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________________ कषाय १. १ २ ३ ४ ५ द्द ७ ८ * ३ ४ ५ २. १ कषायों में परस्पर सम्बन्ध । २ ६ ८ * ह कषायके भेद व लक्षण कषाय सामान्यका लक्षण । कमायके भेद प्रमेद | निक्षेपकी अपेक्षा कषायके भेद | कमाय मागंणाके भेद । नोकषाय या प्रकषायका लक्षण । कषाय मार्गणाका लक्षण । तीव्र व मन्द कषायके लक्षण व उदाहरण । आदेश व प्रत्यय आदि बायो । क्रोषादिव अनन्तानुबन्ध्यादिके लक्षण । ३ कषाय निर्देश व शंका समाधान - दे० वह वह नाम । कमाय व नोकपायमें विशेषता। कषाय नोकषाय व अकषाय वेदनीय व उनके बन्ध योग्य परिणाम | -३० मोहनीय || कषाय अविरति व प्रमादादि प्रत्ययों में भेदाभेद । - दे० प्रत्यय / १ । इन्द्रिय कपाय व क्रियारूप भावमें अन्तर । -३० किया। कषाय जीवका गुण नहीं विकार है । कायका कथंचित् स्वभाव व विभावपना तथा सहेतुक अहेतुकपना | कृपाय भोविक भाव है। कषाय वास्तव में हिंसा है । मिथ्यात्व सबसे बड़ी काय है। -दे० विभाव । -३० उदय है। - दे० हिंसा / २ ० मध्यादर्शन। व्यक्ताव्यक्त कषाय । -दे० राग / ३ । जीव या द्रव्य कर्मको क्रोधादि संज्ञाएँ कैसे प्राप्त हैं । निमित्तभूत भिन्न द्रव्योंको समुत्पत्तिक कषाय कैसे कहते हो । कषायले अजीव द्रव्यों को कषाय कैसे कहते हो । प्रत्यय व समुत्पतिक कषायमें अन्तर प्रदेश कषाय व स्थापना कषायमें अन्तर । कषाय निग्रहका उपाय । - दे० संयम / २ | चारों गतियोंमें कषाय विशेषों की प्रधानताका नियम। ३. १ कपायोंकी शक्तियोंके दृष्टान्त में उनका फल | २ उपरोक वृष्टान्त स्थितिकी अपेक्षा है अनुभागकी अपेक्षा नही । उपरोक्त दृष्टान्तोका प्रयोजन । क्रोधादि कशयोंका उदयकाल । कपायों की शक्तियाँ, उनका कार्य व स्थिति Jain Education International ३४ ५ 8. १ २ ३ ५ ५. १ २ ३ * जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश अनन्तानुबन्धी भादिका वासनाकाल । - दे० वह वह नाम । कपायों की तीव्रता मन्दताका सम्बन्ध लेख्याओंसे है अनन्तानुबन्ध्यादि अवस्थाओंसे नहीं। अनन्तानुवन्धी भादि कषायें – दे० मह नह नाम कषाय व लेश्या में सम्बन्ध | -०२। कषायोकी तीव्र मन्द शक्तियोंमें सम्भव लेश्याएँ । - ३०/३/१९ कैसी कपायसे कैसे कर्मका बन्ध होता है। - दे० वह वह कर्मका नाम कौन-सी कषायसे मरकर कहाँ उत्पन्न हो । - कषाय - दे० जन्म /५ कषायोकी बन्ध उदय सत्व प्ररूपणाएँ । कषाय व स्थिति बन्धाध्यवसाय स्थान | - दे० वह वह नाम कषायका रागद्वेषादिमें अन्तर्भाव राग-द्वेष सम्बन्धी विषय । नयोंकी अपेक्षा अन्तर्भाव निर्देश नैगम व संग्रहनयकी अपेक्षा युक्ति । व्यवहारनयकी अपेक्षा युक्ति । जुन की अपेक्षा में युक्ति । शन्दनयकी अपेक्षामें युक्ति । संज्ञा प्ररूपणाका काय मार्गणाने अन्तर्भाव । -दे० अध्यवसाय For Private & Personal Use Only - दे० राग -६० मार्गमा कपाय मार्गणा गनियों की अपेक्षा कपायोंकी प्रधानता । गुणस्थानोंमें कषायों की सम्भावना साबुको कदाचित् कषाय आती है पर वह संयमसे च्युत नही होता। -दे० संयत / ३ अप्रमत्त गुणस्थानोंमें कषायोंका अस्तित्व कैसे सिद्ध हो । उपशान्तकपाय गुणस्थान कषाय रहित कैसे है। कषाय मार्गणा में भाव मागंवाकी इष्टता और वहाँ श्रायके अनुसार ही व्ययका नियम ३० मार्गणा कषायों में पाँच भावों सम्बन्धी शोध श्रादेश प्ररूपणाएँ । - दे० भाव काय विषय सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, - दे० वह वह नाम - भाव व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ । कपाय विषयक गुणस्थान, मागंणा, जीवसमास आादि २० प्ररूपणाएँ । कषायमागंणा में बम्ध उदय सत्व प्ररूपणाएँ । -दे० स -- दे० वह वह नाम www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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