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________________ दूरात्स्पर्श ऋद्धि दृष्टान्त दूरावस्पर्श ऋद्धिदूराद् घ्राण ऋद्धिदूरदर्शन ऋद्धि- -दे० ऋद्धि/२६ । दूराद् श्रवण ऋद्धिदरापकृष्टि-१. दूरापकृष्टि सामान्य व लक्षण ला.सा./जी.प्र./१२०/१६१/६ पल्ये उत्कृष्टसंख्यातेन भक्ते यल्लब्ध तस्मादेकै क्हान्या जघन्यपरिमितासंख्यातेन भक्ते पत्ये यल्लब्ध तस्मादेकोत्तरवृद्ध्या यावन्तो विकल्पास्तावन्तो दूरापकृष्टिभेदाः । =पल्यको उत्कृष्ट असंख्यातका भाग दिये जो प्रमाण आवै तातै एक एक घटता क्रम करि पल्यको जघन्य परीतासंख्यातका भाग दिये जो प्रमाण आवै तहाँ पर्यन्त एक-एक वृद्धिके द्वारा जितने विकल्प हैं, ते सब दूरापकृष्टिके भेद हैं। २. दूरामकृष्टि स्थिति बन्धका लक्षण क्ष.सा !भाषा/४१६/५००/१५ पल्य/अंस-मात्र स्थितिबन्धको दुरापकृष्टि नाम स्थितिबन्ध कहिये । दूरार्थ-न्या. दी./२६२२/११/९ दूरा (अर्था) देशविप्रकृष्टा मेर्वादयः । -दूर वे हैं जो देशसे विप्रकृष्ट है, जैसे मेरु आदि । अर्थात् जो पदार्थ क्षेत्रसे दूर है वे दूरार्थ कहलाते हैं। पं.ध./उ./४८४ दूरार्था भाविनोऽतीता रामरावणचक्रिण | भूत भविष्यत कालवर्ती राम, रावण, चक्रवर्ती आदि काल की अपेक्षासे अत्यन्त दूर होनेसे दूरार्थ कहलाते हैं। दूरास्वादन ऋद्धि-दे० ऋद्धि /२/६ । दूष्य क्षेत्र-aubical (ज.प्र./प्र.४१०७ ) दृढरथ-म.पु./६३/श्लोक-पुष्कलावती देशमें पुण्डरी किणी नगरीके राजा घनरथका पुत्र था ( १४२-)। राज्य लेना अस्वीकार कर दीक्षा धारण कर ली (३०७-)। अन्त में एक माहके उपवास सहित संन्यास मरणकर स्वर्ग में अहमिन्द्र हुआ (३३६-)। यह शान्तिनाथ भगवानके प्रथम गणधर चक्रायुधका पूर्वका दूसरा भव है।-दे० चक्रायुध । दृश्यक्रम-क्ष.मा./४८० अपूर्व स्पर्धक करण कालका प्रथमादि समयनिविषै दृश्य कहिये देखनेमें आवै ऐसा परमाणूनिका प्रमाण ताका अनुक्रम सो दृश्यक्रम कहिये । (तहाँ पूर्व में जो नवीन देय द्रव्य मिलकर कुल द्रव्य होता है वह द्रव्य द्रव्य जानना।) प्रथम वर्गणासे लगाय अन्तिम वर्गणा पर्यन्त एक एक चय या विशेष घटता दृश्य चय होता है, तात प्रथम वर्गणात लगाय पूर्व स्पर्धकनिको अन्तिम वर्गणा पर्यन्त एक गौपुच्छा भया। दृश्यमान द्रव्य-क्ष.सा./मू./१०५ का भावार्थ-किसी भी स्पर्धक या कृष्टि आदिमें पूर्वका द्रव्य या निषेक या वर्गणाएँ तथा नया मिलाया गया द्रव्य दोनों मिलकर दृश्यमान द्रव्य होता है। अर्थात वर्तमान समयमें जितना द्रव्य दिखाई दे रहा है, वह दृश्यमान द्रव्य है। दृष्ट-कायोत्सर्गका एक अतिचार-दे० व्युत्सर्ग/१। दृष्टान्त-हेतुकी सिद्धिमें साधनभूत कोई दृष्ट पदार्थ जिससे कि बादी व प्रतिवादी दोनों सम्मत हों, दृष्टान्त कहलाता है। और उसको बताने के लिए जिन वचनोंका प्रयोग किया जाता है वह उदाहरण कहलाता है । अनुमान ज्ञान में इसका एक प्रमुख स्थान है। १. दृष्टान्त व उदाहरणोंके भेद व लक्षण १. दृष्ट न्त व उदाहरण सामान्यका लक्षण न्या. सू./मू /१/१/२५/३० लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थ बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्त १२५ - लौकिक (शास्त्रसे अनभिज्ञ ) और परीक्षक (जो प्रमाण द्वारा शास्त्रकी परीक्षा कर सकते है) इन दोनोंके ज्ञानकी समता जिसमें हो उसे दृष्टान्त कहते हैं। न्या,वि.मू./२/२११/२४० संबन्धो यत्र निति' साथ्यसाधनधर्मयोः । स दृष्टान्तस्तदाभासाः साध्यादिविकलादयः ।२१)--जहाँ या जिसमें साध्य व साधन इन दोनों धर्मोंके अविनाभावी सम्बन्धको प्रतिपत्ति होती है वह दृष्टान्त है। न्या. दी /३/६३२/७८/३ व्याप्तिपूर्वकदृष्टान्तवचनमुदाहरणम् । न्या. दी./३/६४-६५/१०४/१ उदाहरणं च सम्यग्दृष्टान्तवचनम् । कोऽयं दृष्टान्तो नाम । इति चेत्; उच्यते; व्याप्तिसंप्रतिपत्तिप्रदेशो दृष्टान्त'..तस्याः संप्रतिपत्तिनामवादिनोद्धिसाम्यम् । सैषा यत्र संभवति स सम्प्रत्तिपत्तिप्रदेशो महानसादिह दादिश्च तत्रैव धूमादौ सति नियमेनाऽन्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिनस्तीति संपत्तिपत्तिसंभवात् ।...दृष्टान्तौ चैतौ दृष्टावन्तौ धर्मों साध्यसाधनरूपौ यत्र स दृष्टान्त इत्यर्थानुवृत्ते । उक्त लक्षणस्यास्य दृष्टान्तस्य यत्सम्यग्वचनं तदुदाहरणम् । न च वचनमात्रमयं दृष्टान्त इति । किन्तु दृष्टान्तत्वेन वचनम् । तद्यथा-यो यो धूमवानसाबसावग्निमान् यथा महानस इति । यत्राग्निर्नास्ति तत्र घूमोऽपि नास्ति, यथा महाहुद इति च । एवं विधेनैव वचनेन दृष्टान्तस्य दृष्टान्तत्वेन प्रतिपादनसंभवात् । -व्याप्तिको कहते हए दृष्टान्तके कहनेको उदाहरण कहते हैं। अथवा-यथार्थ दृष्टान्तके कहनेको उदाहरण कहते हैं। यह दृष्टान्त क्या है। जहाँ साध्य और साधनकी व्याप्ति दिखलायी जाती है उसे दृष्टान्त कहते है ।...वादी और प्रतिवादीकी बुद्धि साम्यताको व्याप्तिको सम्प्रतिपत्ति कहते हैं। और सम्प्रतिपत्ति जहाँ सम्भव है वह सम्प्रतिपत्ति प्रदेश कहलाता है जैसेरसोई घर आदि, अथवा तालाब आदि । क्योंकि वहीं धूमादि होनेपर नियमसे अग्नि आदि पाये जाते हैं, और अग्न्यादिके अभावमें नियमसे धूमादि नहीं पाये जाते' इस प्रकारको बुद्धिसाम्यता सम्भव है । ये दोनों ही दृष्टान्त हैं, क्योंकि साध्य और साधनरूप अन्त अर्थात् धर्म जहाँ देखे जाते हैं वह दृष्टान्त कहलाता है, ऐसा 'दृष्टान्त' शब्दका अर्थ उनमें पाया जाता है। इस उपर्युक्त दृष्टान्तका जो सम्यक् वचन है-प्रयोग है वह उदाहरण है। 'केवल वचनका नाम उदाहरण नहीं है, किन्तु दृष्टान्त रूपसे जो वचन प्रयोग है वह उदाहरण है । जैसे-जो-जो धूमवाला होता है वह-वह अग्निवाला होता है, जैसे रसोईघर, और जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम भी नहीं है जैसे--तालाब । इस प्रकारके वचनके साथ ही दृष्टान्तका दृष्टान्तरूपसे प्रतिपादन होता है । २. दृष्टान्त व उदाहरणके भेद न्या, वि./२/३११/२४०/२५ स च द्वेधा साधम्र्येण वैधम्र्येण च । - दृष्टान्तके दो भेद है, साधर्म्य और वैधर्म्य। प. मु./३/४७/२१ दृष्टान्तो द्वेधा, अन्वयव्यतिरेकभेदात् ।४७।- दृष्टान्तके दो भेद हैं-एक अन्वय दृष्टान्त दूसरा व्यतिरेक दृष्टान्त । (न्या. दी./३६३२/७८/७); (न्या. दी./३/६४/१०४/८ )। ३. साधम्य और वैधय सामान्यका लक्षण न्या. सू./मू.व. टी./१/१/३६/३७/३५ साध्यसाधात्तद्धर्मभावी दृष्टान्त उदाहरणम् ।३६... शब्दोऽप्युत्पत्तिधर्मकत्वादनित्यः स्थाण्यादिवदि. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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