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________________ काल ७८ सूचीपत्र समयादिका उपादान कारण तो सूर्य परमाणु आदि है, काल द्रव्यसे क्या प्रयोजन । परमाणु श्रादिकी गतिमें भी धर्मादि द्रव्य निमित्त हैं. काल द्रव्यसे क्या प्रयोजन । सर्व द्रव्य स्वभावसे ही परिणमन करते है काल द्रव्यसे क्या प्रयोजन । काल द्रव्य न माने तो क्या दोष है। अलोकाकाशमें वर्तनाका हेतु क्या ? स्वयकाल द्रव्यमें वर्तनाका हेतु क्या ? काल द्रव्यको असंख्यात माननेकी क्या आवश्यकता, एक अखण्ड द्रव्ध मानिए । काल द्रव्य क्रियावान् नही है। -दे० द्रव्य/३। कालद्रव्य क्रियावान् क्यों नहीं? कालागुको अनन्त कैसे कहते हैं ? कालद्रव्यको जाननेका प्रयोजन । काल द्रव्यका उदासीन कारणपना । -दे० कारण III/R1 ३. समयादि व्यवहार काल निर्देश व तत्सम्बन्धी शंका समाधान सुषमा दुषमा सामान्यका लक्षण । श्रवसर्षिणी कालके षट मेदोंका स्वरूप । उत्सर्पिणी कालका लक्षण व काल प्रमाण । उत्सर्पिणी कालके षट् भेदोंका स्वरूप । छह कालोका पृथक पृथक् प्रमाण । अवसर्पिणीके छह मेदों में क्रमसे जीवोंकी वृद्धि होती है। | उत्सर्पिणीके छह कालोंमें जीवोंकी क्रमिक हानि व कल्पवृक्षोंकी क्रमिक वृद्धि । युगका प्रारम्भ व उसका क्रम। कृतयुग या कर्मभूमिका प्रारम्भ -दे० भूमि/४। हुण्डावसर्पिणी कालकी विशेषताएँ। ये उत्सर्पिणी आदि षटकाल भरत व ऐरावत क्षेत्रोंमें ही होते है। मध्यलोकमें सुषमादुषमा आदि काल विभाग । छहों कालोमें सुख-दुःख आदिका सामान्य कथन । चतुर्थ कालकी कुछ विशेषताएँ। पचम काल की कुछ विशेषताएँ । पंचम कालमें भी ध्यान व मोक्षमार्ग __-दे० धर्मध्यान।। १७ | षट कालोंमें आयु आहारादिकी वृद्धि व हानि प्रद. शक सारणी। समयादिको अपेक्षा व्यवहार कालका निर्देश । समय निमिषादि काल प्रमाणोंकी सारणी -दे० गणित/1/१॥ समयादि की उत्पत्ति के निमित्त ।। परमाणुको तीव्र गतिसे समयका विभाग नही हो जाता। व्यवहार कालका व्यवहार मनुष्य क्षेत्रमें ही होता | कालानुयोगद्वार तथा तत्सम्बन्धी कुछ नियम कालानुयोगद्वारका लक्षण । काल व अन्तरानुयोगद्वारमें अन्तर । कालप्ररूपणा सम्बन्धी सामान्य नियम । ओघ प्ररूपणा सम्बन्धी सामान्य नियम । अोध प्ररूपणा में नाना जोवोंकी जघन्य काल प्राप्ति विधि । ओव प्ररूपणामें नाना जीवोंकी जघन्य काल प्राप्ति विधि। प्रोष प्ररूपणामें एक जीवकी जघन्य काल प्राप्ति देवलोक आदिमें इसका धवहार मनुष्य क्षेत्रकी अपेक्षा किया जाता है। जब सब द्रव्योंका परिणमन कान है तो मनुष्य क्षेत्रमें ही इसका व्यवहार क्यों ? भूत वर्तमान व भविष्यत् कालका प्रमाण । अर्ध पुद्गल परावर्तन कालकी अनन्तता। -दे० अनन्त/२। बतमान कालका प्रमाण -दे० वर्तमान । काल प्रमाण मानने से अनादिव के लोप की आशंका निश्चय व व्यवहार काल में अन्तर । भवस्थिति व कार्यास्थतिमें अन्तर -दे० स्थिति/२। विधि। गुणस्थानों विशेष सम्बन्धी नियम । -दे० सम्यक्त्व व संयम मार्गणा। देवमतिमें मिथ्यात्वके उत्कृष्टकाल सम्बन्धी नियम । इन्द्रिय मार्गणाम उत्कृष्ट भ्रमणकाल प्राप्ति विधि । कायमार्गणामें त्रसोंका उत्कृष्ट भ्रमणकाल प्राप्ति विधि। योगमार्गणा में एक जीवापेक्षा जघन्य काल प्राप्ति विधि । योग मार्गणामें एक जीवापेक्षा उत्कृष्ट काल प्राप्ति विधि। उत्सर्पिणी आदि काल निर्देश | कल्प काल निर्देश। कालके उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी दो भेद । दोनों के सुषमादि छह-छह भेद । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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