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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org भा० २-२६ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश प्रमाण नं० १ नं० २ पृ. पृ. २. काय मागणा ३२६ ३३४ ३३० ३३३ ३२६ "" "" ३३५ ३३० " 꾸꾸미 ३३०३३३ ३३७ ३३६ :::: पृथिवी सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त " बादर पर्याप्त अपर्याप्त 11 :::: मार्गणा ३३० ३३६ | वायु सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त मादर पर्याप्त अपर्याप्त अप. के सर्व विकल्प सूक्ष्मपर्या :: " अपर्याप्त " बादर पर्याप्त अपर्याप्त 19 "1 "" २४६ ३३५ मन- अप्रतिष्ठित 11 "" 14 " प्रत्येक पर्याप्त , अपर्याप्त ११. प्रतिष्ठित सू. पर्याप्त अपर्याप्त ना० पर्याप्त अपर्याप्त 19 41 41 41 • साधारण निगोद | सूर्या अपशि 11 44 19 " " " " बा० पर्याप्त अपर्याप्त 15 41 19 41 29.95 39 सके सर्व विकल्प गुण स्थान स्वस्थान स्वस्थान सर्व च/असम त्रि/असं तसं, मअर्स सर्व / असं सर्व त्रि/अर्स, तिवस, मअर्स ति / सं त्रि/असं दिसे मज ::: 1::: विहारवद स्वस्थान 11 1 [ वेदना व कषाय समुद्धात सर्व 91 च असं म त्रि/असं, तिxi, मx अस पृथिवी बद सर्व पृथिवी बद सर्व अ पृथिवी वत् सर्व पृथिवी वद त्रि/अतिअसं मxअसं त्रि/सं, तिxअसं, मजर्स ति/सं पृथिवी वत् त्रि/असं, तिसं ::: " मx असं " पंचेन्द्रिय वत् वैक्रियक समुद्धात मारणान्तिक समुद्धात उपवाद सर्व / असं सर्व/असं ति/सं च/असं प/अस T सर्व 11 त्रि / असं तिxअसं, मxअसं सर्व । सर्व / असं मxअसं त्रि/सं, तिxअसं, मxअर्स सर्व मारणान्तिक वद त्रि/स, विकास, मारणान्तिक वद मxअसं 1 मारणान्तिक वद F मारणान्तिक मद मारणान्तिक व त्रि/असं, तिxसं, मारणान्ति वद मx असं :::| 19 तेजस आहारक व केवली समुद्धात II I क्षेत्र २०१ ४. क्षेत्र प्ररूपणाएँ
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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