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________________ ध्रुवराज नंदीश्वर कथा नंदा-१, भरतक्षेत्र आर्यखण्डकी एक नदी। - दे० मनुष्य/४। २. नन्दीश्वर द्वीपके पूर्व दिशामे स्थित एक वापी-दे० लोक/४/५३. रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी-दे० लोक/१/१३ । ध्रवराज-(दक्षिण में लाटदेशके नरेश कृष्णराज प्रथमका पुत्र था। राजा श्रीवल्लभका छोटा भाई था। इसने अवन्तीके राजा वत्सराजको युद्धमें हराकर उसका देश छीन लिया था। पीछे मदोन्मत्त हो जानेसे राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के प्रति भी विद्रोह किया। फलस्वरूप अमोघवर्षने अपने चचा इन्द्रराजके पुत्र कर्कराजकी सहायतासे इसे हराकर इसका सब देश अपने राज्य में मिला लिया। यह राजा प्रतिहारवंशी था। समय-श. ७०२-७५७ (ई०७८०-८३५) दे० इतिहास/३/४ (ह.पु./६६/५२-५३), (ह.पु./प्र./५/पं. पन्नालाल)। नंदावती-नन्दीश्वर द्वीपकी पूर्व दिशामे स्थित एक वापी-दे० लोक/७। नंदा व्याख्या-दे० वाचना। ध्रुव वर्गणा-दे० वर्गणा । ध्रुव शून्य वर्गणा-दे० वर्गणा । नाव-नन्दीश्वरद्वीपका तथा दक्षिण नन्दीश्वर द्वीपका रक्षक देव -दे० व्यन्तर/४ । २. अपरनाम विष्णुनन्दि था-दे० विष्णुनन्दि। नंदिघोषा-१.नन्दीश्वरद्वीपकी पूर्वदिशामें स्थित एक धापी-दे० लोक/५/११/ २. रुचकवर पर्वतवासिनी दिक्कुमारी-दे० लोक/५/१३ नंदिनी-विजया की उत्तरश्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । ध्रुवसेन-श्रुतावतारको पट्टावलीके अनुसार महावीर भगवान्की मूल परम्परामें चौथे ११ अंगधारी थे। आपके अपरनाम ध्र बसेन तथा द्रुमसेन भी थे। समय-वी. नि./४२३-४३६ (ई.पू. १०५-६१) दष्टि नं. ३ के अनुसार बी. नि.४४२-४५४१-दे० इतिहास/४/४। ध्वजभूमि-समवशरणकी पाँचवीं भूमि-दे० समवशरण । नंदिप्रभ-उत्तर नन्दीश्वरद्वीपका रक्षकदेव-दे० व्यन्तर/४ । ध्वान-Range (ज.प./प्र./१०६) [न] नदिमित्र-१ श्रुतावतारकी पट्टावलीके अनुसार आप द्वितीय श्रुत केवली थे। समय-वी. नि. ७६-१२ (ई. पू./४५१-४३५ ) दृष्टि नं. ३ के अनुसार वी. नि. ८८-११६ -दे. इतिहास/४/४i २. (म. पु./६६/श्लोक)-पूर्व भव. नं.२ में पिता द्वारा इनके चाचा को युवराज पद दिया गया । इन्होंने इसमें मन्त्रीकाहाथ समझ उससेवैर बाँध लिया और, दीक्षा ले ली तथा मरकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए।१०३-१०॥ वर्तमान भवमें सप्तम बलभद्र हुए।१०६ (विशेष परिचयके लिए-दे० शलकापुरुष/३ । नदिषधन-मगध देशका एक शिशुनागवंशी राजा। समय-ई. पू./४६० नंदिवर्द्धनारुचक पर्वत निवासिनी दो दिक्कुमारी देवियाँ-दे० लोक/६/१३ ॥ नंद-आरा निवासी व गोयलगोत्री एक हिन्दी भाषाके कवि थे। आपने वि. १६६३ (ई. १३०६ ] में सुदर्शनचरित्र और वि० १६७० (ई०१६१३ ) में चौपाईबद्ध यशोधरचरित्र लिखा है । ) (हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास (१२६॥ श्री कामता प्रसाद ) । नवन-१.वर्द्धमान भगवानका पूर्वका दूसरा भव । एक सज्जनके पुत्र थे-दे० महावीर. २. भगवानके तीर्थ में एक अनुत्तरोपपादिकदे० अनुत्तरोपपादिक, ३. सौधर्म स्वर्गका सातवाँ पटल---दे० स्वर्ग५३; ४. मानुषोत्तर पर्वतका एक कूट व उसपर निवासिनी एक सुपर्णकुमारी देवी । (दे० लोक ५/१०) ५. सुमेरु पर्वतका द्वितीय धन जिसके चारों दिशाओमें चार चैत्यालय हैं-दे० लोक/३/६ । ६. सौमनस व नन्दन वनका एक कूट-दे० लोक/५/५,७.विजयाध की उत्तर श्रेणीका एक नगर। -दे० विद्याधर । नद वंश-मगध देशका एक प्रसिद्ध राज्यवंश था। मगधदेशकी राज्यवंशावलीके अनुसार इसका राज्य राजा पालकके पश्चात प्रारम्भ हुआ और मौर्यवंशके प्रथम राजा चन्द्रगुप्त द्वारा इसके अन्तिम राजा धनानन्दके परास्त हो जानेपर इसका नाश हो गया। अवन्ती या उज्जैनी नगरी इसकी राजधानी थी, और मगधदेशमें इसकी सत्ता थी। समय-राजा विक्रमादित्यके अनुसार वी.नि.६०-२१५ (ई० पू०४६७-३१२); तथा इतिहासकारोके अनुसार नवनन्दों का काल (ई० पू० ५२६-३२२)-दे० इतिहास/३/४। (विशेष दे०परिशिष्ट २)। नंदसप्तमी व्रत-सात वर्ष तक प्रतिवर्ष भादों सुदी ७ को उपवास करे। नमस्कारमन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे। (निर्दोष सप्तमी व्रतकी भी यही विधि है।), (व्रत-विधान संग्रह/पृ. १०५ तथा ८६). (किशन सिंह क्रियाकोश)। नादषण-१. पुन्नाट संघकी गुर्वावलीके अनुसार आप जितदण्डके शिष्य और दीपसेनके गुरु थे-दे० इतिहास/७/८ । २. छठे बलभद्र थे (विशेष परिचयके लिए-दे० शलाकापुरुष/३); (म.पु./६॥ १७४)। ३. (म. पु./५३/श्लोक ) धातकीखण्डके पूर्व विदेहस्थ सुकच्छदेशकी क्षेमपुरी नगरीका गजा था। धनपति नामक पुत्रको राज्य दे दीक्षा धारण कर ली । और अर्हनन्दन मुनिके शिष्य हो गये ।१२-१३। तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध करके मध्यम | वेयकके मध्य विमानमें अहमिन्द्र हुए।१४-१५। यह भगवान सुपार्श्वनाथके पूर्वका भवन, २ है-दे० सुपार्श्वनाथ । ४.(ह.पु./१८/१२७-१७४) एक ब्राह्मण पुत्र था। जन्मते ही माँ-बाप मर गये। मासीके पास गया तो वह भी मर गयी। मामाके यहाँ रहा तो इसे गन्दा देखकर उसकी लडकियोंने इसे बहाँसे निकाल दिया। तब आत्महत्याके लिए पर्वतपर गया। वहाँ मुनिराजके उपदेशसे दीक्षा धर तप किया। निदानमन्ध सहित महाशुक्र स्वर्गमें देव हुआ। यह वसुदेव बलभद्रका पूर्वका दूसरा भव है।-दे० वसुदेव । नंदिसंघ-दिगम्बर साधुओंका एक संध।-दे० इतिहास/५/२। नंदीश्वर कथा-आ. शुभचन्द्र (ई.१५१६-१५५६) द्वारा रचित संस्कृत छन्दबद्ध एक ग्रन्थ । ( दे० शुभचन्द्र )। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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