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________________ केवली केवली मनुष्य होनेके कारण के वलीको भी कवलाहारी होना चाहिए। ५ सयमकी रक्षाके लिए भी केवलीको कवलाहारकी आवश्यकता थी। औदारिक शरीर होनेसे केवलोको कवलाहारी होना चाहिए। आहारक होनेसे केवलीको कवलाहारी होना चाहिए । परिषहोंका सद्भाव होनेसे केवलीको कवलाहारी होना चाहिए। ९, केवली भगवान्को क्षुधादि परिषह नहीं होती। १० केवलीको परीषद कहना उपचार है। | असाताके उदयके कारण केवलीको क्षधादि परीषह होनी चाहिए। १ घाति व मोहनीय कर्मकी सहायता न होनेसे असाता अपना कार्य करनेको समर्थ नहीं है। २. साता वेदनीयके सहवतापनेसे असाताकी शक्ति अनन्तगुणी क्षीण हो जाती है। ३ असाता भी सातारूप परिणमन कर जाता है। | १२ | निष्फल होनेके कारण असाताका उदय ही नहीं कहना | चाहिए। इन्द्रिय व मन, योग सम्बन्धी निर्देश व शंका-समाधान w, vre * ध्यान व लेश्या आदि सम्बन्धी निर्देश व शंका-समाधान | केवलीके समुद्घात अवस्थामें भी भावसे शुक्ललेश्या है; तथा द्रव्यसे कापोत लेश्या होती है। -दे० लेश्या /३ ! केवलीके लेश्या कहना उपचार है तथा उसका कारण। केवलीके संयम कहना उपचार है तथा उसका कारण। केवली के ध्यान कहना उपचार है तथा उसका कारण। केवलीके एकत्व वितर्क विचार ध्यान क्यों नहीं कहते। तो फिर केवली क्या ध्याते है। केवलीको इच्छाका अभाव तथा उसका कारण । केवलीके उपयोग कहना उपचार है। ७ केवली समुद्धात निर्देश केवली समुद्वात सामान्यका लक्षण । भेद-प्रमेद। दण्डादि भेदोंके लक्षण । | सभी केवलियों के होने न होने विषयक दो मत । * | केवली समुद्धातके स्वामित्वको ओघादेश प्ररूपणा। -दे० समुद्रात | आयुके छः माह शेष रहनेपर होने न होने विषयक दो मत । कदाचित् आयुके अन्तर्महूर्त शेष रहनेपर होता है। आत्म प्रदेशोंका विस्तार प्रमाण । कुल आठ समय पर्यन्त रहता है। प्रतिष्ठापन व निष्ठापन विधिक्रम । दण्ड समुद्घातमें औदारिक काययोग होता है शेषमें नहीं। कपाट समुद्घातमें औदारिक मिश्र काययोग होता है शेषमें नहीं। -दे० औदारिक/२। * | लोकपूरण समुद्घातमें कार्माण काययोग होता है शेषमें नहीं -दे० कार्माण/२। ११ प्रतर व लोकमें आहारक शेषमें अनाहारक होता है। १२ | केवली समुद्घातमें पर्याप्तापर्याप्त सम्बन्धी नियम । * केवलीके पर्याप्तापर्याप्तपने सम्बन्धी विषय। -दे० पर्याप्ति/३॥ पर्याप्तापर्याप्त सम्बन्धी शंका-समाधान । समुद्वात करनेका प्रयोजन। इसके द्वारा शुभ प्रकृतियोंका अनुभाग बात नहीं होता। जब शेष कर्मों की स्थिति आयुके समान न हो। तब उनका समीकरण करनेके लिए होता है। कर्मोंकी स्थिति बराबर करनेका विधि क्रम। स्थिति बराबर कर नेके लिए इसकी आवश्यकता क्यो। समुद्धात रहित जीवकी स्थिति कैसे समान होती है। ९वे गुणस्थानमें ही परिणामोंकी समानता होनेपर स्थितिकी असमानता क्यों। द्रव्येन्द्रियोंकी अपेक्षा पञ्चेन्द्रियत्व है भावेन्द्रियोंकी ___ अपेक्षा नहीं। २ | जाति नामकमोदयकी अपेक्षा पञ्चेन्द्रियत्व है। पञ्चेन्द्रिय कहना उपचार है। इन्द्रियोंके अभावमें शानकी सम्भावना सम्बन्धी शकासमाधान -दे० प्रत्य:/२ भावेन्द्रियोके अभाव सम्बन्धी शंका समाधान । केवलीके मन उपचारसे होता है। | केवलीके द्रव्यमन होता है भाव मन नहीं । तहा मनका भावात्मक कार्य नहीं होता पर परिस्पन्द रूप कार्य होता है। भावमनके अभाव में बचनकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? मन सहित होते हुए भी केवलीको सही क्यों नहीं कहते। १० योगोंके सद्भाव सम्बन्धी समाधान । ११ केवली के पर्याप्ति योग तथा प्राण विषयक प्ररुपणा। द्रव्येन्द्रियोकी अपेक्षा दश प्राण क्यों नहीं कहते? १३ समुद्वातगत केवलीको चार प्राण कैसे कहते हो? अयोगीके एक आबु प्राण होनेका क्या कारण है ? | * योग प्राण तथा पर्याप्ति की प्ररूपणा -दे० वह वह नाम जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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