SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणित २२० | गणित विषयक प्रमाण सूच्यं गुलकी अ. छे = (पल्यको अर्धच्छेद राशि)२ सूच्यंगुलकी व.श. = पत्यकी व.श.४ २. प्रतरांगुलकी अ.छे-सूच्यंगुलको अ. छे ४२ छे छे वर :छे छ, २ : २९ ८. कालप्रमाणों की अपेक्षा सहनानियाँ (गो.सा/जी.का/को अर्थ संदृष्टि ) आवली : आ अन्तर्मुहूर्त : संख्यात आ पल्य (ध.३/पृ.८८) सागर : सा. प्रतरावली : आवली२ :३२ धनावली : आवली३ : २३८ पल्यकी अर्धच्छेद राशि :छे पल्यको वर्ग शलाका राशि : व सागरको अर्धच्छेद राशि : अथवा संख्यात आवली प्रतरांगुलकी व.श =सूच्यं गुलकी व. श.+१ व घनांगुलकी अ.छे-सूच्यं गुलकी अ. छे x ३. : छे छे.. घनांगुलकी व. श. ( जातै द्विरूप वर्गधारा विष जेते स्थान गये सूच्यंगुल हो है तेते ही स्थान गये द्विरूप धन धारा विषै धनांगुल हो है :व, नछे छे छे जगश्रेणीकी अ. छे = धल्यकी अ, छे+असं/अथवा : तोहि प्रमाण विरलन राशि, ताके आगे धनांगुलकी अ. छ का गुणकार जानना। विछे छे. २१ जगश्रेणीको र.श. (घनांगुलको व.श.+ज.परीता)x: १६/२ २ वर जगप्रतरकी अ.छे-जगश्रेणी की अ. छे४२ a ३. गणितकी प्रक्रियाओंकी अपेक्षा सहनानियां १. परिकर्माष्टककी अपेक्षा सहनानियाँ (गो.सा./जी.का./को अर्थ संदृष्टि) नोट--यहाँ 'x' को सहनानीका अंग न समझना। केवल आँकड़ोंका अवस्थान दर्शानेको ग्रहण किया है। व्यकलन (घटाना) . जगप्रतरकी व. श=जगश्रेणीकी व. श+१ गुणा घनलोककी अ. छे -सूच्यंगुल की अ. छेx३ : छे छे छे. घनलोककी व. शजातै द्विरूप बर्ग धाराविषै जेते स्थान गये जगश्रेणी हो है, तेते ही स्थान गये द्विरूप धनधारा: विष घनलोक हो है। व.म. (i संकलन (जोड़ना) :x किंचिदून एक घाट किंचिदधिक (संकलने में एक दो तीन आदि राशियाँ : ऋण राशि पाँच घाट लक्ष : ल५ वर्ग मूल प्रथम वर्गमूल द्वितीय वर्गमूल घनमूल : २ ३. श्रेणी गणितकी अपेक्षा सहनानियाँ विरलन राशि : वि. (विशेष देखो गणित /III) या ल.) : ना (गो. सा/जी. का/की अर्थ संदृष्टि) एक गुणहानि :८ । नाना गुणहानि एक गुणहानि (किंचिदून ड्योढ़ Lविषै स्पर्धक 3(द्वयर्ध.) गुणहानि ड्योढ़ गुणहानि : १२ गुणित समयप्रबद्ध दो गुणहानि (निषेकाहार) : १६/ उत्कृष्ट समयप्रबद्ध १२ : स३२ २. लघुरिक्थ गणितकी अपेक्षा सहनानियाँ (गो.सा./ओ.का./को अर्थ संदृष्टि) संकेत-अ.के : अर्धच्छेद राशि व.श : वर्ग शलाका राशि r पल्यको अर्ध- : log, of पक्ष्य :प, (गो.क/ च्छेद राशि पृ.३६)-छे पल्यकी व.श. log log, of पल्य व L(जघन्य वर्गणा) सागरको अ.छे :पण्यकी अर्धच्छेद+संख ४. षटगुणवृद्धि हानिकी अपेक्षा सहनानियाँ {गो सा/जी. का/की अर्थसंदृष्टि) अनन्तभागउ असंख्यात भाग संख्यातभाग | संख्यातगुण असंख्यातगुण ५) अनन्त गुण जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy