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________________ नृपनंदि नृपनंदि राजा भोजके समकालीन थे। तदनुसार इनका समय वि० १०७८-१११२ ( ई० १०२१-१०२५ ); आता है । ( वसु. श्रा०/प्र. RE / H L Jain) नेत्रोन्मीलन - प्रतिष्ठा विधानमे भगवान्की नेत्रोन्मीलन क्रिया - दे० प्रतिष्ठा विधान । नेमिचंद्र बलात्कार प्रभाचन्द्र के शिष्य भानुचन्द्र के 1 गुरु । समय-शक ४७८-४८७ ( ई० ५५६-५६५) । दे. इतिहास / ७ / २ ) । २. नन्दिसंघ देशोय गण । अभयनन्दि के दीक्षाशिष्य और बीरनन्दि तथा इन्द्रनन्दके लघु गुरु भाई अथवा विद्या शिष्य । मन्त्री चामुण्डरायके गुरु उपाधि सिद्धान्त चक्रवर्ती कृतियें गोमहसार, लब्धिसार, शपणसार, त्रिलोक्सार । समय-लगभग ई० ६८१ । ई०श० १०-११ (०तिहास ७/०९/२० (०/२/४२२) २. वि संघ देशीयगण | श्रावकाचार के कर्ता वसुनन्दि के शिष्य । उपाधि सैद्धान्तिक देव । कृति - द्रव्य संग्रह । समय-धारा नगरी के राजा भोज (वि० १०७५-११२५) के समकालीन अर्थात लगभग वि० ११२५ ( ई० १०६८) । (दे० इतिहास /७/५), (ती०/२/४४१) ४ क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र त्रैविद्य (वि० १२६० ई० १२०३ ) के गुरु । समयलगभग ई० १२८० - १२१० । ५. अर्ध नेमिपुराण के कर्ता एक कन्नड कवि । समय - ई० श० १३/ (ती० /४/३०६) ६. रवित्रत कथा के कर्ता एक अभ्रश कवि । समय- वि० श० १५ / ( ती०/४/२४३) । ७. नन्दिसंघ बलात्कारगण सरस्वती गच्छ । भट्टारक ज्ञानभूषण (वि० १५५५ दे० इतिहास / ७ / ४) के शिष्य केशव वर्णी कृत कन्नड टीका ( वि०१४१६ ) के आधारपर गोमहसारकी 'जीव प्रबोधिना' नामक संस्कृत टीका लिखी। समय-ई० श० १६ का प्रारम्भ । (जै० / १/४०४) | नेमिचन्द्रिका - प० मनरंगलाल ( ई० १८००-१८३२ ) छन्दबद्ध कथा ग्रन्थ । नेमिदत्त - नन्दिसंघ बलात्कार गण सूरत शाखा । भट्टारक महिलभूषण ( इति० / ७ / ४ ) के शिष्य एक ब्रह्मचारी । कृतिये - आराधना कथा कोष, नेमिनाथ पुराण, श्रीपाल चरित, सुदर्शन चरित प्रीतं महामुनि चरित, रात्रिभोजन त्याग क्या, धन्यकुमार चरित, नेमिनिर्वाण काव्य, नागकुमार कथा, धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार, मालारोहिणी । समय-वि० १५७५-१५८५. ई० श० १६ । (जै० / २/३०८), (सी०/३/४०३) । नेमिदेव के सोमदेव ( ई०२३३) के गुरु बाद विजेता । समय ई० ११८ - १४३ । ( योगमार्ग/प्र० प्र० श्री लाल) । कृत भाषा - सूर्य पूर्व नेमिनाथ - (म. पु. / ७० / श्लो. नं. पूर्व भव नं. ६ में पुष्करार्ध द्वीपके पश्चिम मेरुके पास मन्धित देश, विवार्थ पर्वतकी दक्षिण श्रेणी में नगर के राजा सूर्यप्रभके पुत्र चिन्तागति मे २६-२५ में चतुर्थ स्वर्गमे सामानिकदेव हुए 1३६पूर्व भवनं धमें सुगन्धिता देशके सिंहपुर नगरके राजा अदासके पुत्र अपराजित हुए |४१ । पूर्वभव नं० ३ में अच्युत स्वर्गमे इन्द्र हुए १५० पूर्वभय नं. २ मे हस्तिनापुर के राजा श्री चन्द्र के पुत्र प्रतिष्ठ हुए । ५१ | और पूर्व भव मे जयन्त नामक अनुत्तर विमानमें अहमिन्द्र हुए । ५६| ( ह. पु. / ३४/१७-४३ ); ( म. पू. /७२/२७७ में युगपत् सर्व भन दिये है। वर्तमान भगमे २२ तीर्थकर हुए ६० तीर्थकर / ६३० Jain Education International नोकर्याहार नेमिनाथ पुराण० मिस ई० १४२५) कृत यथा नाम संस्कृत ग्रन्थ अधिकार स० १६ । (ती०/३/४०४ ) | नेमि निर्वाण काव्य - बाग्भट्ट (६० १०७५ - ११२५) कृत १५ सर्ग प्रमाण यथानाम संस्कृत काव्य ( ती० / ३ / ४०४) । नेमिषेण- [माथुर संघकी गुर्वावसी के अनुसार आप अमितगति प्र के शिष्य तथा श्री माधवसेनके गुरु थे। समय- वि. १०००-१०४० ( ई० १४३ - ६८३ ) - दे० इतिहास / ७ /११ । नैऋत्य - १. पश्चिम दक्षिणी कोणवाली विदिशा । २. लोकपाल देवका एक भेददे० लोकपाल नैगमनय - २० नम /III/२-३ | नेपाल - भरतक्षेत्रके विन्ध्याचल पर्वतपर स्थित एक देश-दे० मनुष्य / ४। नैमित्तिक कार्य दे० कारण/111 नैमित्तिक सुख दे० सुख । नैमिष --- विजयार्ध की उत्तरश्रेणीका एक नगर - दे० विद्याधर । नैयायिक दर्शन दे० न्याय ९ । नैषध-भरतक्षेत्र के विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित -६० मनुष्य ४ मैष्ठिक ब्रह्मचारी - दे० ब्रह्मचारी | एक देश नैष्ठिक श्रावक - १. श्रावक सामान्य (दे० श्रावक / १) । २. नैष्ठिक श्रावककी ११ प्रतिमाएँ - दे० वह वह नाम । - चक्रवर्तीकी नवनिधिमेंसे एक-दे० शलाका पुरुष / २ । नैसर्पनो- . ६/१,६-१,२३/गा. ८-१, ४४, ४६ प्रतिषेधयति समस्तप्रसक्तमर्थं तु जगति नोशव्द । स पुनस्तदवयवे वा तस्मादर्थान्तरे या स्याव नो त शविषयप्रतिषेधो ऽन्यः स्वपरयोगात् । जगमें 'भ' यह शब्द प्रसक्त समस्त अर्थका तो प्रतिषेध करता ही है, किन्तु वह प्रसक्त अर्थके अवयव अर्थात् एक देशमें अथवा उससे भिन्न अर्थ में रहता है, अर्थात् उसका बोध कराता है ।८। 'नो' यह शब्द स्व और परके योगसे विक्षित वस्तुके एकवेशका प्रतिषेधक और विधायक होता है घ. १५/४/८ पोसो सम्पडिसेति किरण पेटपदे। [१] गाणावरणस्साभावस्त पसंगादो, सु [व] वयण विरोहादो च । तम्हा फोटो सहिओ ति धेतव्यं प्रश्न 'नो' शब्दको सबके प्रतिषेधक रूपसे क्यों नहीं ग्रहण किया जाता ? उत्तर--नहीं, क्योंकि मेसा स्वीकार करनेपर एक तो ज्ञानावरण अभावका प्रसंग आता है दूसरे स्ववचनका विरोध भी होता है, इसलिए 'नो' शब्दको देश प्रतिषेधक ही ग्रहण करना चाहिए। नोआगम १. नोआगम-दे० आगम / १ । २. नोआगम द्रव्यनिक्षेप / ५ । ३० नोआगमभाव निक्षेप-दे० निक्षेप / ७ ॥ नो इंद्रिय- -दे० मन / ८ । दे० । नो ओम - ३० जन नोकर्म - दे० कर्म /२ नोकर्माहार - दे० आहार /I/१ । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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