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________________ १३ परमाणु परम अद्वैत समवशरणविभूतिर्यस्येति परमः । = 'परा' अर्थात उस्कृष्ट और 'मा' अर्थात प्रत्यक्ष लक्षणसे उपलक्षित प्रमाण, ऐसा उत्कृष्ट प्रमाण (केवल परमाणुके भेद व लक्षण तथा अस्तित्वकी ज्ञान) जिसके पाया जाये सो परम है-वे अहंत है। अथवा 'पर' सिद्धि अर्थात अन्य जो भव्यप्राणी 'मा' अर्थात उनकी उपकार करनेवाली परमार्थपरमाणु सामान्यका लक्षण । लक्ष्मी रूप समवसरण विभूति, यह जिसके पायी जाये ऐसे अहंत परम है। क्षेत्रका प्रमाणविशेष। ४. एकार्थवाची नाम परमाणुके भेद । (कारण कार्य परमाणुका लक्षण। न. च. वृ/४ तच्च तह परमठ्ठ दव्वसहावं तहेव परमपरं । धेयं सुद्ध परमं एयट्ठा हुंति अभिहाणा 1४1 -तत्त्व, परमार्थ, द्रव्यस्वभाव, पर, जघन्य उत्कृष्ट परमाणुके लक्षण । अपर, ध्येय, शुद्ध और परम ये सब एक अर्थके वाचक हैं।४। । द्रव्य व भाव परमाणुके लक्षण । त. अनु /१३६ माध्यस्थ्यं समतोपेक्षा वैराग्य साम्यमस्पृहा । वैतृष्ण्यं परमाणुके अस्तित्व सम्बन्धी शंका समाधान । परमः शान्तिरित्येकार्थोऽभिधीयते ॥१३॥ माध्यस्थ्य, समता, आदि, मध्य, अन्तहीन भी उसका अस्तित्व है। उपेक्षा, वैराग्य, साम्य, अस्पृहा, बैतृष्ण्य, परम, और शान्ति ये सब परमाणुमें स्पर्शादि गुणोंकी सिद्धि । एक ही अर्थको लिये हुए है ।१३।। परम अद्वत-निर्विकाप समाधिका अपरनाम-दे० मोक्षमार्ग/२/५ । परमाणु निर्देश परम एकत्व परमाणु मूर्त है। -दे. मूर्त । परषि -दे ऋषि। वास्तवमें परमाणु ही पुद्गल द्रव्य है। परमाणुमें जाति भेद नहीं है। परमगुरु-दे० गुरु/१। सिद्धोंवत् परमाणु निष्क्रिय नहीं। परमज्योति-निर्विकल्प समाधिका अपरनाम दे० मोक्षमार्ग/२/५ । परमाणु अशब्द है। परमतत्त्व परमाणुकी उत्पत्तिका कारण । परमतत्त्वज्ञान परमाणुका लोकमें अवस्थान क्रम । परमधर्म-दे० धर्म।। लोक स्थित परमाणुओंमें कुछ चलित है कुछ अचलित। परमध्यान-निर्विकल्प समाधिका अपरनाम दे० मोक्षमार्ग/२/11 अनन्त परमाणु आजतक अवस्थित हैं। परमब्रह्म नित्य अवस्थित परमाणुओंका कथंचित् निषेध । परमाणुमें चार गुणकी पाँच पर्याय होती है। परमभावग्राहकनय-दे० नय/1V/ परमाणुकी सीधी व तिरछी दोनों प्रकारकी गति परमभेदज्ञान-निर्विकल्प समाधिका अपरनाम-दे० मोक्षमार्ग/ सम्भव है। -दे० गति/१। परमविष्णु परमाणुमें कथंचित् सावयव व निरवयवपना परमवीतरागता परमाणु आदि, मध्य व अन्तहीन होता है। परमसमता परमाणु अविभागी व एकप्रदेशी होता है। परमसमरसीभाव अप्रदेशी या निरवयवपनेमें हेतु । परमसमाधि परमाणुका आकार । सावयवपनेमें हेतु। परमस्वरूप निरवयव व सावयवपनेका समन्वय । परमस्वास्थ्य परमाणुमें परस्पर बन्ध सम्बन्धी। --दे० स्कंध/२। परमहंस स्कन्धमें परमाणु परस्पर सर्वदेशेन स्पर्श करते हैं या परमाणु-पुदगल द्रव्यके अन्तिम छोटेसे छोटे भागको परमाणु एकदेशेन । -दे० परमाणु/३।। कहते है। सूक्ष्मताका द्योतक होनेसे चेतनके निर्विकल्प सूक्ष्म भाव भी कदाचित परमाणु कह दिये जाते हैं। जैनदर्शनमें पृथिवी आदिके परमाणुओंमें कोई भेद नहीं है। सभी परमाणु स्पर्श, रस, गन्ध व वर्णवाले होते है। स्पर्श गुणकी हलकी, भारी या कठोर १. परमाणुके भेद व लक्षण तथा उसके अस्तित्वको नरमरूप पर्याय परमाणुमें नहीं पायी जाती है, क्योंकि वह संयोगी सिद्धि वण्यमें ही होनी सम्भव है। इनके परस्पर मिलनेसे ही पृथिवी आदि तत्त्वोंकी उत्पत्ति होती है। आदि, मध्म व अन्तकी कल्पनासे 1. परमार्थ परमाणु सामान्यका लक्षण प्रतीत होते हुए भी एकप्रदेशी होनेके कारण यह दिशाओंवाला ति. प./२/६६ सत्येण सुतिक्खेण छेत्तुं भेत्तुं च जं किरस्सक्कं । जलयणअनुमान करने में आता है। लादिहि णासं प एदिसो होदि परमाणू।१६। -जो अत्यन्त तीक्ष्ण जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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