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________________ छहगाला छेदना सभवइ य परिसुद्ध सो पुण धम्मम्मि छेउत्ति।" जिन बाह्यक्रियाओंसे धर्म में बाधा न आती हो, और जिससे निर्मलताकी वृद्धि हो उसे छेद कहते है। भ. आ./वि./६/३२/२१ असंयमजुगुप्सार्थ मेन असंयम के प्रति की जुगुप्सा ही छेद है। १. संयम सम्बन्धी छेदके भेद व लक्षण प्र.सा/त.प्र/२११-२१२ द्विविध' किल संयमस्य छेदः, बहिरङ्गोऽन्तरङ्गश्च । तत्र कायचेष्टामात्राधिकृतो बहिरङ्ग. उपयोगाधिकृतः पुन रन्तरङ्ग । प्र. सा/त. प्र./२१७ अशुद्धोपयोगोऽन्तरगच्छेदः परप्राणव्यपरोपो बहिरङ्गः । =संयमका छेद दो प्रकारका है; बहिरंग और अन्तरंग। उसमें मात्र कायचेष्टा सम्बन्धी बहिरंग है और उपयोग सम्बन्धी अन्तरंग ।२११-२१२१ अशुद्धोपयोग अन्तर गछेद है; परप्राणोंका व्यप रोप बहिरंगच्छेद है। छेद गणित-Logarithm (ज. प./प्र.१०६ )(गणित/11/१/१०)। छेदना-१. छेदना सामान्यका लक्षण ध. १४/५,६,५१३/४३५/७ छिद्यते पृथक्क्रियतेऽनेनेति छेदना। जिसके द्वारा पृथक किया जाता है उसकी छेदना संज्ञा है। ब्राह्मण सोऽप्यस्तु विद्याचरणसंपन्न इति। -सम्भावना मात्रसे कही गयी बातको सामान्य नियम बनाकर वक्ताके वचनोंके निषेध करनेको सामान्यछल कहते हैं। जैसे 'आश्चर्य है, कि यह ब्राह्मण विद्या और आचरणसे युक्त है,' यह कहकर कोई पुरुष ब्राह्मण की स्तुति करता है, इसपर कोई दूसरा पुरुष कहता है कि विद्या और आचरणका ब्राह्मण में होना स्वाभाविक है। यहाँ यद्यपि ब्राह्मणत्वका सम्भाबनामात्रसे कथन किया गया है, फिर भी छलवादी ब्राह्मण में विद्या और आचरणके होनेके सामान्य नियम बना करके कहता है, कि यदि ब्राह्मणमे विद्या और आचरणका होना स्वाभाविक है, तो विद्या और आचरण वात्य ( पतित ) ब्राह्मणमें भी होना चाहिए, क्योंकि व्रात्यब्राह्मण भी ब्राह्मण है । (श्लो. बा.४/न्या. २६६/४४५/४), (सि. वि./ वृ//५/२/३१७/१६) ५. उपचारछलका लक्षण न्या. सू./म्.१-२/१४/५१ धर्म विकल्पनिर्देशेऽर्थसद्भावप्रतिषेध उपचार च्छलम् ॥१४॥ न्या. सू./भा./१-२/१४/५१/७ यथा मञ्चा' क्रोशन्तीति अर्थ सद्भावेन प्रतिषेध' । मञ्चस्था. पुरुषाः क्रोशन्ति न तु मञ्चा' क्रोशन्ति । = उपचार अर्थमे मुख्य अर्थका निषेध करके वक्ताके वचनोंको निषेध करना उपचार छल है। जैसे कोई कहे, कि मंच रोते हैं, तो छलवादी उत्तर देता है, कहीं मंच जैसे अचेतन पदार्थ भी रो सकते हैं, अतएव यह कहना चाहिए कि मंचपर बैठे हुए आदमी रोते हैं। (श्लो. वा. ४/ न्या. ३०२/४४८/२१), (सि. वि./वृ,/५/२/३१७/२६) छहढाला-५० दौलतराम (ई १७६८-१८६६) कृत तात्त्विक रचना (दे. दौलतराम)। छहार दशमीव्रत-बहार दशमिवत इह परकार। छह सुपात्रको देय आहार। (यह बत श्वेताम्बर आम्नायमें प्रचलित है) । (बत विधान संग्रह/पृ० १३०), (नवलसाह कृत वर्द्धमान पुराण) छाया-(रा. वा./५/२४/१६-१७/४८४/8)...प्रकाशावरणं शरीरादि यस्या निमित्तं भवति सा छाया ।१६। सा छाया द्वेधा व्यवतिष्ठते। कुतः। तद्वर्णादिविकारात प्रतिबिम्बमात्रग्रहणाच्च । आदर्शतलादिषु प्रसन्नद्रव्येषु मुखादिच्छाया तद्वर्णादिपरिणता उपलभ्यते। इतरत्र प्रतिबिम्बमात्रमेव । -प्रकाशके आवरणभूत शरीर आदिसे छाया होती है। छाया दो प्रकारकी है-दर्पण आदि स्वच्छ द्रव्योमे आदर्शके रंग आदिकी तरह मुखादिका दिखना तद्वर्ण परिणता छाया है, तथा अन्यत्र प्रतिबिम्बमात्र होती है। (स सि २/२४/२६६/२), (त. सा./३/६९); (द्र. सं./टी./१६/५३/१०) छाया संक्रामिणी विद्या-दे०विद्या।। छिन्ननिमित्त ज्ञान-दे निमित्त२। छूआछूत-(१) सूतकपातक विचार-(दे० सूतक ), (२) जुगुप्सा भावका विधि निषेध-(दे० सूतक)। (३) शूद्रादि विचार-(दे० वर्ण व्यवस्था)। छेद-१ Section. (ज. प./प्र. १०६ ) २. छेद सामान्यका लक्षण स. सि /७/२५/३६६/३ कर्ण नासिकादीनामवयवानामपनयनं छेद' । कान और नाक आदि अवयवोंका भेदना छेद है। (रा. वा/७/ २५/३/५५३/२०) ३. धर्मसम्बन्धी छेदका लक्षण रमा. प./३२/३४२/२१ पर उद्धृत हरिभद्रसूरिकृत पञ्चवस्तुक चतुर्थद्वारका श्ल।. नं.-"बज्माणुट्ठाणेणं जेण ण बाहिज्जए तयं णियमा। २. छेदनाके भेद ष. खं. १४/५,६/सू. ५१३-५१४/४३५ छेदणा पुण दसविहा ।।१३। णाम ट्ठवणा दवियं सरीरबंधणगुणप्पदेसा य । वल्लरि अणुत्तडेसु य उप्पइया पण्णभावे य ५१४। -छेदना दस प्रकार की है।५१३-नामछेदना, स्थापनाछेदना, द्रव्यछेदना. शरीरबन्धनगुण छेदना, प्रदेशछेदना, बल्लरिछेदना, अणुछेदना, तटछेदना उत्पातछेदना, और प्रज्ञाभावछेदना ।५१४॥ ३. छेदनाके भेदोंके लक्षण घ. १४/५,६,५१४/४३४/११ तत्थ सचित्त-अचित्तदव्याणि अण्णे हितो पुध काऊण सण्णा जाणावेदि त्ति णामच्छेदणावणा दुविहा सब्भावासब्भाव ठवणभेदेण । सा वि छेदणा होदि, ताए अण्णेसि दव्वाण सरूवावगमादो। दवियं णाम उप्पादादिभंगलवरवणं। तं पि छेदणा होदि, दव्वादो दव्वंतरस्स परिच्छेददं सणादो। ण च एसो असिद्धो दंडादो जायणादीणं परिच्छेदुवलं भादो। पंचण सरीराणं बंधणगुणो वि छेदणाणाम, पण्णाए छिजमाणसादो, अविभागपडिच्छेदपमाणेण छिज्जमाणत्तादो वा। पदेसो वा छेदणा होदि, उड्ढाहोमज्झादिपदेसेहि सव्वदवाणं छेददसणादो। कुडारादीहि अडइरुक्खादिखंडणं वल्लरिच्छेदो णाम। परमाणुगदएगादिदव्वसंखाए अण्णेसि कवाण संखावगमो अणुच्छेदो णाम। अथवा पोग्गलागासादीणं णिविभागच्छेदो अणुच्छेदो णाम । दो हि वि तडेहि णदीपमाणपरिच्छेदो अथवादव्वाण सममेव छेदो तडच्छेदो णाम । रत्तीए इंदाउहधूमकेउआदीणमुप्पत्ती पडिमारोहो भूमिकप-रुहिरबरिसादओ च उप्पाइया छेदणा णाम, एतैरुत्पात राष्ट्रभड्ग नृपपातादितर्कणात् । मदिसुदओहिमणपज्जवकेवलणाणेहि छद्दव्वावगमो पपणभावच्छेदणा णाम । - १. सचित्त और अचित्त द्रव्योंको अन्य द्रव्योंसे पृथक करके जो संज्ञाका ज्ञान कराती है वह नाम छेदना है। २. स्थापना दो प्रकारकी है-सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना । वह भी छेदना है, क्योंकि, उस द्वारा अन्य द्रव्यों के स्वरूपका ज्ञान होता है। ३. जो उत्पाद स्थिति और व्यय लक्षणवाला है वह द्रव्य कहलाता है। वह भी छेदना है, क्योकि एक द्रव्यसे दूसरे द्रव्यका ज्ञान होता हुआ देखा जाता है । यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, दण्डसे योजनादिका परि जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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