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________________ जन्म सूचीपत्र जन्म सामान्य निर्देश जन्मका लक्षण। योनि व कुल तथा जन्म व योनिमें अन्तर -दे० योनि, कुल । जन्मसे पहले जीव-प्रदेशोंके संकोचका नियम । विग्रह गतिमें हो जीवका जन्म नहीं मान सकते। आयके अनुसार ही व्यय होता है -दे० मार्गणा। गतिबन्ध जन्मका कारण नही आयु है।। -दे० आयु/२। चारों गतियोंमें जन्म लेने सम्बन्धी परिणाम । -दे० आयु/३। जन्मके पश्चात् बालकके जातकर्म आदि -दे० संस्कार/२। २ | गर्भज आदि जन्म विशेष का निर्देश जन्मके भेद। बोये गये बीजमें बीजवाला ही जीव या अन्य कोई भी जीव उत्पन्न हो सकता है। उपपादज व गर्भज जन्मोंका स्वामित्व। सम्मूच्छिम जन्म -दे० सम्मूर्छन। उपपादज जन्मकी विशेषताएँ। वीर्य प्रवेशके सात दिन पश्चात् तक जीव गर्भमें आ सकता है। इसलिए कदाचित् अपने वीर्यसे स्वयं अपना भी पुत्र होना सम्भव है। गर्भवासका काल प्रमाण। रज व वीर्यसे शरीर निर्माणका क्रम । सासादन गुणस्थानमें जीवोंके जन्म सम्बन्धी मतभेद नरकमें जन्मका सर्वथा निषेध है। अन्य तीन गतियोंमें उत्पन्न होने योग्य काल विशेष पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें गर्भज संशी पर्याप्तमें ही जन्मता है, अन्यमें नहीं। असंशियोंमें भी जन्मता है। विकलेन्द्रियों में नहीं जन्मता। विकलेन्द्रियोंमें भी जन्मता है। एकेन्द्रियोंमें जन्मता है। एकेन्द्रियोंमे नहीं जन्मता। बादर पृथिवी, अप व प्रत्येक बनस्पतिमें जन्मता है अन्य कायोंमें नहीं। बादर पृथिवी आदि कायिकोंमें भी नहीं जन्मता। द्वितीयोपशमसे प्राप्त सासादन वाला नियमसे देवोंमें उत्पन्न होता है -दे० मरण/३। एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न नहीं होते बल्कि उनमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं। दोनों दृष्टियोंका समन्वय । ५ वा सम्यग्दर्शनमें जीवके जन्म सम्बन्धी नियम अबद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि उच्चकुल व गतियों आदिमें ही जन्मता है, नीचमें नहीं। बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टियोंकी चारों गतियोंमें उत्पत्ति सम्भव है। परन्तु बद्धायुष्क उन-उन गतियोंके उत्तम स्थानों में ही उत्पन्न होता है नीचोंमें नहीं। बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि चारों गतियोंके उत्तम स्थानोमें उत्पन्न होता है। नरकादि गतियोंमें जन्म सम्बन्धी शंकाएँ -दे०वह बह नाम। कृतकृत्यवेदक सहित जीवोंके उत्पत्ति क्रम सम्बन्धी नियम । उपशमसम्यक्त्व सहित देवगतिमें ही उत्पन्न होनेका नियम। -दे० भरण/३। सम्यग्दृष्टि मरनेपर पुरुषवेदी ही होते हैं । जीवोंके उपपाद सम्बन्ध कुछ नियम ३ तथा ५-१४ गुणस्थानों में उपपादका अभाव -दे० क्षेत्र/३। मार्गणास्थानोंमें जीवके उपपाद सम्बन्धी नियम व प्ररूपणाएँ -दे० क्षेत्र/३,४। चरम शरीरियों व रुद्रादिकोंका जन्म चौथे कालमें ही होता है। अच्युतकल्पसे ऊपर संयमी ही जाते है। लौकान्तिकदेबोंमें जन्मने योग्य जीव । संयतासंयत नियमसे स्वर्गमें जाता है। निगोदसे आकर उसी भवसे मोक्षकी सम्भावना । कौनसी कषायमें मरा हुआ कहाँ जन्मता है। लेश्याओंमें जन्म सम्बन्धी सामान्य नियम । महामत्स्यसे मरकर जन्म धारने सम्बन्धी मतभेद -दे० मरण/५/६। नरक व देवगतिमें जीवोंके उपपाद सम्बन्धी अन्तर प्ररूपणा। -दे० अन्तर/४। सत्कर्मिक जीवोंके उपपाद सम्बन्धी -दे० वह वह कर्म। | गति अगति चूलिका १ तालिकाओंमें प्रयुक्त संकेत । २ | किस गुणस्थानसे मरकर किस गतिमें उपजे। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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