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________________ कर्म फल ३० कल्की कर्म फल-दे० कर्म/२। कर्म फल देतना-दे० चेतना । कर्म भूमि-दे० भूमि/३। कर्म शक्ति-स.सा आ /शक्ति नं. ४१ प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयो कर्मशक्तिः। =प्राप्त किया जाता जो सिद्ध रूप भाव है उसमयी कर्म शक्ति है। विशेष दे० कर्ता/१/२। कर्मसमवायिनी क्रिया-दे० क्रिया/१ । कर्मस्तव-एक प्रसिद्ध ग्रन्थ । -दे० परिशिष्ट १॥ कर्मस्पर्श-दे० स्पर्श/१। कर्माहार-दे० आहार/I/11 कर्मोपाधि-सापेक्ष व निरपेक्ष नय –दे० नय/v/२॥ कवंट-ध.१३/५,५,६३/३३५१८ पर्वतावरुद्ध' कव्वर्ड णाम । = पर्वतों से रुके हुए नगरका नाम कर्वट है। म. पु./१६/१७५ शतान्यष्टौ च चत्वारि द्वे च स्युमिसंख्यया। राजधान्यस्तथा द्रोणमुखकर्वटयोः क्रमात् । १७॥ - एक कर्वटमें २०० ग्राम होते हैं। कलधौतनन्दिनन्दिसघ देशीयगण । समय ई० श०१०। -दे०इतिहास ७/ कलह-धि.१२/४,२,८,१०/२०१/४)-क्रोधादिवशाद सिदण्डासभ्यवचनादिभिः परसंतापजननं कलहः। -क्रोधादिके वश होकर तलबार, लाठी और असभ्य वचनादिके द्वारा दूसरोंको सन्ताप उत्पन्न करना कलह कहलाता है। कला-१. Art (ध./प्र.प्र./२७)। २. कालका एक प्रमाण विशेष ।। दे० गणित/I/१/४। कोलग-१. भरत क्षेत्र दक्षिण आय खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४। २. मद्रास प्रान्तका उत्तर भाग और उड़ीसाका दक्षिण भाग। राजधानी राजमहेन्द्री है । (म.Y /प्र.४४/पं. पन्नालाल) कलि ओज-दे० ओज । कलि चतुर्दशी व्रत विधि-आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, इन चार महीनों की शुक्ल चतुर्दशियोंको बराबर ४ वर्ष तक उपवास करना । नमस्कार मंत्रका त्रिकाल जाप्य । (बत-विधान संग्रह/पृ.१०३) (कथाकोश)। कलुषता-दे० कालुष्य। कलेवर-एक ग्रह-दे० 'ग्रह'। कल्की -जैनागममें कल्की नामके राजाका उल्लेख जैनयतियोंपर अत्याचार करनेके लिए बहुत प्रसिद्ध है। इसके व इसके पिताके विभिन्न नाम आगममें उपलब्ध होते हैं और इसी प्रकार इनके समयका भी। फिर भी वह लगभग गुप्त वंशके पश्चात प्राप्त होता है। इतिहासकारोंसे पूछनेपर पता चलता है कि भारतमें गुप्त साम्राज्यके पश्चात् एक बर्बर जंगली जातिका राज्य हुआ था, जिसका नाम 'हून' था। ई० ४३५-५४६ के १२५ वर्ष के राज्यमें एकके पीछे एक चार राजा हुए। सभी अत्यन्त अत्याचारी थे। इस प्रकार आगम व इतिहासका मिलान करनेसे प्रतीत होता है कि कल्की नामका कोई राजा न था। बतिक उपरोक्त चारों राजा ही अपने अत्याचारोंके कारण कल्की नामसे प्रसिद्ध हुए। इस प्रकार उनके विभिन्न नामों व समयोंका सम्मेल बैठ जाता है । -दे० इतिहास /२ १. आगमकी अपेक्षा कल्की निर्देश ति प/४/१५०९-१५१० तत्तो वक्की जादो इंदसुतो तस्स चउमुहो णामो। सत्तरि वरिसा आऊ विगुणियइगिवीस रज्जतो ॥१५०६। आचाररांगधरादो पणहत्तरिजुत्त दुसयवासेसं । वोलीणेस बद्धो पट्टो कक्किस्स णरवइणो ।१५१०॥ = इस गुप्त राज्य (वी. नि.६५८) के पश्चात इन्द्रका सुत कल्की उत्पन्न हुआ। इसका नाम चतुर्मुख, आयु ७० वर्ष और राज्यकाल १२ वर्ष प्रमाण था ।१५०४। आचारांगधरों (वी. नि. ६८३) के २७५ वर्ष पश्चात (वी. नि. ६५८ में ) कल्कीको नरपतिका पट्ट बाँधा गया ।१५१०॥ ह.पु./६०/४६१-४१२ भद्रबाणस्य तद्राज्यं गुप्तानां च शतद्वयम् । एकविशश्च वर्षाणि कालविद्भिरुदाहृतम् ।४६१। द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किराजस्य राजता । ... ४६२ = फिर २४२ वर्ष तक बाणभट्ट (शक वंश ) का, फिर २२१ तक गुप्तोंका और इसके बाद (वी. नि. ६५८ में ) ४२ वर्ष तक करिक राजाका राज्य होगा। म पृ/७६/३६७-४०० दुष्षमायां सहस्राब्दव्यतीतौ धर्महानित' ।३६७) पुरे पाटलिपुत्राख्ये शिशुपालमहीपतेः। पापी तनूजः पृथिवीसुन्दर्या दृर्जनादिम' 1३६८ चतुर्मुखादयः कल्किराजो वेजितभूतल । उत्पत्स्यते माघसंवत्सरयोगसमागमे ।३६६। समानां सप्ततिस्तस्य परमायुः प्रकीर्तितम् । चत्वारिंशत्समा राज्य स्थितिश्चाक्रमकारिणः ।४००। =दुषमाकाल (वी.नि.३) के १००० वर्ष बीतनेपर (वी.नि. १००३ में) धर्मकी हानि होनेसे पाटलिपुत्र नामक नगरमें राजा शिशुपालकी रानी पृथिवीसुन्दरीके चतुर्मुख नामका एक ऐसा पापी पुत्र होगा, जो कलिक नामसे प्रसिद्ध होगा। यह कल्की मघा नामके संवत्सर मे होगा। इसकी उत्कृष्ट आयु ७० वर्ष और राज्यकाल ४० वर्ष तक रहेगा। त्रि.सा./८५०-८५१ पणछस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिध्वुइदो। सगराजो तो कक्की चदुणवतियमहिय सगमासं १८५० सो उम्मग्गाहिंमुहो सदरिवासपरमाऊ। चालीसरज्जओ जिदभूमी पुच्छइसमंतिगणं ।८५१ =बीर भगवान्की मुक्तिके ६०५ वर्ष व महीने जानेपर शक राजा हो है। उसके ऊपर ३६४ वर्ष ७ महीने जाने पर (वी. नि. १००० में) कल्की हो है।८५०। वह उन्मार्गके सम्मुख है। उसका नाम चतुर्मुख तथा आयु ७० वर्ष है। ४० वर्ष प्रमाण राज्य कर है।८५१॥ २. इतिहासकी अपेक्षा हुन वंश यह एक बर्बर जंगली जाति थी, जिसके सरदारोंने ई० ४३२ में गुप्त राजाओंपर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया था। यद्यपि स्कन्द - गुप्तने उन्हें परास्त करके पीछे भगा दिया परन्तु ये बराबर अपनी शक्ति बढाते रहे, यहाँ तक कि ई० ५०० मे उनके सरदार तोरमाणने गुप्त राज्यको कमजोर पाकर समस्त पंजाब व मालवा प्रान्तपर अपना अधिकार जमा लिया। फिर ई० ५०७में उसके पुत्र मिहिरकुलने भानुगुप्तको परास्त करके गुप्त वंशको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इसने प्रजापर बडे अत्याचार किये जिससे तंग आकर एक हिन्दू सरदार विष्णुधर्मने विरवरी हुई हिन्दू शक्तिको संगठित करके ई०५२८ मे मिहिरकुलको परास्त करके भगा दिया। उसने काश्मीरमें जाकर शरण ली और वहाँ ही ई० ५४० में उसकी मृत्यु हो गयी। ( क. पा./पु. १ प्र.५४/५० महेन्द्र) यह विष्णु यशोधर्म कट्टर वैष्णव था। इसने हिन्दू धर्मका तो बडा उपकार किया परन्तु जैन साधुओं व जैन मन्दिरोंपर बडा अत्याचार किया, इसलिए जैनियों में वह कल्की नामूसे प्रसिद्ध हुआ और हिन्दू धर्ममे उसे अन्तिम अवतार माना गया। (न्यायावतार/प्र.२ सतीशचन्द विद्याभूषण ) । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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