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________________ गणित २२६ HH गणित (प्रक्रियाएँ) (१३) वर्गधारा, धनधारा और धनाधनधारा ( दे. गणित/II/५/२) विषै स्वस्थानमें तो उत्तरोत्तर ऊपर-ऊपरके स्थानमे दुगुने-दुगुने अर्धच्छेद हों है और परस्थान विषै तिगुने अर्धच्छेद हो है। जैसे वर्गधाराके प्रथम स्थानकी अपेक्षा तिसहीके द्वितीय स्थानमे दुगुने अर्धच्छेद है, परन्तु बर्गधाराके प्रथमस्थानकी अपेक्षा धनधाराके द्वितीयस्थानमें तिगुने अर्धच्छेद है। (त्रि.सा/७४) (१४) वर्गशलाका स्वस्थानविषै एक अधिक होइ परन्तु परस्थानविषै अपने समान होय है। जैसे वर्गधारा ( दे. ऊपर नं०१३ ) के प्रथमस्थानकी अपेक्षा तिसही के द्वितीयस्थानमे एक अधिक वर्गशलाका होती है। परन्तु वर्गधाराके प्रथमस्थानमे और धनधाराके भी प्रथम स्थानमे एक-एक ही होने के कारण दोनो स्थानोमे वर्गशलाका समान है। (त्रि. सा/७१) कारित, ३. वचन अनुमोदित। १ काय कृत, २. काय कारित व ३. काय अनुमोदित। या कूल ६ भंग हुए सो संख्या है। इन नौ भंगोके नाम अक्ष है। इनकी ऊपर नीचे करके स्थापना करना सो प्रस्तार है। जैसे मन१ वचन २ काय ३ कृत० कारित ३ अनुमोदित ६ मनो अनुमोदित तक आकर पुन वचन कृतसे प्रारम्भ करना परिवर्तन है। सातवॉ भंग बताओ : 'कायकृत'; ऐसे संख्या धरकर अक्षका नाम बताना नष्ट है और वचन अनुमोदित कौन-सा भंग है। 'छठा'। इस प्रकार अक्षका नाम बतार संख्या लाना समुद्दिष्ट है। ३ प्रमादके ३७५०० दोषोंके प्रस्तार यंत्र (१५)वश जगश्रेणी व श धनांगुल, वश "(२४ जघन्य परी. असं) (वंश=वर्गशलाका ), (त्रि सा/१०६) ३. अक्षसंचार गणित निर्देश १. प्रथम पस्तार-(प्रमादोके भेद प्रभेद-दे वह बह नाम ) १ प्रमाण-(गो. जी /जी. प्र. व भाषा/१४/पृ ८६-६१) २. संकेत-अनं - अनन्तानुबन्धी; अप्र. = अप्रत्याख्यान; प्र.-प्रत्या ख्यान, सं.- संज्वलन. १. अक्षमंचार विषयक शब्दोंका परिचय प्रणय स्नेह मोह to राज neslola ४० गो. जी./म् ब जी. प्र /३५/६५ संखा तह पत्थारो परियट्टण पट्ट तह समुद्दिट्ट । एदे पंचपयारा पमंदसमुवित्तणे णेया ॥३॥ प्रमादालापोत्पत्तिनिमित्ताक्षसंचारहेतुविशेष संख्या, एषां न्यास प्रस्तार', अक्षसंचार परिवर्तन, संरव्यां धृत्वा अक्षानयन नष्टं अक्षं धृत्वा संख्यानयनं समुद्दिष्टं । एते पंचप्रकारा' प्रमादसमुत्कीर्तने झया भवन्ति । व संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट, समुद्दिष्ट ए पॉच प्रकार प्रमादनिका व्याख्यानविर्षे जानना। (ऐसे ही साधुके ८४००'००० उत्तर गुण अथवा ८०,००० शीलके गुण इत्यादिमे भी सर्वत्र ये पाँच बात' जाननी योग्य हैं। यहाँ प्रमादका प्रकरण होनेसे केवल प्रमादके आधारपर कथन किया गया है।) तहाँ प्रमादनिका आलापको कारणभूत जो अक्षसंचारके निमित्तका विशेष सो संख्या है। बहुरि इनिका स्थापन करना सो प्रस्तार है। बहुरि अक्षसंचार परिवर्तन है। संख्या धर अक्षका व्यावना नष्ट है। अक्ष धर संख्याका व्यावना समुद्दिष्ट है। इहॉ भंगको कहनेको विधान सो आलाप है। बहुरि भेद व भंगका नाम अक्ष जानना। बहुरि एक भेद अनेक भंगनिविषै क्रमत पलट ताका नाम अक्षसंचार जानना। बहुरि जेथवाँ भंग होइ तीहि प्रमाणका नाम सरख्या जानना । कथा कषाय | इन्द्रिय | निद्रा पा स्त्री अन कोध । ग्यजन त्यानदि अर्थ अनः भान १५०० १० भोजन अन माया মাহ प्रचनाचला ३००० q20 अन लोग ४५०० १८० चोर अप्र.क्रोध भीत्र ६००० -280 अप्र-मान ३०० परपारखण्डाप्रमाया ९००० ३६० देश अप्रलोम १५०० ४२० भाषा चक्रोध q2000 __४८० गुणमन्चा प्रसान ३४०० देवी प्रमाया 44000 ६०० निष्र प्रलीम १६५०० ६६० परशन्यास-क्रोध १३॥ १८०do020 केन्दस पान १९५०० ८०० १५दिशकालानुचितासमाया २१008 ० का भंड १६२२५०० so १० मुर्छ । हास्य । १९ घरपखित अरहि। २० परसा पोळ ३०० च्या २२ कलह जरमा २. अक्षसंचार विधिका उदाहरण मन वचन कायके कृत कारित अनुमोदनाके साथ क्रमसे पलटनेसे तीन-तीन भंग होते है। यही अक्ष संचार है। जैसे १, मनो कृत, २. मनो कारित, ३, मनो अनुमोदित । १. वचन कृत, २ वचन जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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