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________________ शुल्लक -- न युक्तम्: कुत' । अधिकरणभेदाद । अन्यद्धि क्षुध प्रतीकाराधिकरणम्, अन्यत् पिपासाया । प्रश्न-क्षुधा परीषह और पिपासा परीषहको पृथक्-पृथक् कहना व्यर्थ है, क्योंकि दोनोंका एक ही अर्थ है। उत्तर- ऐसा नहीं है क्योंकि भूख और प्यासको सामर्थ्य जुदी-जु है। प्रश्न - अभ्यवहार सामान्य होनेसे दोनों एक ही है। उत्तरऐसा कहना भी ठीक नही है, क्योकि दोनोमे अधिकरण भेद है अर्थात् दोनोकी शान्तिके साघन पृथक पृथक है । क्षुल्लक क्षुल्लक 'शब्दका अर्थ छोटा है। छोटे साधुको क्षुल्लक कहते है अथवा भावकको ११ भूमिकाओ में सर्वोत्कृष्ट भूमिकाका नाम क्षुल्लक है। उसके भो दो भेद है-एक क्षुल्लक और दूसरा ऐल्लक | दोनों हो साबुन भिक्षावृति भोजन करते है, पर के पास एक कौपीन व एक चादर होती है, और ऐलकके पास केवल एक कोपीन लक भर्तगोमे भोजन कर लेता है पर ऐसा पाणिपात्रमेही करता है। शुल्क केशतोष भी कर लेता है और कैचोसे भी बाल कटवा लेता है पर ऐलक केश लोच हो करता है । साधु व ऐलकमे लंगोटीमात्रका अन्तर है । १ १ शुल्लक शब्दका अर्थ छोटा 1 उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाका लक्षण । - दे० उद्दिष्ट । दे०/१ 1 उत्कृष्ट आवकके दो भेदोंका निर्देश शूदको शुल्क दीक्षा सम्बन्धी दे० वर्ण व्यवस्था/४। क्षुल्लकका स्वरूप । ३ क्षुल्लकको श्वेत वस्त्र रखना चाहिए, रंगीन नही । ४ क्षुल्लकको शिखा व यज्ञोपवीत रखनेका निर्देश | ५ क्षुल्लकको मयूरपिच्छाका निषेध 1 ६ क्षुल्लक घरमें भी रह सकता है। ७ शुल्क निर्देश क्षुल्लक क्षुल्लक गृहत्यागी ही होता है। पाणिपात्र वा पात्रमे भी भोजन करता है। शुल्ककी केश उतारनेकी विधि। १०को एकमुक्ति न पोपवासका नियम । ११ कके भेद । १२ एकगृहभोजी का रूप । १३ अनेक गृहभोजी क्षुल्लकका स्वरूप । १४ अनेक गृहभोजीको आहारदानका निदेश १५ शुल्लकको पात्र प्रशासनादिनिया करनेका विधान । १६ क्षुल्लकको भगवान्की पूजा करनेका निर्देश । १७ साधनादि शतकोंका निर्देश व स्वरूप | १८ल्क दो भेदोंका इतिहास व समन्वय । ८ ९ ऐलक निर्देश -दे० ऐनक ऐलक का स्वरूप | १] शुल्लक व लक रूप दो का इतिहास व समन्यय । Jain Education International १८८ क्षुल्लक १. शुल्लक शब्दका अर्थ छोटा - अमरकोष /१४२/१६ निवर्ण पामरो नीच प्राकृतरच पृथग्जनः। निहोनोसोलकरचेतरश्च सः विवर्ण, पामर, नीच, प्राकृत और पृथग्जन, निहीन, अपसद, जाम और सुख मे एकार्थमाथी शब्द है । स्व. स्तो./५ स विश्वचक्षुवृषभोऽचित सतो, समग्र विद्यात्मवपुनिरंजन' पुनातु चेतो मम नाभिनन्दनो जिनोजियादि शासन ॥२॥ जो सम्पूर्ण कर्म शत्रुओंको जीतकर 'जिन' हुए, जिनका शासन क्षुल्लकवादियो के द्वारा अजेय और जो सर्वदर्शी है, सर्व विद्यात्म शरीर है, जो सत्पुरुषोंसे पूजित है, जो निरंजन पदको प्राप्त है। वे नाभिनन्दन श्री ऋषभदेव मेरे अन्त. करणको पवित्र करे । * उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाका लक्षण दे० उ * उत्कृष्ट श्रावकके दो भेदोंका निर्देश दे० भावक / १ । * शुद्धकी लक दीक्षा सम्बन्धो ६० वर्ण व्यवस्था/४ २. लकका स्वरूप साध / ७/३८ कौपीनसंख्यान ( घर ) - पहला ( श्रावक ) क्षुल्लक लंगोटी और कोपीनका धारक होता है। • ला. स /७/६३ क्षुल्लक कोमलाचार । एकवस्त्रं सकोपीनं... क्षुल्लक श्रावक ऐलककी अपेक्षा कुछ सरल चारित्र पालन करता है एक वस्त्र, तथा एक कोपीन धारण करता है। ( भावार्थ - एक वस्त्र रखनेका अभिप्राय खण्ड वस्त्रसे है । दुपट्टाके समान एक वस्त्र धारण करता है । 301 २. क्षुल्लकको श्वेत वस्त्र रखना चाहिए, रंगीन नहीं १. १००/३६ अंशुकेोपनीतेन सितेन प्रचतात्मना। मृगालकाण्डजालेन नागेन्द्र इव मन्थर | ३६ | = ( वह क्षुल्लक ) धारण किये हुए सफेद चञ्चल वस्त्रसे ऐसा जान पड़ता था मानो मृणालोके समूहसे वेष्टित मन्द मन्द चलनेवाला गजराज ही हो । माघ / ७/३८ । सितकौपीनसंव्यान |३८| पहला क्षुल्लक केवल सफेद लंगोटी बनी रखता है ( जसहर चरित्र (पुष्पदन्तकृता) / धर्मग्रा/८/६९) ४ क्षुल्लकको शिखा व यज्ञोपवीत रखनेका निर्देश लास ०/६३ शुलक कोमलाचार शिखामुत्राङ्कित भवेत। यह क्षुल्लक श्रावक चोटी और यज्ञोपवीतको धारण करता है | ६३ | | दशवीं प्रतिमामे यदि यज्ञोपवीत व चोटोको रखा है तो हक अवस्थामै भी नियम रखनी होगी। अन्यथा इच्छानुसार कर लेता है। ऐसा अभय है। लास / ०/६३ का भावार्थ ) ] ५. क्षुल्लक के लिए मयूरपिच्छका निषेध सा. ध/७/३६ स्थानादिषु प्रतिलिखेद्, मृदूपकरणेन स | ३६ | वह प्रथम उत्कृष्ट श्रावक प्राणियोको बाधा नहीं पहुँचानेवाले कोमल वस्त्रादिक उपकरणसे स्थानादिकमे शुद्धि करे |११| जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only ला म. / ७ /६३ । वस्त्र पिच्छकमण्डलुम् | ६३| वह क्षुल्लक श्रावक स्त्री पछी रखता है। [ वस्त्रका छोटा टुकड़ा रखता है उसीसे पीछीका सब काम लेता है। पीछोका नियम ऐलक अवस्थामे है इसलिएको की ही पोछी रखने को कहा है। (ना. सं०/६३ का भावार्थ ) ) www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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