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________________ प्रकृति बंध ७. विशेष प्रकृतिवन्ध स्थान ओघप्ररूपणा प्रति प्रति स्थान स्थान प्रकृति भंग स.. १ ज्ञानावरणीय गुण स्थान ३ १-१२ गुणस्थान १-२ गुणस्थान 3-4/1 e fu वेदनीय १-६ गुणस्थान ७- १३ २ दर्शनावरणीय (प. सं/प्रा/४/२४३), (पं सं/- (४/१९४ ( शतक / ४३); (प. स्वं /६/सू./०-१६/८२-००), ( गो . / ४३१-४६२/६०६-६०१) १ X " संगुणस्थान सातिशय २ सासादन ३ मिश्र कुल स्थान ॐ कुल बन्ध योग्य १ १ मोहनीय नोट- देखो पृथक् सारणी Jain Education International (पं. स. प्र./५/४-२४) ( प स (सं./५/१-३०); [] ६/८१) (गो.क./४५८) X पाँचो प्रकृतियों १ १ ३ १ Ε ६ १ प्रकृतियोंका विवरण ० गुणस्थान २ १ कुल स्थान प्रति स्थान प्रकृति प्रात स्थान भ सर्व प्रकृतियाँ - स्त्यान० त्रिक चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल २ (ध. ६/८७-८८), ( गो . क. / ४५८ ) १ मिथ्यादृष्टि - २६ | ( सम्यक् प्रकृति व मिश्र रहित ) सामान्य १ २२ | ६ दोनों में अन्यतमसे २भग केवल साता का एक भग १०९ प्रकृतियो व भगोका विवरण हास्य रति तथा अरति शोक में से १ युगल x अन्यतम वेद =२x३=६ २२ १२२ ९२६ - अरति शोक, स्त्री, नपु. = २२ २४ ( मिथ्यात्व व नपु० रहित ) १ २१ | ४ ५ आयुः १ २ ३ ४ अविरत सम्यक् १६ ( अनन्ता० चतु व स्त्री वेद रहित ) क्षा०, वेदक, १७५ २ कृतकृत्य, वे०, उप० १ मिश्रवत् ४ ५-७ ८ ६ | नाम कर्म देखो पृथक् सारणी ७ गोत्र— मिथ्यादृष्टि सामान्य व सासादन सातिशय मिध्या०३-१० अन्तराय १-१२ सं गुणस्थान ( हास्य युगल या अरति युगल ) x ७ अप्रमत्त सयत - | ( स्त्री वेद या पुरुष वेद) = ४ १६ ( अनन्ता० चतु० व स्त्री वेद रहित ) ८ अपूर्व करण - /vii १ | १७ | २ | ( हास्य युगल या अरति युगल ) x ६ अनिवृत्ति करण ( पुरुष वेद ) =२ 2/2-2/v t/vi ε/vii e/vur ५ संयतासंयत१५ उपरोक्त ४ सम्य० सहि० ६ प्रमत्त संयत- ११ चारो प्रकार के सम्य० सहित 8/1X १० सूक्ष्म साम्पराय जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only कुल स्थान प्रकृति (च./१/१८-१०१) १ १ १ X ह ८. मोहनीयवन्ध स्थान ओघ प्ररूपणा (सं./६/२००४/पं.सं.प्रा.४/२४६-२३१) ( सं / प्रा/७/२६- २१.३००-३०२), (पं. सं/सं./४/११८-१२३), (पं.सं./ स./५/-३३-३७,३२७-३२१ ) ( सप्ततिका / १४ ४२ ); ( गो क / ४६३-६७८ /६०६-६७८ ) १ ७. प्रकृतिबन्ध विषयक प्ररूपणाएँ १ २ २ १ १ ४ विशेष देखो पृथक सारणी बायु ३/११ १ प्रति प्रति स्थान स्थान १ (ध. ८/१११-११२) २ १ १ १ १ १ कुल बन्ध योग्य कुल स्थान प्रति स्थान प्रकृति प्रति स्थान भंग X १ ५ ४ ३ X १ १ १ २ २ १ प्रकृतियों का विवरण १ चारोंमें अन्यतम से ४ भग नरक रहित अन्यतम एक X देव मनुष्या एक देवाय अन्यतम एक (मिश्रवत १६ - अप्रत्या० ४ = १५ ) | १३ | २ | मिश्रवत् उच्च सर्व प्रकृतियों प्रकृतियों व भगका विवरण (प्रत्या० चतु० रहित ) मिश्रवत् अरति शोक रहित ) सं० चतु०, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, पुरुष वेद ५ १ सं० चतु०, पुरुष वैद ४ १ सं० चतु० ३ १ सं० मान, माया, लोभ १२ १ लोभ १ अप्रमत्तवत् (सं० चतु०, पुरुष मेद) स० माया, स० लोभ www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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