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________________ नय ५१२ सूचीपत्र ६ उपचरित असद्भुत व्यवहारनय निर्देश१. भिन्न द्रव्यों में अभेदकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । २. विभाव भावोंकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण | ३. इस न यके कारण व प्रयोजन । उपचार नय सम्बन्धी। -दे० उपचार । व्यवहारनयकी कथंचित् गौणता २. अभेद वस्तुमें भेदोपचार सम्बन्धी। ३. भिन्न वस्तुओंमें अभेदोपचार सम्बन्धी। ४. लोकव्यवहारगत वस्तु सम्बन्धी। व्यवहारनयकी भेद प्रवृत्तिकी सीमा । व्यवहारनय सामान्यके कारण प्रयोजन । -दे० नय/V/७ | व्यवहारनयके भेद व लक्षणादि-- १. पृथक्त्व व एकत्व व्यवहार । २. सद्भूत व असभूत व्यवहार । ३. सामान्य व विशेष संग्रहभेदक व्यवहार । व्यवहार नयाभासका लक्षण । चार्वाक मत व्यवहारनयाभासी है। -दे० अनेकान्त/२/11 यह द्रव्यार्थिक व अर्थनय है। -दे० नय/III/RA व्यवहारनय अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है। पर्यायाथिकनय भी कथंचित् व्यवहार है। इसमें यथासम्भव निक्षेपोंका अन्तर्भाव । -दे०निक्षेप/२। उपनय निर्देश१. उपनयका लक्षण व इसके भेद । २. उपनय भी व्यवहारनय है। arw-r09 * व्यवहारनय असत्यार्थ है, तथा उसका हेतु । व्यवहारनय उपचारमात्र है। व्यवहारनय व्यभिचारी है। व्यवहारनय लौकिक रूढि है। व्यवहारनय अध्यवसान है। व्यवहारनय कथनमात्र है। व्यवहारनय साधकतम नहीं है। व्यवहारनय निश्चय द्वारा निषिद्ध है। -दे० नय/VERI व्यवहारनय सिद्धान्तविरुद्ध तथा नयाभास है। व्यवहारनयका विषय सदा गौण होता है। शुद्ध दृष्टिमें व्यवहार को स्थान नहीं। व्यवहारनयका विषय निष्फल है। व्यहारनयका आश्रय मिथ्यात्व है। । तत्त्व निर्णय करनेमें लोकव्यवहारका विच्छेद होनेका भय नहीं किया जाता। -दे० निक्षेप/३/३ तथा । -दे० नय/III/६/१०IV/३/१०। | १३ व्यवहारनय हेय है। सद्भूत असद्भुत व्यवहार निर्देश सद्भुत व्यवहारनय सामान्य निर्देश१. लक्षण व उदाहरण २. कारण व प्रयोजन ३.व्यवहार सामान्य व सद्भूत व्यवहारमें अन्तर। ४. सद्भूत व्यवहारनयके भेद । अनुपचरित या अशुद्ध सद्भुत व्यवहार निर्देश१. क्षायिक शुद्धकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । २. पारिणामिक शुद्धकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । ३. अनुपचारित व शुद्धसद्भूतकी एकार्थता। ४. इस नयके कारण व प्रयोजन। उपचरित या अशुद्ध सद्भुत निर्देश१. क्षायोपशमिकभावकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । २. पारिणामिकभावमै उपचारकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । ३, उपचरित व अशुद्ध सदभूतकी एकार्थता। ४. इस नयके कारण व प्रयोजन । असद्भुत व्यवहार सामान्य निर्देश१. लक्षण व उदाहरण । २. इस नयके कारण व प्रयोजन । ३. असदभूत व्यवहारनयके भेद । अनुपचरित असद्भुत गबहार निर्देशः१. भिन्न द्रव्यमें अभेदकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । २, विभाव भावकी अपेक्षा लक्षण व उदाहरण । ३. इस नयका कारण व प्रयोजन । ७ / व्यवहारनयकी कथचित् प्रधानता व्यवहारनय सर्वथा निषिद्ध नहीं है ( व्यवहार दृष्टिसे यह सत्यार्थ है) २ निचली भूमिकामें व्यवहार प्रयोजनीय है। मन्दबुद्धियोंके लिए व्यवहार उपकारी है। व्यवहारनय निश्चयनयका साधक है। -दे० नय/V/E/RN | व्यवहारपूर्वक ही निश्चय तत्त्वका शान होना सम्भव ३ मन्द ५ व्यवहारके बिना निश्चयका प्रतिपादन शक्य नहीं। तीर्थप्रवृत्तिकी रक्षार्थ व्यवहारनय प्रयोजनीय है। -दे० नय/V//४ वस्तुमें आस्तिक्य बुद्धिके अर्थ प्रयोजनीय है। | वस्तुकी निश्चित प्रतिपत्तिके अर्थ यही प्रधान है। व्यवहारशून्य निश्चयनय कल्पनामात्र है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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