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________________ नरक नं. ३. परस्थान ऊर्ध्वं अन्तराल ( ऊपरकी पृथिवी के अन्तिम पटल व नीचेकी पृथिवीके प्रथम पटल के बिलोंके मध्य अन्तराल) (रा.मा/३/२/०/९६०/२०) (सि.प./२/मा. नं.); (त्रि. सा. / १७३ - १७४) । ति. प / ऊपर नीचेकी गा. पृथिवियोंके नाम १ १६८ २ १७० ३ १७२ ४ १७४ १०६ ६ | १७८ ७ X रत्न. प्र - शर्करा - बालुका-पंक धूम-राम तम महातम महातम - इन्द्रक २०,०००यो. कम १ राजू २६००० 29 33 29 13 २२००० " 22 19 33 १८०००० १४००० ३०००० 33 35 X " Jain Education International 12 13 कोक नं. १ ( ति १/२/९०८-१५६) (त्रि, सा./ १६६ ) । 12 3" 13 श्रेणी बद्ध ११. साठ पृथिवियोंमें पटलोंके नाम व उनमें स्थित बिलोंका परिचय इन्द्रकोंवत् ( ति प /२/१८७ - १८८) इन्द्रकोत् ( ति.प./२/१६४) दे० नरक/५/८/१ सांतों पृथिवियों लगभग एक राजूके अन्तरात से नीचे नीचे स्थित हैं । दे० नरक /५/३ प्रत्येक पृथिवी नरक प्रस्तर या पटल है, जो एक-एक हजार योजन अन्तरालसे ऊपर-नीचे स्थित है। = रा.वा/३/२/२/१६२/११ तत्र त्रयोदश नरकप्रस्ताराः त्रयोदशैव इन्द्रकनरकाणि सौमन्तकनिरय... तहाँ रत्नप्रभा पृथिवीके अन्त भागमै तेरह प्रस्तर हैं और तेरह ही नरक है, जिनके नाम सीमन्तक निरय आदि हैं। (अर्थात् पटलोंक भी यही नाम हैं जो कि इन्द्रकोंके हैं। इन्हीं पटलों व इन्द्रकोंके नाम विस्तार आदिका विशेष परिचय आगे कोष्ठकों में दिया गया है। कोड नं. १-४ (दि.१/२/४/४५): (रा.वा./३/२/२/१६२/१९) (६.५/ ४/०६-८२): (प्र.सा./९५४-१५६): (ज.प./११/९४६-१४४) । कोष्ठक नं. ५ - - ( ति.प. / २ / ३८, ५५-५८); (ह.पु. /४/८६-१५०), (त्रि. सा./१६१-१६५)। (६.१०/४/२०१-२१०). प ); ५७९ ), प्रत्येक पृथिवोके पटलों या इन्द्रकों के नाम ति.प. रा. वा. ह. पु. त्रि. सा. २ शतप् २ शीत . प्रस्त तपन तपन स्तन ११ स्तन- स्तन- स्तन | लोलुक लोलुक लोलुप लोला ३ बालुका प्रभा तठ | जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश ३ । ४ ६ प्रज्व- प्रज्वतिल लित १ १ रत्नप्रभा पृथिवी १३| ४४२० १) सोमंतक सोमंतक सीमंतक सीमंतक १ ४६ ४८ ३८८ ४५ लाख २ निरय निरय नारक निरय १ रीस्क रौरूक रौतक रोख ४० ४७ ३८० ४४०८३३३ १४० ४६३०२४३९६६६६३ १४६ ४५ ३६४ ४२२५००० ४ भ्रान्त भ्रान्त भ्रान्त भ्रान्त ५ उद्भ्रात उद्भ्रांत उद्भ्रान्त उद्भ्रान्त १ ४५४४३५६ ४१३३३३३ संभ्रान्त संभ्रान्त संभ्रान्त संभ्रान्त १४४४३ २४० ४० ४९६६६३ ३६५०००० ३०६६६६६३ ४० २६ ३९६ ३८०००० ७ असभ्रांत असंभ्रांत असंभ्रांत असंभ्रांत १४३४२ ३४० ८. विधान्त विभ्रान्त विभ्रान्त विभ्रान्त १४२ ४१३६२ २८५८३११९ ६ तप्त तप्त त्रस्त त्रस्त १४१ ४० ३२४ १० त्रसित त्रस्त प्रसित प्रसित ९१वक्रान्त व्युत्क्रांत वक्रान्त वक्रान्त १२ अवक्रांत अवक्रांत अवक्रांत अवक्रांत ११३ विक्रांत विक्रांत विक्रांत विक्रात २ शर्करा प्रभा For Private & Personal Use Only 16 प्रत्येक पटलकी दिशा व विदिशा प्रत्येक पटल इन्द्रक तापन १ ४| तापन आतपन तापन निदाघ निदाघ निदाघ निदाघ १ प्रज्व- उज्ज्व- १ लित लित ५. नरकलोकके निर्देश ९ तरक ३२१६६६६ | ३१२५००० | ३०३३३३३3 १) स्तनक | स्तनक | तरक १३६३५२८४ | ३३०८३३३ २ तनक संस्तनक स्तनक स्तनक १ ३५ ३४ २७६ ३. मनक वनक मनक वनक १ ३४ ३३ २६८ ४ वनक मनक वनक मनक १ ३३ ३२ २६० ५ घात घाट घाट खडा ९ २२ २९ २५९ ३१२५२ ६ संघात संघाट संघाट खडिका १३१ ३० २४४ ७ जिह्वा जिह्न १३० २१ २१६ २१ २० २२८ २६४१५८६ २५०००० २०५८३३३ २६६६६६६ जिडा जिला ८ जिहक उर्जिडि जिह्नक जिक्षिक १ ६ लोल कालोल लोल १० लोक सोकसो लौकिक १ २८ २७ २२० २५७५००० १२७ २४ २१२ २४०३३ लोलवत्स १२६२५२०४ २३६१६६ में श्रेणीबद्ध पित तप्त तप्त तपित तपित १ तपन तपन १ दिशा | विदिशा प्रत्येक इन्द्रकका कुल योग विस्तार ह योजन १ ३६ ३८ ३०८ ३५८३३३३३ ३४६१६६६ १ ३५३७ ३०० १३७ ३६ २१२ ३४००००० २६८४ ११ १४०६ २५ २४ १६६ २३००००० २४ २३ १८८ २ २०८३३३३ २३) २२ १८० | २११६६६६ उ २२ २१ १७२ २०२५००० २९२०६४ ९६३३३३३ २०१६ १५६ १८४१६६६ www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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