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________________ जलकाय व जलकायिक जलकाय व जलकायिक-३०। - जल केतु एक प्रदे० ग्र जलगता चूलिका शाग राज्ञानका एक भेद ---- - जल गति - एक औषधि विद्या० विद्या जल गालन - जैन मार्गमे जलको छानकर ही प्रयोगमे लाना, यह एक बड़ा गौरवशाली धर्म समझा जाता है। जलकी शुद्धि अशुद्धि सम्बन्धी नियम इस प्रकरण मे निर्दिष्ट है । १. प्रासुक जल निर्दश १. वर्षाका जल प्रासुक -- दे० श्रुतज्ञान / III | है भा.पा/टी / १११/२६१/२१. वर्षाकाले तरुमुले तिष्ठ वृक्षोपरि पतित्वा जलपरिपतति तस्य प्राद्विराधान न भवति । यतिन वर्षाऋतु योग धारण करते है। = मे वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करते है । उस समय वृक्षके पत्तो पर पड़ा हुआ वर्षाका जो जल यतिके शरीरपर पड़ता है उससे उसको अपकायिक जीवोंकी विराधनाका दोष नहीं लगता, क्योंकि वह जल प्राशुक होता है। २. रूप रस परिणत ही ठण्डा जल प्रासुक होता है दे. आहार / II/४/४/३ तिल, चावल, तुष या चना आदिका धोया हुआ जल अथवा गरम करके ठण्डा हो गया जल या हरड आदिसे अपरिणत जल, उसे लेनेसे साधुको अपरिणत दोष लगता है । भ.आ.हि.पं. दौलतराम / २५० /१० १२६ या पृ० ११० सिनिके प्रक्षालनका जल तथा चावल धोवनेका जल तथा जो जल तप्त होय करि ठण्डा हो गया होय तथा चणाके धोवनेका जल तथा तुष धोवनेका जल तथा हरडका चूर्ण जामे मिला हाय, ऐसा जो आपका रस गन्धकुं नही पलटा, सो अपरिणत दोष सहित है। अर जो वर्ण रस गन्ध इत्यादि जापटि गया होय सो परिणत है, सानुके लेने योग्य है। * गर्म जल प्रासुक होता है-३० जल गालन/१/४ | Jain Education International ३२५ ३. शौच व स्नानके लिए तो ताड़ित जल या बावड़ीका ताजा जल भी प्रासुक है रत्नमाला / ६३-६४ पाषाणोरस्करितं तोयं घटीयन्त्रेण ताडितम् । सद्यः संतापीनां प्राशुक जलमुच्यते ॥ ६३॥ देवर्षीणां प्रशौचाय स्नानाय च गृहस्थिनाम् अकं परं वारि महातीर्थ जमध्यद ६४ पाषाणको फोडकर निकला हुआ अर्थाद पर्वतीय झरनोका, अथवा रहट द्वारा ताड़ित हुआ और वायोका गरम-गरम ताजा जल प्रामुक है । इसके सिवाय अन्य सब जल, चाहे महातीर्थ गंगा आदिका क्यों न हो, अमुक है । ६३० यह जल देवर्षियोंको तो शौच के लिए और गृहस्थोंको मानके लिए वर्जनीय नहीं है ॥६४॥ ४. जलको प्रासुरु करने की विधि व उसकी मर्यादा व्रत विधान संग्रह / ३१ पर उधृत रत्नमालाका श्लोक मुहूर्त लि तोयं प्राकं प्रहरद्वयम् । उष्णोदमहोरात्रमगालितमिबोच्यते । - छना हुआ जल दो घडी तक, हरडे आदिसे प्रामुक किया गया (देखो ऊपर नं० २) दो पहर या छह घण्टे तक तथा उबाला हुआ जल २४ घण्टे तक प्राक या पीने योग्य रहता है, और उसके पश्चात् बिना छनेके समान हो जाते है । ★ जलका वर्ण धवल ही होता है - दे० लेश्या / ३ । जल गालन २. जल गालन निर्देश १. सभी तरल पदार्थ छानकर प्रयोग में लाने चाहिए सं./२/२२ गालि रमस्त्रेण सर्पिस्तेले पयो द्रव तोयं जिनागमाम्नायाहारेल्स न चान्यथा ॥२३॥ [षी तेस, दूध, पानी आदि पतले पदार्थो को बिना छाने कभी काममें नहीं लाना चाहिए । 1 1 २. दो घड़ी पीछे पुनः छानने चाहिए सा.ध / ३ / १६ मुहूर्त युग्मोर्ध्वमगालनम्। छने हुए पानीको भी दो मुहूर्त अर्थात् चार घडी पीछे छाना हुआ नहीं मानना चाहिए । रतो.वा./२/९/२/१२/१३/२८ / भाषाकार पं. माणिकचन्द दो घड़ी पीछे जलको पुनः छानना चाहिए। ३. जल छानकर उसकी जिवानी करनेकी विधि सा./१/१६ अन्यत्र वा गालितशेषितस्य भ्यासों निपानेऽस्य न तदव्रतेऽर्च्य | १६ | = छाननेके पश्चात् शेष बचे हुए जलको जिस स्थानकाजल है उसमें न डालकर अन्य जलाशय में छोड़ना ( या वैसे ही नाली मे बहा देना ) जलगालनवतमें योग्य नहीं । ४. छलनेका प्रमाण व स्वरूप सा. ध. / ३ / ९६ वा दुर्वाससा गालनमम्युनोस ततेऽर्य छोटे छेदवाले या पुराने कपड़े मे छानना योग्य नहीं । ला. सं . / २ / २३ गालितं दृढवस्त्रेण । घी, तेल, जल आदिको दृढ वस्त्रमेंसे छानना चाहिए । व्रत विधानसंग्रह / ३० पर उधृत षट् त्रिशदडगुलं वस्त्रं चतुर्विंशतिविस्तृतम् । तद्वस्त्रं द्विगुणीकृत्य तोयं तेन तु गालयेत् । = ३६ अंगुल लम्बे और २४ अंगुल चौड़े वस्त्रको दोहरा करके उसमेंसे जल छानना चाहिए। क्रिया को राम / २४४ रंगे वस्त्र न खाने गोरा पहिरे वस्त्र न गाले वीरा | २४४ | = रंगे हुए वा पहने हुए वस्त्रमेंसे जल नहीं छानना चाहिए। ५. जब गाळनके अतिचार = सा.ध. /३/१६ मुहूर्त युग्मोर्ध्वमगालनं वा दुर्वाससा गालनमम्बुनो वा । अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासो निपाने । छने हुए पानीको भी दो मुहूर्त अर्थात चार घडी पीछे नहीं जानना, तथा छोटे वाले मैले, और पुराने कपड़े छानना और धाननेके पश्चात बचे हुए पानीको किसी दूसरे जलाशय में डालना। ये जलगालन व्रतके अतिचार हैं. दार्शनिक श्रावकको ये नहीं लगाने चाहिए । ६. जळ गाळनका कारण जल में सूक्ष्म जीवोंका सद्भाव व्रत विधान संग्रह ३१ पर उद्धृत - एक बिन्दूद्भवा जीवा' पारावत्समा यदि त्योच्चरति चेज्जम्बूद्वीपोऽपि पूर्वते प की एक दमे जिसने जीव है वे करके बराबर होकर यदि उहें तो उनके द्वारा यह जम्बूद्वीप लबालब भर जाये । जगदीशचन्द्र बोस- (एक बूँद जलमें आधुनिक विज्ञानके आधारपर उन्होंने १६४५० पटेरिया जीवोंकी सिद्धि की है। इनके अतिरिक्त जिन जलकायिक जीवोंके शरीररूण नहु मिन्दु है वे उनकी दृष्टिका विषय ही नहीं है। उनका प्रमाण अँगुल असं आगममें कहा गया है ) । ७. जळ गालनका प्रयोजन राग व हिंसाका वर्जन सा.ध./२/१४ रागजीववधापायं भूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत् । रात्रिभक्तं तथा ज्यान्न पानीयमगालितम् ॥१४॥ धर्मात्मा पुरुषोंको मद्यादिकी तरह, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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