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________________ कृतिकर्म १३७ ४. कृतिकर्म-विधि तक ७. योग्य शुद्धियाँ (अन, ध.६/१-१३/३४-३५) (द्रव्य--क्षेत्र-काल व भाव शुद्धि; मन-वचन व काय शुद्धि, ईर्यापथ न समय क्रिया शुद्धि, विनय शुद्धि, कायोत्सर्ग-अवनति-आवर्त व शिरोनति आदि १ सूर्योदय से लेकर २ घडी तक देववन्दन, आचार्य की शुद्धि-इस प्रकार कृतिकर्ममें इन सब प्रकारकी शुद्धियोंका ठीक वन्दना व मनन २ सूर्योदयके २ घड़ी पश्चादसे मध्याह्न पूर्वाह्निक स्वाध्याय प्रकार विवेक रखना चाहिए। (विशेष--दे० शुद्धि)। के २ घडी पहले तक 1३ | मध्याह्नके २ घड़ी पूर्वसे २ घड़ी | आहारचर्या (यदि उपपश्चात् तक वासमुक्त है तो क्रम से आचार्य व देव८. आसन, क्षेत्र, काल आदिके नियम अपवाद मार्ग है वन्दना तथा मनन) उत्सर्ग नहीं | आहार से लौटने पर मंगलगोचर प्रत्याख्यान 14 मध्याह्नके २ घडी पश्चात्से सूर्यास्तके | अपराह्निक स्वाध्याय ध.१३/१,४,२६/१५,२०४६६ सव्वासु वट्टमाणा जं देसकालचेट्ठासु । वर २ घड़ी पूर्व तक केवलादिलाह पत्ता हु सो ख वियपावा ।१॥ तो देसकालचेट्ठाणियमो १६ सूर्यास्तके २ घड़ी पूर्व से सूर्यास्त तक देवसिक प्रतिक्रमण व ज्झाणस्स पत्थि समयम्मि। जोगाण समाहाणं जह होइ तहा पयइ. रात्रियोग धारण | सूर्यास्तसे लेकर उसके २ घड़ी पश्चात् आचार्य व देववन्दना यव ।२० -सब देश सब काल और सब अवस्थाओं { आसनों ) में तक तथा मनन विद्यमान मुनि अनेकविध पापोंका क्षय करके उत्तम केवलज्ञानादि- 1८ सूर्यास्तके २ घडी पश्चातसे अर्धरात्रि । पूर्वरात्रिक स्वाध्याय को प्राप्त हुए ।१५। ध्यानके शास्त्र में देश, काल और चेष्टा (आसन)का के २ घडी पूर्व तक भी कोई नियम नहीं है। तत्त्वत, जिस तरह योगोका समाधान हो अर्धरात्रिके २ घडी पूर्व से उसके २ घडी चार घड़ी निद्रा पश्चात तक उसी तरह प्रवृत्ति करनी चाहिए ।२०। (म पु/२१/८२-८३); १० अर्धरात्रिके २ घडी पश्चादसे सूर्योदय- वैरात्रिक स्वाध्याय (ज्ञा./२८/२१) के २ घडी पूर्व तक ११ सूर्योदयके २ घड़ी पूर्वसे सूर्योदय रात्रिक प्रतिक्रमण म. पु./२१/७६ देशादिनियमोऽप्येवं प्रायोवृत्तिव्यपाश्रयः । कृतात्मना तु सर्वोऽपि देशादिनिसिद्धये ।७६। =देश आदिका जो नियम कहा | नोट-रात्रि क्रियाओंके विषयमें देवसिक क्रियाओंकी तरह गया है वह प्रायोवृत्तिको लिये हुए है, अर्थात् होन शक्तिके धारक समयका नियम नहीं है। अर्थात हीनाधिक भी कर सकते है।४४॥ ध्यान करनेवालोंके लिए ही देश आदिका नियम है, पूर्ण शक्तिके धारण करनेवालों के लिए तो सभी देश और सभी काल आदि ध्यानके साधन हैं। २. कृतिकर्मानुपूर्वी विधि और भी दे० कृतिकर्म/३/२,४ ( समर्थ जनोंके लिए आसन व क्षेत्रका कोषकार--साधुके दैनिक कार्यक्रम परसे पता चलता है कि केवल चार कोई नियम नहीं) घडी सोनेके अतिरिक्त शेष सर्व समयमे वह आवश्यक क्रियाओंमें ही उपयुक्त रहता है। वे उसकी आवश्यक क्रियाएँ छह कही गयी हैंदे० वह वह विषय-काल सम्बन्धी भी कोई अटल नियम नहीं है। सामायिक, वन्दना, स्तुति स्वाध्याय, प्रत्याख्यान व कायोत्सर्ग। अधिक बार या अन्य-अन्य कालोंमें भी सामायिक, वन्दना, ध्यान कहीं-कहीं स्वाध्यायके स्थान पर प्रतिक्रमण भी कहते हैं। यद्यपि ये छहों क्रियाएँ अन्तरंग व बाह्य दो प्रकारकी होती है। परन्तु आदि किये जाते हैं। अन्तरंग क्रियाएँ तो एक वीतरागता या समताके पेटमें समा जाती हैं। सामायिक व छेदोपस्थापना चारित्रके अन्तर्गत २४ घण्टों ही होती रहती हैं। यहाँ इन छहोंका निर्देश बाच सिक व कायिकरूप ४. कृतिकर्म-विधि बाह्य क्रियाओंकी अपेक्षा किया गया है अर्थात् इनके अन्तर्गत मुखमे कुछ पाठादिका उच्चारण और शरीरसे कुछ नमस्कार आदिका करना होता है। इस क्रिया काण्डका ही इस कृतिकर्म अधिकार में निर्देश १. साधुका दैनिक कार्यक्रम किया गया है। सामायिकका अर्थ यहाँ 'सामायिक दण्डक' नामका एक पाठ विशेष है और उस स्तवका अर्थ 'थोस्सामि दण्डक' मू-आ./६०० चत्तारि पडिक्कमणे किदियम्मा तिण्णि होंति सज्झाए । नामका पाठ जिसमें कि २४ तीर्थंकरोंका संक्षेपमें स्तवन किया गया पुटवण्हे अवरण्हे किदियम्मा चोहस्सा होंति ।६००। प्रतिक्रमण है। कायोत्सर्गका अर्थ निश्चल सीधे खड़े होकर १ बार णमोकार कालमें चार क्रियाकर्म होते हैं और स्वाध्यायकालमें तीन क्रियाकर्म मन्त्रका २७ श्वासोंमें जाप्य करना है। बन्दना, स्वाध्याय, प्रत्या ख्यान, व प्रतिक्रमणका अर्थ भी कुछ भक्तियोंके पाठोंका विशेष होते हैं। इस तरह सात सवेरे और सात सॉझको सब १४ क्रियाकर्म क्रमसे उच्चारण करना है, जिनका निर्देश पृथक् शीर्षकमें दिया गया होते हैं। है। इस प्रकारके १३ भक्ति पाठ उपलब्ध होते हैं-१. सिद्ध भक्ति, - - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश मा०२-१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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