचार भ, आ./मू /२५५/४७६ भत्तं खेत्तं कालं धादं च पडच्च तह तवं कुज्जा । जादो पित्तो सिभो व जहा खोभ्र ण उवयांति =अनेक प्रकारके भक्त पदार्थ, अनेक प्रकारके क्षेत्र, काल भी-शीत, उष्ण, व वर्षा काल रूप तीन प्रकार है, धातु अर्थात् अपने शरीरकी प्रकृति तथा देशकालका विचार करके जिस प्रकार वात-पित्त-श्लेष्मका क्षोभ न होगा इस रोतिसे तप करके क्षपकको शरीर सल्लेखना करनी चाहिए ।२५॥ दे० आहार/I/३/२ सात्त्विक भोजन करे तथा योग्य मात्रामें करे जितना कि जठराग्नि सुगमतासे पचा सके। र. क, श्रा/६ यदनिष्टं तदवतयेद्यच्चानुपसेव्यमेतदपि जह्यात् । प्रभिसंधिकृता विरतिविषयाद्योग्या व्रतं भवति ।८६-जो अनिष्ट अर्थात शरीरको हानिकारक है वह छोडै, जो उत्तम कुलके सेवन करने योग्य ( मद्य-मास आदि) नही वह भी छोडै, तो वह व्रत, कुछ व्रत नहीं कहलाता, किन्तु योग्य विषयोसे अभिप्राय पूर्वक किया हुआ त्याग ही वास्तविक व्रत है। आचारसार/४/६४ रोगोका कारण होनेसे लाडू पेडा, चावल, के बने पदार्थ वा चिकने पदार्थोंका त्याग द्रव्यशुद्धि है। ४. अभक्ष्य वस्तुको आहारसे पृथक करके वह आहार ग्रहण करनेकी आज्ञा अन, ध/१/४१ कन्दादिषट् कं त्यागाहमित्यन्नाद्विभजेन्मुनिः । न शक्यते विभक्तुं चेत त्यज्यतां तर्हि भोजनम् ४१श-कन्द, बीज, मूल, फल, कण और कुण्ड ये छह वस्तुएँ आहारसे पृथक की जा सकती है। अतएव साधुओंको आहारमें ये वस्तुएँ मिल गयी हों तो उनको पृथक कर देना चाहिए। यदि कदाचित् उनका पृथक करना अशक्य हो तो आहार ही छोड देना चाहिए । (मू. आ /भाव./४८४); (और भी दे विवेक/१)। ५. नीच कुलीनोंके हाथका तथा अयोग्य क्षेत्रमें रखे मोजन-पानका निषेध भ. आ /भाषा / ६७५ अशुद्ध भूमिमें पड्या भोजन, तथा म्लेछादिकनिकरि स्पा भोजन, पान तथा अस्पृश्य शूद्रका लाया जल तथा शूद्रादिकका किया भोजन तथा अयोग्य क्षेत्रमें धरया भोजन, तथा मास भोजन करने वालेका भोजन, तथा नीच कुलके गृह निमै प्राप्त भया भोजन जलादिक अनुपसेव्य है । यद्यपि प्रासुक होइ हिंसा रहित होइ तथापि अणुपसेव्यापणात अंगीकार करने योग्य नहीं है । (और भी दे. वर्णव्यवस्था/४/१)। ६. अभक्ष्य पदार्थों के खाये जानेपर तद्योग्य प्रायश्चित्त दे. प्रायश्चित्त/२/४/४ में रा. वा. कारण वश अप्रासुकके ग्रहण करने में प्रामुकका विस्मरण हो जाये और पीछे स्मरण आ जाय तो विवेक ( उत्सर्ग) करना ही प्रायश्चित् है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा०३-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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