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________________ निक्षेप अनध्यवसाय में अवस्थित वस्तुको उनसे निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है उसे निलेप कहते हैं। अर्थाद जो अनिर्णीत वस्तुका नामादिक द्वारा निर्णय करावे, उसे निक्षेप कहते हैं (क. पा. २/१२/ ४७५/४२५/७); (घ. १/१,१.१/१०/४); (ध. १३/५.३.५/३/११); (ध. १३/ १०६.३/११८/४), (और भी दे० निलेप/१/३) २ अथभा माहरी पदार्थके विकल्पको निक्षेप कहते है। (ध. १३/५.५.३/१६८/४) । ३. अथवा अप्रकृतका निराकरण करके प्रकृतका निरूपण करनेवाला निक्षेप है । (और भी दे० निक्षेप १/४): (. ६/४.१.४६/९४९१९); ( . १३/२२.३/ १६८/४ ) आ. प./६ प्रमाणनययोनिक्षेप आरोपणं स नामस्थापनादिभेदचतुर्विधं इति निक्षेपस्य व्युत्पत्तिः । = प्रमाण या नयका आरोपण या निक्षेप नाम स्थापना आदिरूप चार प्रकारोसे होता है। यही निक्षेपकी व्युत्पत्ति है। न. च. / भूत / ४९ वस्तु नामादिषु क्षिपतीति निक्षेपका नामादिकमें क्षेप करने या धरोहर रखनेको निक्षेप कहते है । न. च. वृ./२६६ जुती सुजुत्तमरगे जं चउभेयेण होइ खलु ठेवणं । वज्जे सदि णामादिसु तं क्खेिवं हवे समये | २६६ | = युक्तिमार्गसे प्रयोजनवश जो वस्तुको नाम आदि चार भेदोमें क्षेपण करे उसे आगम में निक्षेप कहा जाता है। २. निक्षेपके भेद १. चार भेद त. सू./१/५ नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्त्र्यास' नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूपसे उनका अर्थात् सम्यग्दर्शनादिका और जीव आदिका न्यास अर्थात् निक्षेप होता है। (ष. वं. १३/५,५/सू. ४/१६८); (ध. १/ १,१,१/८३/१): (ध. ४/१,३,१/गा. २ / ३); (आ. प./१); (न.च.वृ./२७१); (न. ४) (गो.क./ १२ / ५२) (१.ध.पू. /०४९)। २. छह भेद १४/५.६/ सूत्र ०९/११ क्लेयेति शब्बिहे नगर णामवग्गणा ठेवणवग्गणा दव्ववग्गणा खेत्तवग्गणा कालवग्गणा भाववग्गणा चेदि । वर्गणानिक्षेपका प्रकरण है। वर्गणा निक्षेप छह अकारका है - नामवर्गणा, स्थापनावर्गणा, द्रव्यवर्गणा, क्षेत्रवर्गणा, कालवण और मानवर्गणा । (च. १२/१.१.१/१०/४) । नोट-पट्खण्डागम व धमला सर्वत्र प्रायः इन छह निक्षेपोंके आध्यसे ही प्रत्येक प्रकरणकी व्याख्या की गयी है । ३. अनन्त भेद श्लो. वा./२/१/५/ श्लो. ७१ / २८२ नन्वनन्तः पदार्थानां निथेपो वाच्य इत्यन् । नामादिष्वेव तस्यान्तर्भावात्संक्षेपरूपत 1७१ - प्रश्नपदार्थोंके निक्षेप अनन्त कहने चाहिए । उत्तर- उन अनन्त निक्षेपका संक्षेपरूपसे चार में ही अन्तर्भाव हो जाता है। अर्थात् संक्षेपसे निक्षेप पार हैं और विस्तारसे अनन्त (भ. १४/५.६७१/५९/१४) ४. निक्षेपके भेद प्रभेदोंकी तालिका Jain Education International ५९१ I जाति द्रव्य गुण क्रिया I समवाय ' I नाम स्थापना एक जीव नाना जीव २एक अजीव ३ नाना अजीव ४ एक जीव ५एक अजीब एक जीव ६नाना अजीव नाना जीव ७एक अजीव संयोग असद्भाव 1 नाना जीव ८नाना अजीव ५. सूत्रसम ६. अर्थसम १. स्थित २. जित ३. परिचित ४. वचनोपगत ७. ग्रन्थसम ८. नामसम १. घोषसम जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश आगम | अक्ष निक्षेप 1 For Private & Personal Use Only 1 द्रव्य इसके भेद प्रभेद दे० नीचे * वराटक १. काष्ठ कर्म २. चित्र कर्म ३. पोत कर्म ४. लेप्य कर्म ५. लयन कर्म ६. पीस कर्म प्रत्याख्यान ७. गृह कर्म ८. भित्ति कर्म ६. दन्त कर्म १०. भेड कर्म इत्यादि (*) निक्षेप च्युत च्यावित व्यक्त 1 I I भक्त- इंगिनी प्रा २. परिचित १. निक्षेप सामान्य निर्देश सद्भाव 1 क्षेत्र ४ वचनोपगत ५. सूत्रसम ६. अर्थ सम ७. ग्रन्थसम योपगमन ९. स्थित २. जित ८. नामसम ६. घोषसम - T काल ज्ञायक शरीर भावी तद्व्यतिरिक्त I / 1 1 T भूत वर्तमान भावी कर्म नोकर्म 1 T│││T आगम नोआगम 2 उपयुक्त तत्प रिणत १. स्थित २. जित ३. परिचित ४. वचनो पगत ५. सूत्रसम ८. अर्थसम ७. ग्रन्थसम ८ नामसम६. घोषसम नोआगंम I लौकिक लोकोत्तर I 1 T सचित्त अचित्त मिश्र १. प्रथम भाव २. वाइम ३. वेदम ४. पूरिम ५. संघातिम ६. अहोदिम ७. क्खेिदिम ओव्वे लिम ८. ६. उद्द लिम १०. वर्ण ११. चूर्ण १२. गन्ध १३. विलेपन इत्यादि नोट - इन सर्वभेद प्रभेदों के प्रमाणों के लिए - दे० वह वह निक्षेप निर्देश www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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