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________________ केरल केरल - १. कृष्णा और तुङ्गभद्राके दक्षिण में विद्यमान भूभाग, जो आजकल मद्रासके अन्तर्गत है । पाण्ड्रय केरल और सतीपुत्र नामसे प्रसिद्ध है ।२. मध्य हा एक देश दे० मनुष्य /४ । केवल मो.पा./टी./६/३०२/११ केवलोऽसहाय केवलज्ञानमयो वा के परनिनिकस्वभावे आत्मनि मलमनन्तवीर्यं यस्य स भवति केवलः, अथवा केवले सेवते निजामनि एक्लोसीभावेन तिष्ठतीति केवल 1 == केवलका अर्थ असहाय या केवलज्ञानमय है । अथवा 'क' का अर्थ परब्रह्म या शुद्ध बुद्धरूप एक स्वभाववाला आत्मा है उसमें है बल अर्थात् अनन्तवीर्य जिसके । अथवा जो केवते अर्थात् सेवन करता है-- अपनी आत्मामे एकलोलीभावसे रहता है वह केवल है। केवलज्ञान जीवन्मुक्त योगियोंका एक निर्विकल्प अतीन्द्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धिके प्रयोग के सर्वाग सर्वकाल व क्षेत्र सम्बन्धी सर्व पदार्थोंको हस्तामलकवत टंकोत्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। इसीके कारण वह योगी सर्वज्ञ कहाते है। स्व व पर ग्राही होनेके कारण इसमें भी ज्ञानका सामान्य लक्षण घटित होता है । यह ज्ञानका स्वाभाविक व शुद्ध परिणमन है । * 9 १ २ * ३ केवलज्ञान एक ही प्रकारका है। केवलवान गुण नहीं पर्याय है। ५ ६ * * - * केवलज्ञान निर्देश केवलज्ञानका व्युत्पत्ति अर्थ । केलान निरपेक्ष व असहाय है। केवलज्ञान विकल्पका कथंचित् सद्भाव दे० वि केवलज्ञान भी ज्ञान सामान्यका अंश है । -दे० ज्ञान / I/४/१-२ यह मोह व ज्ञानावरणीयके क्षयसे उत्पन्न होता है । केवलज्ञान निर्देशका मतार्थ 1 केबलज्ञान कथंचित् परिणामी है । - दे० केवलज्ञान/५/३ वानमें शुद्ध परिणमन होता है। दे०] परिणमन यह शुद्धात्मोंमें ही उत्पन्न होता है । - दे० केवलज्ञान / 2/4 सभी मार्गणास्थानों में आयके अनुसार ही व्यय । - दे० मार्गणा । तीसरे व चौबे कालमें ही होना संभव है। -३० मोक्ष/४/३। लहान विषयक गुणस्थान, मार्गणास्थान, व जीवसमास आदिके स्वामित्व विषयक २० प्ररूपणा ३० स केवलज्ञान विषयक सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व - दे० वह वह नाम । केवलज्ञान निसर्गज नहीं होता - दे० अधिगम / १० केवलज्ञानकी विचित्रता सर्वको जानता हुआ भी व्याकुल नहीं होता । २ १ २ सर्वांगसे जानता है। Jain Education International ४ ५ ५ ६. केवलज्ञानकी सर्वग्राहकता सब कुछ जानता है । २ समस्त लोकालोकको जानता है। ३ सम्पूर्ण द्रव्य क्षेत्र काल भात्रको जानता है । सर्व द्रव्यों व उनकी पर्यायोंको जानता है। त्रिकाली पर्यायोंको जानता है। ४ सद्भूत व असद्भूत सब पर्यायोंको जानता है । अनन्त व असंख्यातको जानता है - दे० अनन्त / २/४.५ ७ प्रयोजनभूत व अप्रयोजनभूत सबको जानता है । इससे भी अनंतगुणा जाननेको समर्थ है। इसे समर्थ न माने सो अज्ञानी है। केवलज्ञान ज्ञानसामान्यके बराबर है । ८ - दे० ज्ञान / I / ४ | २ ३ ८ ९ प्रतिविम्वत् जानता है। टकोत्कीर्णनद जानता है । केवलज्ञानकी सिद्धिमें हेतु १ यदि सर्वको न जाने तो एकको भी नहीं जान सकता। यदि त्रिकालको न जाने तो इसकी दिव्यता ही क्या। अपरिमित विषय ही तो इसका माहात्म्य है। सर्वशत्वका अभाववादी क्या स्वयं सर्वज्ञ है ? बाधक प्रमाणका अभाव होनेसे सर्वशत्व सिद्ध है। अतिशय पूज्य होनेसे सर्वशत्व सिद्ध है। केवलज्ञानका अश सर्वप्रत्यक्ष होनेसे यह सिद्ध है । मति आदि ज्ञान के अंश है। १ अक्रमरूपसे युगपत् एकक्षणमें जानता है। तात्कालिक जानता है। सर्वयोको पृथक् पृथक् जानता है। ३ केवलज्ञान - दे० ज्ञान / /४ । सर्वपल सिद्ध है। सूक्ष्मादि पदार्थ प्रमेव होनेसे कर्मों व दोषोंका अभाव होनेसे सर्वशत्व सिद्ध है । कर्मों का अभाव सम्भव है। ० मो रागादि दोषोंका अभाव सम्भव है। दे० राग / ५ । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only केवलज्ञान विषयक शंका समाधान केवलज्ञान असहाय कैसे है ? विनष्ट व अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान कैसे सम्भव है ? अपरिणामी केवलज्ञान परिणामी पदार्थोंको कैसे जान सकता है ? अनादि व अनन्त ज्ञानगम्य कैसे हो ? दे० अनंत/२ । केवलज्ञानीको प्रश्न सुननेकी क्या आवश्यकता ? केवलज्ञानको प्रत्यक्षता सम्बन्धी शकाऍ - दे० प्रत्यक्ष । सर्ववके साथ वक्तृत्वका विरोध नहीं है। www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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